L19 DESK : पूरे विश्व भर अब मनोरोग के इलाज के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (artificial intelligence) (एआइ) की मदद ली जा रही है। भारत में भी इसके जल्द शुरू होने की संभावना। मनोरोग के इलाज में एआइ की मदद लेनेवाला केंद्रीय मनोचिकित्सा संस्थान (CIP) देश का पहला संस्थान बनने वाला है। संस्थान के परिसर में बुधवार को ‘एआइ लैब’ और ‘स्टीमुलेशन सेंटर’ का उद्घाटन होने जा रहा है। संस्थान के डॉक्टर करीब एक साल तक इस तकनीक का परीक्षण करेंगे। सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद ही मनोरोगियों के इलाज में इसका इस्तेमाल शुरू किया जा सकता है।
बता दे की विश्व में कई मन:चिकित्सा संस्थानों में मनोरोग के इलाज में एआइ की मदद ली जा रही है। इसमें चैट-जीपीटी का इस्तेमाल ज्यादातर किया जा रहा है। अर्जेंटीना विश्वविद्यालय के छात्रों में अवसाद व चिंता के लक्षणों की जांच के लिए एआइ आधारित चैटबॉट्स का इस्तेमाल और इसके प्रभाव की जांच की गयी। स्टडी से पता चला कि चैटबॉट्स के उपयोग को पारंपरिक चिकित्सा के पूरक के रूप माना जा सकता है।
हालांकि, प्रशिक्षित एआइ थेरेपिस्ट सहायक के साथ बातचीत में पता चला कि चैटजीपीटी सकारात्मक बातचीत करने, सक्रिय रूप से सुनने और स्पष्ट चिकित्सा सलाह देने में बहुत प्रभावी नहीं है। यह पाया गया कि चैटजीपीटी चिकित्सक के लिए बातचीत का सार निकालते समय महत्वपूर्ण विवरण में चूक कर सकता है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि एक ही रोगी से कई वार्तालापों के बाद नयी इनसाइट (अंतर्दृष्टि) खोजने के लिए चैटजीपीटी का उपयोग किया जा सकता है। ऐसे में यह चिकित्सकों के लिए एक मूल्यवान उपकरण बन सकता है।
डॉक्टरों का क्या कहना है
संस्था के प्रभारी डॉ उमेश बताते हैं कि आनेवाला समय एआइ का ही है। ऐसे में बेहतर इलाज के लिए बेहतर तकनीकी चाहिए। एआइ के जरिए जितना अच्छा डाटा सिस्टम में होगा उतना ही अच्छा इलाज होगा। चैट-जीपीटी जैसी तकनीक इसमें काफी सहायक हो सकती है। सीआइपी में जल्द ही यह काम शुरू होगा। वहीं, सीआइपी के निदेशक डॉ बासुदेव दास बताते हैं कि अब तक देश के किसी मनोचिकित्सा संस्थान से एआइ से इलाज शुरू करने की सूचना नहीं है। सीआइपी इसकी शुरुआत कर रहा है। समय के साथ इलाज की तकनीकी में भी बदलाव हो रहा है। यह उसी का एक हिस्सा है।