L19 DESK : 8 अगस्त आज वीर शहीद निर्मल महतो जी का शहादत दिवस है। वही निर्मल दा, जिन्होंने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर झारखंड आंदोलन में वो जान फूंकी थी, जिससे पूरा राज्य उनके और अग्रणी आन्दोलनकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर एक ही ताल पर चल पड़ा था। परन्तु अपने आंदोलन के परिणाम को देखने के लिए वो जीवित नहीं बचे। सन् 1987 में जमशेदपुर के बिष्टुपुर, चमरिया गेस्ट हाउस के पोड़ियों पर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी थी। दिशोम गुरु शिबू सोरेन और निर्मल महतो एकता के साथ झारखण्ड आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे। आदिवासी कुर्मी मिलकर अलग राज्य की लड़ाई लड़ रहे थे और निर्मल दा ने अपना सर्वस्व इस आन्दोलन पर न्यौछावर कर दिया था। आज हम उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलू के बारे आपको बताएँगे।
निर्मल दा का जन्म
झारखण्ड अलग राज्य के लिए बलिदान देने वाले झारखण्ड के इस सच्चे वीर सपूत का जन्म बिहार प्रदेश (तत्कालीन झारखण्ड) के सिंहभूम जिला में जमशेदपुर के उलियान नामक गाँव में 25 दिसंबर 1950 को हुआ था। पिता श्री जगबंधु महतो और माता श्रीमती प्रिया महतो अपने आठ पुत्र और एक पुत्री में इन्हें नटखट मानते थे। निर्मल महतो ने जमशेदपुर टाटा वर्कर्स यूनियन हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की तथा जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की थी। पिता के टिस्को की नौकरी से अवकाश प्राप्त कर लेने से, निर्मल महतो पढ़ाई के साथ-साथ और बच्चों को पढ़ा कर घर की आमदनी में योगदान भी देते थे। वे रंगोली बनाने में निपुण थे, इतने निपुण कि आस-पास की लड़कियाँ उनसे रंगोली बनाना सीखने के लिए आती थीं। निर्मल महतो अंत तक बीड़ी-सिगरेट, खैनी-गुड़ाखू, दारू और ना ही किसी कुसंगती का शिकार हुए। हंसमुख चेहरे लिये कर्मठ निर्मल दा कठिन-से-कठिन परिस्थितियों से बिना घबराए लड़ जाते थे। शांति पूर्वक एवं तत्काल निर्णय लेना उनकी सबसे बड़ी विशेषताओं में से एक थी। उनमे बचपन से नेतृत्वकारी गुण थे और वे आजीवन अविवाहित रहे।
झारखंड आन्दोलन में कूद पड़े
निर्मल महतो छात्र जीवन से ही राजनीति में रूचि लेने लगे थे। बाद में छात्र आंदोलन का नेतृत्व करते हुए वे झारखण्ड आंदोलन में कूद पड़े। अपना राजनीतिक जीवन उन्होंने झारखण्ड पार्टी से शुरू किया और एक जुझारू नेता के रूप में अपने आप को स्थापित किया। वे 1980 के बिहार विधान सभा के चुनाव में लड़े, लेकिन विजयी नहीं हुए। झारखण्ड पार्टी की पतनशीलता को देखते हुए एवं शैलेन्द्र महतो की प्रेरणा से गुआ-गोली काण्ड के बाद वे 15 दिसंबर 1980 को झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झा० मु० मो०) में शामिल हो गए।
कई आंदलनो के सूत्रधार
झारखण्ड के क्षेत्रों में खुटकटी हक़ बरक़रार रखने के अंतर्गत, जंगल और सुदूर देहाती क्षेत्रों की सड़कों को मुख्य सड़क से जोड़ने का, स्कूल निर्माण एवं अस्पताल खोलने का, जंगल से उत्पादित वस्तुओं का उचित मूल्य आदिवासियों को मिले, देहात के हाट-बाज़ारों में महसुल वसूली बंद का, कारखानों एवं खदानों में नौकरी पाने समेत कई आंदोलनों के वह सूत्रधार रहे थे।
निर्मल दा को कार्यकारिणी समिती का सदस्य चुना गया
21 अक्टूबर 1982 को सुवर्ण रेखा डैम (चांडिल) के विस्थापितों को पुनर्वासित कराने एवं उन्हें रोजगार मुहैया के लिए क्रांतिकारी छात्र युवा मोर्चा द्वारा तिरुलडीह स्थित ईचागढ़ प्रखंड कार्यालय के समक्ष जन-प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलियां चली जिसमे सिंहभूम कॉलेज के दो छात्र अजीत महतो और धनञ्जय महतो शहीद हो गए। पुलिस के डर से उनकी लाशों को उठाने कोई आगे नहीं बढ़ रहा था। निर्मल दा को मालूम पड़ते ही वे वहां पहुँचे, छात्रों के पार्थिव शरीर को उनके घर पहुँचाये और उनका अंतिम संस्कार किए। 01 और 02 जनवरी 1983 को धनबाद में हुए झामुमो के प्रथम केन्द्रीय महाधिवेशन में निर्मल दा को उनकी कर्मठता एवं कार्यशैली से प्रभावित होकर उसी समय केंद्रीय कार्यकारिणी समिती का सदस्य चुन लिया गया। साथ ही 06 अप्रैल 1984 को बोकारो में हुई झामुमो की केन्द्रीय समिती की बैठक में सर्वसम्मति से पार्टी के सर्वोच्च अध्यक्ष पद से सम्मानित किया गया।
आजसू का किया गठन
01 जून 1986 को झामुमो की केंद्रीय समिती की बैठक में उन्होंने ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) का गठन किया और 19, 20 और 21 अक्टूबर 1986 में ही जमशेदपुर अखिल झारखण्ड छात्र एवं बुद्धिजीवी सम्मलेन का आयोजन करा आजसू को इस अल्प समय में राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा कर दिया। उन्होंने झारखण्ड अलग राज्य आंदोलन को गति प्रदान करते हुए झारखण्ड के स्कूल और कॉलेज के छात्रों को संगठित कर आंदोलन में भाग लेने का आह्वाहन किया। उन्होंने छात्रों और नवयुवकों को विश्वास में लिया और बताया कि “केवल नवयुवक की शक्ति से ही अलग राज्य का सपना साकार हो सकता है”।
निर्मल दा की हत्या
इसके बाद निर्मल महतो ने सूर्य सिंह बेसरा को आजसू का जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया और खुद कुर्मी एवं पिछड़ी जाति के छात्रों को और बेसरा ने आदिवासी छात्रों को अपने मत में मिला इस आंदोलन में जान फूंक दी। जब यह आंदोलन अपने चरम पर था, तभी दुर्भाग्यवश कुछ अपराधी तत्वों ने जमशेदपुर में 08 अगस्त 1987 को उनकी हत्या कर दी।