कौन कहता है आसमान में छेद नहीं हो सकता, जरा एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो” जी हां इस पंक्ति को सच कर दिखाई है झारखंड की एक आदिवासी बेटी ने जिन्होंने भारत की बहुप्रतिष्ठित वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन की पहली महिला सहायक लोको पायलट बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। इस सौभाग्य को प्राप्त करते ही इस आदिवासी बेटी ने उस मिथक को भी तोड़ दिया जिसमें माना जाता है कि आदिवासी सिर्फ चपरासी, पियून,पुलिस, फ़ौजी जैसे छोटे नौकरी ही कर सकते हैं।
एक दौर था जब महिलाओं को अबला नारी माना जाता था, चूल्हा चौकी, घर-आंगन,पति बच्चों तक ही इनकी दुनिया सीमित थी। लेकिन अब समय बदल रहा है.. देश की नारी पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर हर वो काम कर रही है जो कभी पुरुष समाज सोचता था ये नहीं कर सकते हैं। लेकिन आज हर उस मिथक को तोड़ते हुए महिलाएं अंतरिक्ष की सैर से लेकर आईएएस, आईपीएस जैसे प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हो रही है और पुरुषवादी समाज में अपनी अहम भूमिका निभा रही हैं।
इसी कड़ी में झारखंड की 27 वर्षीय रितिका तिर्की ने इतिहास रचते हुए वंदे भारत एक्सप्रेस की सहायक लोको पायलट के रूप में कार्यभार संभाला है। यह ट्रेन विशेष रूप से टाटा-पटना रूट पर चल रही है। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि का जश्न 15 सितंबर 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित एक वर्चुअल फ्लैग-ऑफ समारोह के दौरान मनाया गया।
बता दें रितिका झारखंड के आदिवासी समुदाय से आती हैं और उन्हें महिला सशक्तिकरण और आदिवासी प्रतिनिधित्व का प्रतीक माना जा रहा है। उन्होंने BIT मेसरा से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की और 2019 में भारतीय रेलवे में शंटिंग के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने माल और यात्री ट्रेनों को चलाने का अनुभव प्राप्त किया, जिसके बाद उन्हें हाल ही में वंदे भारत ट्रेन चलाने का अवसर मिला।
रितिका की यात्रा, जो गुमला, झारखंड से शुरू हुई थी, अब उन्हें भारत की प्रमुख ट्रेनों में से एक को चलाने की जिम्मेदारी सौंपने तक ले आई है। यह न केवल उनके लिए, बल्कि उन जैसे सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है, विशेषकर उन आदिवासी महिलाओं के लिए जो पारंपरिक रूप से पुरुषों द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों में करियर बनाने का सपना देखती हैं।
अपने इस अवसर पर रितिका ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि जुनून और दृढ़ संकल्प के साथ, महिलाएं अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती हैं। उनका यह संदेश सभी के लिए प्रेरणादायक है कि कठिनाइयों के बावजूद, मेहनत और समर्पण से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
रितिका तिर्की की कहानी निश्चित रूप से हमें यह सिखाती है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने में कोई भी बाधा नहीं होनी चाहिए। वह आदिवासी समुदाय के लिए गर्व का विषय हैं और महिला सशक्तिकरण के एक उदाहरण के रूप में देखी जाती हैं।