L19 DESK : शारदीय नवरात्र आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन से शुरू होता है। नवरात्रि का शुभारंभ प्रतिपदा तिथि पर घट स्थापना के साथ होता है। घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 41 मिनट से लेकर 11 बजकर 56 मिनट तक है। वहीं अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना करना और भी शुभ माना जाता है। अभिजीत मुहूर्त 15 अक्टूबर यानी आज सुबह 11 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना से भक्तजनों का नौ दिनों का उपवास सह पूजन कार्यक्रम शुरू हुआ।
मार्केण्डय पुराण के अनुसार, पर्वतराज यानी शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। साथ ही माता का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। इसके अलावा शैलपुत्री को सती, हेमवती और उमा के नाम से भी जाना जाता है। घोर मां शैलपुत्री के दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। मां शैलपुत्री को स्नेह, करूणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना जाता है।
क्या है मां शैलपुत्री पूजा की विधि
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री को धूप, दीप दिखाकर अक्षत, सफेद फूल, सिंदूर, फल चढ़ायें। मां के मंत्र का उच्चारण करें और कथा पढ़ें। भोग में आप जो भी दूध, घी से बनी चीजें लाएं हैं वो चढ़ायें। फिर हाथ जोड़कर मां की आरती उतारें। आखिर में अनजाने में हुई गलतियों की माफी मांगे और हमेशा आशीर्वाद बनाए रखने की माता रानी से प्रार्थना करें।
पौराणिका कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया। राजा दक्ष ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए शिव जी को यज्ञ में नहीं बुलाया। देवी सती यज्ञ में जाना चाहती लेकिन शिव जी ने वहां जाना उचित नहीं समझा। सती के प्रबल आग्रह पर उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। यहां सती ने जब पिता द्वारा भगवान शंकर के लिए अपशब्द सुने तो वह पति का निरादर सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ की वेदी में कूदकर देह त्याग दी। इसके बाद मां सती ने पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। देवी शैलपुत्री अर्थात पार्वती का विवाह भी भोलेनाथ के साथ हुआ।