मुख्य बातें :
- 2016 की घटना
- नामकुम अंचल के तुंबागुटू में आदिवासी ज़मीन का निरीक्षण करते सीआई अन्य।
- 15 एकड़ आदिवासी जमीन दलालों ने 152 लोगों को बेची, म्यूटेशन पर लगी रोक
L19/Deepak : नामकुम अंचल में सेना की जिस 408 एकड़ जमीन को बेचने के मामले पर हाय-तौबा मची हुई है, वह पिछले करीब 30 सालों से सेना के कब्जे में ही है। तुंबागुटू मौजा स्थित इस ज़मीन पर सेना की जमाबंदी कायम है। लेकिन, तुंबागुटू और नामकुम के एक दर्जन से अधिक भू-माफियाओं ने ज़मीन का खाता-प्लॉट दिखाकर इसी मौजा की करीब 15 एकड़ आदिवासी ज़मीन को 152 लोगों को बेच दिया है।
ज़मीन के अधिकतर खरीदार सेना के जवान हैं। ज़मीन का यह धंधा करीब 15-16 सालों से चल रहा है। खरीदारों ने ज़मीन का म्यूटेशन भी करा लिया है। मामले का खुलासा होने के बाद नामकुम अंचल ने म्यूटेशन पर रोक लगा दी है और अबतक हुए सारे म्यूटेशन को रद्द करने के लिए एलआरडीसी को भेज दिया है। इस खेल में चौंकाने वाली बात यह है कि अंचल के जिस कर्मचारी ने इसका खुलासा किया, सरकार ने उसे ही निलंबित कर दिया। हैरानी यह भी कि अब तक किसी भी पक्ष ने इस मामले में अंचल कार्यालय से शिकायत नहीं की है। यह खुलासा भास्कर पड़ताल में हुआ है।
1986-87 में जमीन का अधिग्रहण किया गया था। लेकिन, गजट पेपर अंचल को नहीं दिया गया। इससे जिन रैयतों की जमीन का अधिग्रहण हुआ था, पंजी-2 में उन्हीं की जमाबंदी कायम रही। लेकिन, यह स्पष्ट है कि सेना की 408 एकड़ ज़मीन 30 सालों से उसके ही कब्जे में है। सिर्फ सेना के कब्जेवाली ज़मीन का खाता-प्लॉट दिखाकर दूसरी ज़मीन को बेची गई। अब म्यूटेशन रद्द करने के लिए संचिका एलआरडीसी को भेजी गई है। -मनोजकुमार, सीओ नामकुम
बीडीओ गौरीशंकर शर्मा ने 6 मई, 2016 को नामकुम थाना में एफआईआर दर्ज कराई। इसमें नामकुम अंचल के तत्कालीन प्रभारी सीआई धनंजय गुप्ता और राजस्व कर्मचारी विजय टोप्पो, दलाल बिरजू नायक समेत एक दर्जन लोगों को नामजद आरोपी बनाया है। म्यूटेशन से संबंधित 30 डीड भी सौंपी है। पुलिस ने बिरजू नायक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है, लेकिन अन्य आरोपी फरार हैं। मंगलवार को नामकुम एसआई संजय कुमार राय ज़मीन की जांच करने घटनास्थल पर गए। उनके साथ सीआई अनिल कुमार सिंह, राजस्व कर्मचारी अशोक कुमार सिंह, अमीन मंशाराम स्वांसी भी थे।
गजट पेपर मिलने के बाद तत्कालीन सीओ कुमुदिनी टुडू ने उक्त खाता-प्लॉट वाली ज़मीन की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी थी। बावजूद तत्कालीन सीआई और कर्मचारी की अनुशंसा पर ज़मीन का म्यूटेशन होता रहा। सिर्फ तत्कालीन सीओ राजदीप संजय जॉन और शुचि त्यागी के कार्यकाल में म्यूटेशन नहीं हुआ।
दलालों ने सेना के कब्जेवाली 408 एकड़ ज़मीन में से करीब दो दर्जन से अधिक खाता-प्लॉट को दिखाकर तुंबागुटू के ही नायकों (घासी) की ज़मीन पर पोजिशन दे दिया। दलालों ने ज़मीन मालिकों से पावर ऑफ अटॉर्नी लेकर यह खेल रचा। साथ ही ज़मीन सीएनटी फ्री बताकर बेच दी। ज़मीन की घेराबंदी भी कर ली गई है।
सरकार ने साल 1986-87 में तुंबागुटू की 408 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर सेना को सौंपा था। लेकिन, इसकी सूचना नामकुम अंचल को नहीं दी गई। यानी जितने रैयतों की जमीन का अधिग्रहण हुआ, उसे पंजी-2 से नहीं घटाया गया। इस वजह से रैयतों के नाम से ही जमाबंदी कायम रही। इसी का फायदा उठाते हुए दलालों ने 15 एकड़ आदिवासी ज़मीन बेच दी। 2014 में जब सेना ने म्यूटेशन के लिए अंचल में आवेदन दिया, तब अधिग्रहण से संबंधित गजट पेपर अंचल को मिला।
रिपोर्ट : दीपक कुमार