L19/DESK : इन दिनों पूरे देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर वाद-विवाद छिड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री के द्वारा बीते दिनों मध्यप्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान समान नागरिक संहिता पर दिये गए वक्तव्य पर छिड़ी विवाद अभी तक थमने का नाम नही ले रहा है। देश के विभिन्न सामाजिक धार्मिक और बुद्धिजीवियों के संगठनों ने अपने अपने तरीके से विरोध करना शुरू कर दिया है। इधर कुछ जनजातीय समूहों के विरोध के बीच भाजपा सांसद और पार्टी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव ने सोमवार को विश्वास जताया कि समुदाय को विशेष अधिकार मिलते रहेंगे। झारखंड से ताल्लुक रखने उरांव ने समुदाय के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को रेखांकित किया और कहा कि उनके जैसा नेता यह सुनिश्चित करेगा कि अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए बने विशेष कानून समाप्त नहीं हों।
सांसद समीर उरांव ने कहा कि जनजातीय समुदाय और जनजातीय क्षेत्रों को संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूची और उनके रीति-रिवाजों से संबंधित नियमों के तहत विशेष अधिकार प्राप्त हैं, क्योंकि उन्हें विशेषाधिकार देना आवश्यक समझा गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के प्रयास के तहत यह कदम उठाये गये हैं। उन्होंने कहा कि जनजातीय आबादी को समान नागरिक संहिता के आलोचकों द्वारा गुमराह नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस मामले पर परामर्श चल रहा है और इस मुद्दे पर अब तक सार्वजनिक तौर पर कुछ भी ठोस सामने नहीं आया है। सांसद उरांव ने जनजातीय समुदायों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री मोदी की ‘प्रतिबद्धता’ की सराहना करते हुए कहा कि हाल ही में मध्य प्रदेश की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने जनजातीय समाज के लोगों के साथ बातचीत की थी। समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग के परामर्श के बीच कुछ जनजातीय समूहों ने मांग की है कि उन्हें कानून से बाहर रखा जाये, जबकि विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ भाजपा पर इस मुद्दे को चुनावी हथकंडे के तौर पर लेने का आरोप लगाया है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों, जहां जनजातीय आबादी बहुसंख्यक है, ने भी इसका विरोध किया है।
हाल ही में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के नेतृत्व में नगालैंड के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और उन्हें यूसीसी सहित अन्य मुद्दों पर अपनी चिंताओं से अवगत कराया। विधि पर संसदीय समिति के अध्यक्ष और भाजपा सांसद सुशील मोदी ने हाल ही में समिति की बैठक में पूर्वोत्तर सहित देश के अन्य हिस्सों के जनजातीय समुदाय को किसी भी संभावित समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने की वकालत की थी।