L19 DESK : आज यानि 21 सितंबर को विभिन्न जन संगठनों का प्रतिनिधिमंडल राज्य पुलिस के स्पेशल ब्रांच के आईजी प्रभात कुमार से मुलाक़ात की। डीजीपी से मिलने की मांग पर डीजीपी ने आईजी को नियुक्त किया था। प्रतिनिधिमंडल ने पुलिस महानिदेशक को संबोधित संलग्न मांग पत्र दिया जिसमें मामले का पूर्ण विवरण है। 20 सितंबर 2023 को शुभम संदेश अखबार व लगातार न्यूज़ पोर्टल में ’64 संगठनों की होगी जांच, प्रतिबंधित भाकपा माओवादी से संबंध होने का संदेह’ शीर्षक के साथ संलग्न खबर छपी थी।
इस खबर के अनुसार 64 संगठनों की सूची बनाई गयी है जिनपर भाकपा (माओवादी) से तथाकथित संबंध होने का संदेह है। झारखंड पुलिस की ओर से स्पेशल ब्रांच को इन 64 संगठनों की जांच करने का आदेश दिया गया है। हालांकि इस न्यूज़ रिपोर्ट में खबर के सूत्र का हवाला नहीं दिया है लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्पेशल ब्रांच के पुलिस अधीक्षकों व उपाधिक्षकों को भेजा गया विभागीय पत्र का एक हिस्सा व इन संगठनों की सूची सोशल मीडिया पर सर्क्युलेट हो रही है। इसमें इन संगठनों को भाकपा (माओवादी) के अग्रसंगठन होने का संदेह कहा गया है।
इसके विरुद्ध सूची में शामिल अनेक जन संगठन (जो पत्र के हस्ताक्षरी हैं) अचंभित और व्यथित हैं। इन संगठनों द्वारा लगातार राज्य के आदिवासी, दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों व वंचितों के संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया जाता रहा है। ये संगठन लगातार निम्न मुद्दों पर संघर्ष करते आए हैं – जल, जंगल, ज़मीन पर अधिकार, विस्थापन के विरुद्ध, सांप्रदायिक सौहार्द, सांप्रदायिक हिंसा के विरुद्ध, सामाजिक-आर्थिक अधिकार जैसे मनरेगा, खाद्य सुरक्षा, पेंशन आदि, प्रवासी मजदूर,किसानों के अधिकार, आदिवासी स्वशासन व्यवस्था, मानवाधिकार उल्लंघन व हिंसा जैसे लिंचिंग, फर्जी मामले दर्ज़ होना, फ़र्जी एंकाउंटर आदि। साथ ही, ये संगठन पीड़ितों को व आदिवासी-मुलवासी, वंचितों को उनके अधिकारों के लिए संगठित करने, प्रशासनिक व कानूनी सहयोग देने में अग्रसर रहे हैं।
इसके लिए संगठनों द्वारा लगातार मुद्दों को सार्वजनिक करना, बयान जारी करना, प्रशासनिक व पुलिस पदाधिकारियों से मिलना, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों से वार्ता स्थापित करने जैसे कार्य किए जाते रहे हैं। इन संगठनों द्वारा हमेशा संवैधानिक दायरे में शांतिपूर्ण लोकतान्त्रिक संघर्ष किया जाता रहा है। इन संगठनों द्वारा उठाए गए अनेक मुद्दों का विभिन्न मंत्रियों व मुख्यमंत्री ने खुद संज्ञान लिया है। इस परिप्रेक्ष में इन संगठनों पर भाकपा (माओवादी) से जुड़े होने का आरोप लगाना राज्य के आदिवासी, दलित, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और वंचितों के जन अधिकारों की अवधारणा पर ही सवाल करने के बराबर है।
ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य पुलिस नहीं चाहती कि लोग अधिकारों के लिए संवैधानिक संघर्ष करें एवं अधिकारों के उल्लंघनों के विरुद्ध शांतिपूर्ण लोकतान्त्रिक विरोध दर्ज़ करें। लोकतांत्रिक अधिकारों पर लगातार संघर्ष कर रहे लोगों व संगठनों में दमन का माहौल पैदा करने की मंशा झलकती है। यह लोकतंत्र को सीमित करने की दिशा में कदम प्रतीत होता है। यह पुलिस की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े करती है। बिना किसी सबूत के ऐसे सभी संगठनों पर भकपा (माओवादी) का अग्रसंगठन होने का संदेह करना अत्यंत चिंतनीय है।
मूल सवाल है कि इस सूची को बनाने का तथ्याधार क्या है। पत्र के हस्ताक्षरी सभी संगठनों ने समूहिक रूप से पुलिस महानिदेशक से मांग की है कि अखबार में छपी इस खबर की पुष्टि की जाए। अगर राज्य पुलिस द्वारा ऐसी सूची बनाई गयी है व जन अधिकारों पर संवैधानिक दायरे में शांतिपूर्वक रूप से संघर्षरत जन संगठनों पर इस प्रकार का आरोप लगाया जा रहा है, तो तुरंत राज्य पुलिस इस सूची को खारिज करें, संबन्धित स्थानीय पुलिस पदाधिकारियों को सूचित करे एवं लोकतन्त्र को बहाल करने में अपनी भूमिका निभाए। आईजी ने कहा कि इससे संबन्धित clarification एक सप्ताह में प्रकाशित किया जाएगा। पत्र की प्रतिलिपि मुख्यमंत्री की प्रधान सचिव व गृह सचिव को भी दिया गया है।