L19 Desk : रघुवर दास झारखंड की राजनीति में एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया, और फिर वापस से फर्श पर आ गये। भारतीय जनता पार्टी में महज़ एक कार्यकर्ता के तौर पर अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले रघुवर दास सालों तक विधायक बने रहे, अपने क्षेत्र में पकड़ इतनी मजबूत कि हार का नाम भी नहीं जानते थे। एक दिन उनकी किस्मत ऐसी बदली कि सीधे सर्वोच्च पद पर पहुंच गये। उन्हें झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में बतौर एक गैर आदिवासी, मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
लेकिन आगे चलकर समय ने अपना भयावह रूप दिखाया और कभी न हारने वाले रघुवर दास मुख्यमंत्री रहते अपने विधानसभा क्षेत्र पर मात खा गये, वह भी अपने ही धुर विरोधी सरयू राय के हाथों। इसके बाद उनकी राजनीति जो अर्श पर पहुंच चुकी थी, वह वापस धरातल पर आ गयी। रघुवर दास मुंह के बल ऐसे गिरे कि अब तक सही से उठ नहीं पाये। उन्हें उसी अवस्था में उठाकर पार्टी ने पड़ोसी राज्य का गवर्नर बना दिया, लेकिन बीते दिनों एक बार फिर से झारखंड की राजनीति में उनकी वापसी करायी गयी। आज रघुवर दास एक ऐसे मुकाम पर खड़े हैं, जहां से या तो उनकी सियासत एक नया मोड़ लेगी, फिर से उड़ान भरेगी, या फिर गर्क में चली जायेगी।
करीब 14 महीनों तक ओडिशा के राज्यपाल पद पर रहने के बाद रघुवर दास ने 24 दिसंबर 2024 को पद से इस्तीफा दे दिया था. 25 दिसंबर को पुरी में जगन्नाथ स्वामी की पूजा के बाद उन्होंने कहा था कि पार्टी तय करेगी कि हमारी अगली भूमिका क्या होगी। उसके बाद से ही ये खबर पूरे मीडिया जगत में छा गयी कि रघुवर दास झारखंड की राजनीति में वापसी करने जा रहे हैं। हालांकि उनकी भूमिका को लेकर संशय की स्थिति थी।
इसके बाद 10 जनवरी को उन्होंने आधिकारिक रूप से एक बार फिर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। उनकी वापसी से उनके समर्थकों और चाहनेवालों में खुशी की लहर दौड़ गयी। रघुवर दास वापस पहले वाले तेवर में नज़र आये। उन्होंने ये तक कह दिया कि सीएम थे, सीएम हैं, औऱ सीएम ही रहेंगे। मगर, उन्होंने सीएम की परिभाषा थोड़ी चेंज कर दी, चीफ मिनिस्टर से इसे कॉमन मैन बना दिया।
अब भले ही बार बार वह खुद को कॉमन मैन करार दे रहे हों, लेकिन भाईसाहब, शेर के मुंह में एक बार खून लग गया, उसके बाद उसे उसकी तलब होने लगती है। ठीक ऐसे ही, राजनीति का स्वाद एक बार चख लेने के बाद आम आदमी वाला मज़ा कहां आता है। कुछ ऐसी ही स्थिति इस वक्त झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की भी है, जिनके मुंह को नेतृत्व का स्वाद लग चुका है, अब उन्हें नेतृत्वकर्ता वाला ही पद चाहिये। लेकिन सवाल ये है कि क्या उनकी ख्वाहिश पूरी हो पायेगी ?
ये सवाल इसलिये क्योंकि झारखंड में बीजेपी के पतन का कारण रघुवर दास को माना जाता है। सीएनटी-एसपीटी एक्ट में छेड़छाड़, स्थानीय नीति, नियोजन नीति जैसे मुद्दों ने बीजेपी को गर्त में डाल दिया। उस झटके से पार्टी आज तक नहीं उबर पायी है। इस बार के चुनाव में भी भाजपा को तगड़ा झटका लगा। ऐसे में रघुवर दास को वापस नेतृत्व सौंपना पार्टी के लिये थोड़ा मुश्किल है। दूसरी ओर पार्टी में और भी नेता हैं, जो ऊंची कुर्सियों में बैठने की ख्वाहिश रखते हैं। ऐसे में रघुवर दास की वापसी का कोई बड़ा असर शायद ही हो पायेगा। फिलहाल, झारखंड में उनका कोई स्कोप नहीं दिख रहा है।
हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे भाजपा के बड़े नेताओं के करीबी होने का फायदा तो रघुवर दास को भरपूर मिलने की संभावना है। माना जा रहा है कि केंद्र की राजनीति में उन्हें कोई बड़ा रोल दे दिया जाये, क्योंकि पहले भी रघुवर दास भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जैसे बड़े पद पर रह चुके हैं। ऐसे में एक बार फिर संभावना है कि रघुवर दास को इससे ही मिलता जुलता ही कोई पद देकर फुसला लिया जायेगा। खैर, अब देखना होगा कि रघुवर दास की राजनीति और कौन से नये मोड़ लेती है।