चंद्रयान-3 मिशन के डेटा एनालिसिस ट्रेनिंग के लिए किया गया है रांची स्थित बीआईटी मेसरा टीम का चयन
L19/DESK : 14 जुलाई को इसरो द्वारा चंद्रयान 3 मिशन भेजने की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। देश के जाने माने वैज्ञानिक और इंस्टिट्यूट इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में दिन रात लगे हुए हैं। इसी कड़ी में बीआईटी मेसरा के रिमोट सेंसिंग डिर्पाटमेंट की ओर से चंद्रयान-3 के लैंडिंग साइट के लिए डेटा एनालिसिस का काम किया जा रहा है। इसके लिए इसरो की ओर से चंद्रयान-1 व चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के सेंसर डेटा सेट भेजे गए हैं,जिसमें चंद्रयान के सेंसर टीएमसी, हाइसी, मून मिनिरोलॉजी मैपर(एमक्यूब), आईआईआरएस आदि के सेंसर डेटा पर काम करेंगे। इसका विभिन्न आयामों पर विश्लेषण कर जो परिणाम आएगा, उसकी रिपोर्ट इसरो को 31 जुलाई तक भेजना है।
ज्ञात हो कि बिआईटी मेसरा की टीम मार्च माह में इसरो द्वारा आयोजित चंद्रयान-3 के सेंसर डेटा एनालिसिस ट्रेनिंग में शामिल हुई थी,जिसमें रिमोट सेंसिंग डिर्पाटमेंट के प्रोफेसर डॉ. एपी कृष्णा, डॉ. मिली घोष लाला, डॉ.स्वागत पयरा, पीएचडी स्कॉलर राजा विस्वास, एमएससी स्टूडेंट्स दामिनी शर्मा शामिल रहे। रिमोट सेंसिंग डिर्पाटमेंट की प्रोफेसर डॉ. मिली घोष लाला ने बताया कि चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर सेंसर के डेटा के माध्यम से लैंडिंग साइट का सरफेस टेंपरेचर क्या रहता है, दिन और रात के टेंपरेचर में क्या बदलाव रहता है, लैंडिंग साइट की सतह कैसी है, लैंडिंग साइट में आयरन की प्रचुरता है या टाइटेनियम की प्रचुरता है आदि विभिन्न आयामों पर एनालिसिस करेंगे। इसका इस्तेमाल चंद्रयान-3 मिशन आधारित रिसर्च के लिए किया जाएगा।बिआईटी मेसरा के डॉ. मिली घोष लाला ने बताया कि इसरो की ओर से चंद्रयान-3 सेंसर के डेटा एनालिसिस के लिए ट्रेनिंग दी गई थी,जिसका काम चंद्रयान-3 के सफलतापूर्वक लांचिंग के बाद शुरू होगा। उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 के लैंडर में तीन सेंसर व रोवर में दो सेंसर होंगे। इसमें ऑर्बिटर नहीं होगा।मिशन में चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर का इस्तेमाल हो रहा है। लैंडर का चैस्ट सेंसर चंद्रमा की सतह के थर्मोफिजिकल गुणों का पता लगाएगा। आईएलएसए सेंसर लैंडिंग स्थल के आस-पास हो रहे भूकंपीय गतिविधियों का अध्ययन करेगा। तीसरा सेंसर एलपी प्लाज्मा घनत्व की खोज करेगा। रोवर के सेंसर अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (एडीएक्सएस) और लेजर-प्रेरित
इससे पहले भी बीआईटी मेसरा की रिमोट सेंसिंग डिर्पाटमेंट की यह टीम चंद्रयान-2 के डीएफएसएआर सेंसर से चंद्रमा के क्रेटर (एक बड़ा गड्ढा जो उल्कापिंड या किसी बड़े चट्टान के बहुत तेज रफ्तार से चंद्रमा की सतह पर टकराने पर बन जाता है) का पता लगाने काम कर चुकी है। साथ ही ये पता कर रहे हैं कि क्रेटर कितना पुराना है, कितनी क्षति पहुंची है। यह रिसर्च चंद्रमा के साउथ पोल में किया जा रहा है, जहां पर हमेशा अंधेरा रहता है। जिसे परमानेंट शैडो रीजन भी कहा जाता है। टीम की ओर से 158 क्रेटर का पता लगाया गया है। इस टीम में रिमोट सेंसिंग डिर्पाटमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. वीएस राठौर भी शामिल हैं।