L19/DESK : गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले यानी गुरुवार शाम देशभर के 110 लोगों को पद्मश्री 5 लोगों को पदमविभूषण और 17 लोगों को पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है,जिसमें झारखंड की लेडी टार्जन के नाम से प्रसिद्ध चामी मुर्मू का नाम भी शामिल है। साथ ही जमशेदपुर की तीरंदाजी कोच पूर्णिमा महतो और प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर को भी पदमश्री से नवाज़ा गया।
इधर सरायकेला खरसावां की चामी मुर्मू को सामाजिक कार्य (पर्यावरण – वनरोपण) के छत्रे में बिशेष योगदान के लिए इस पुरूस्कार से सम्मानित किया गया है।चामी मुर्मू इसलिए भी चर्चा का विषय बनी है क्यूंकि इसको ऐसे समय में पर्यावरण और वृक्षारोपण के छेत्र में पदमश्री दिया गया है जब एक ओर छत्तीसगढ़ के हसदेव के लाखों हेक्टेयर में फैली जंगल के पेड़ों की अन्धाधुन कटाई की जा रही, जिसका पूरा देश विरोध कर रहा है। क्योंकि सबको पता है जंगल हमारे लिए कितना महत्व रखता है, जो हमें शुद्ध हवा देती हैं सभी प्रकार के वन्य उत्पाद से लेकर वन्य प्राणियों का निवास स्थान है।
वैसे तो झारखण्ड हमेशा कुछ ना कुछ ख़बरों के लिए शुर्खिया में रहता है लेकिन इस समय झारखंड एक खास महिला के लिए सुर्ख़ियों में है, क्यूंकि इस महिला ने 30 लाख के आसपास वृक्षरोपन करके यह साबित किया कि वह पर्यावरण के प्रति कितनी सकारात्मक है। हम बात कर रहे हैं सरायकेला खरसावां की रहने वाली आदिवासी महिला चामी मुर्मू जिन्हें लेडी टार्जन भी कहा जाता है। चामी मुर्मू ने 30 साल पहले पर्यावरण के एक छोटी पहल शुरू की थी,इसकी वजह से आज उस छत्रे के महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। 1988 में जब वन माफियाओं की ओर से पेड़-पौधों के अंधाधुंध कटाई और तस्करी हो रही थी,इससे स्थानीय लोगों को काफी परेशानी होने लगी थी।ग्रामीणों को जलाने के लिए लकड़ी मिलना मुश्किल हो गया था जिसके बाद मुर्मू ने गाँव की 10 महिलाओं के सहायता से पर्यावरण संरक्षण के काम करना शुरू किया। इस काम इनके साथ और भी कई लोग जुड़ते गए. जिसका परिणाम ये हुआ कि चामी मुर्मू ने लोगों की सहायता से अबतक 30 लाख से ज्यादा पौधे लगा लिए हैं। लकड़ियों की अवैध कटाई रोकने और नक्सल गतिविधियों से सुरक्षा, वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर चामी कई सालों से काम कर रही हैं. इसलिए इन्हे लेडी टार्जन भी कहा जाता है।
चामी मुर्मू अपने एनजीओ ‘सहयोगी महिला’ के तहत महिलाओं के स्वास्थ, एनीमिया, कुपोषण से मुक्ति और बालिकाओं की शिक्षा पर भी काम कर रही है। पर्यावरण के संरक्षण को लेकर अब तक 2800 स्वयं सहायता समूह बनाया गया है।इस स्वयं सहायता समूह 28 हजार से अधिक महिलाओं को रोजगार का अवसर मिला है। इनके सराहनीय काम के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय नई दिल्ली, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, एनसीसी झारखंड बटालियन, टाटा पावर,नेहरू युवा केंद्र द्वारा इन्हें पुरस्कारित भी किया गया है।