L19 DESK : एक पुरानी कहावत है करे कोई भरे कोई । यह मुहावरा झारखंड राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (जेयूवीएनएल) के लिए फिट बैठता है । यहां के कर्मियों के लिए एक कल्याण कोष का गठन किया गया था । इस कोष का उद्देश्य कर्मियों की जरूरत के समय वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है । पर इस सोसाइटी के अध्यक्ष, सदस्य तथा अन्य अथोराइज्ड सिग्नेटरी (यानी अधिकृत हस्ताक्षर करनेवाले) ने ही गड़बड़ी कर दी । जिन्होंने गड़बड़ी की, अब वही जांच भी कर रहे हैं ।
यानी जेयूवीएनएल के पदाधिकारी कल्याण कोष से ढाई करोड़ रुपये का गबन हो गया और निम्न वर्गीय लिपिक अरविंद कुमार एक अक्तूबर 2022 को सलाखों के पीछे चले गये । आरोप यह है कि अरविंद कुमार झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड के लेखा शाखा में चतूर्थ वर्गीय कर्मी हैं और कि उसने कल्याण कोष के अथोराइज्ड सिग्नेटरी के चेक से पैसा अपने खाते में डलवाया । पदाधिकारी कल्याण कोष के खाते का संचालन जयंत प्रसाद नामक अधिकारी करते हैं, जो जेयूवीएनएल में महाप्रबंधक वित्त के पद पर हैं ।
इसके अलावा एक एन्य अधिकारी वीपी दुबे भी अथोराइज्ड सिग्नेटरी थे । जयंत प्रसाद के बारे में बताया जाता है कि वे कल्याण कोष के पैट्रोन और कस्टोडियन भी हैं । इनकी मिलीभगत से अकुशल श्रमिक अरविंद कुमार के खिलाफ 30 सितंबर 2022 को प्राथमिकी दर्ज कराते हुए घोटाले का सारा ठीकरा फोड़ दिया गया औऱ उन्हें निलंबित भी कर दिया गया ।
क्या है पूरा मामला
झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड के पदाधिकारी कल्याण कोष से 2014 से लगातार चार वर्षों तक पैसे की निकासी की गयी। इसके लिए पैट्रोन औऱ कस्टोडियन जयंत प्रसाद की तरफ से चेक निर्गत किये गये थे । निगम के बैंक खातों का संचालन और उसके निकासी और व्ययन पदाधिकारी (डीडीओ) भी जयंत प्रसाद नमित थे. जब पैसे की निकासी लगातार हो रही थी, तो क्या जयंत प्रसाद ने कभी उस पर रक नहीं लगायी । क्या बैंक खाते के संचालन को लेकर दिये गये मोबाइल नंबर पर मैसेज कभी नहीं आया । इस घटना को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया।
आश्चर्य की बात यह है कि अब तक इस कांड में संलिप्त किसी भी अधिकारी अथवा लापरवाह पदाधिकारी का नाम सामने नहीं आया है. जो संदेह उत्पन्न करता है । जेयूवीएनएल की तरफ से एक जांच कमेटी भी बनायी गयी है. जिसके संचालन पदाधिकारी अजय कुमार हैं, जो जीएम फायनांस हैं, ये जांच करेंगे की चेक पर सिग्नेचर किसका था ।
ऊर्जा विकास निगम के कल्याण कोष से 2.33 करोड़ रुपए के घोटाले के बारे में कहा जाता है कि एक अगस्त 2014 से लेकर 2018 तक अवैध निकासी की गयी । इस समय के कैश बुक, चेक बुक, चेक लिस्ट तथा अन्य दस्तावेजों के गायब होने की बातें कही गयी । इसमें संलिप्त अन्य लोगों के बारे में अब तक निगम की जांच में खुलासा नहीं हो पाया है । अरविंद कुमार एक साल से अधिक समय से बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा में बंद हैं ।
वहीं जयंत प्रसाद और अन्य दोषी अधिकारी जांच के दायरे से अब तक बाहर हैं । बताया जाता है कि जयंत प्रसाद पहले क्षेत्रीय कार्यालय में पदस्थापित थे, बाद में इन्होंने अपनी पोस्टिंग मुख्यालय में करा ली । इनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने रांची में घोटाले की अवधि में तीन-चार अपार्टमेंट लिये हैं. इसकी भी जांच होनी चाहिए. सूत्रों का कहना है कि जांच प्रभावित न हो, इसका पूरा फायदा जयंत प्रसाद उठा रहे हैं ।
इस बाबत जीएम फायनांस जयंत प्रसाद से बातचीत करने की कोशिश की गयी, उन्होंने बड़े साफगोई से कहा कि मामले की जांच हो रही है, मुझे कुछ पता नहीं । जब उनसे यह सवाल किया गया कि आखिर 2014 से 2018 तक ढाई करोड़ तक की निकासी आपके हस्ताक्षरित चेक से की गयी, तो उन्होंने चुप्पी साध ली