L19/DESK : क्या आपने कभी मंदिर में आदिवासियों का धार्मिक अतिक्रमण देखा है? क्या आपने कभी धर्म के नाम पर आदिवासियों का तांडव देखा है?? नहीं देखा है और ना कभी देखिएगा क्योंकि शांतिप्रिय प्रकृति प्रेमी आदिवासी ना तो कभी किसी दुसरे धर्म संस्कृति पर हावी हुए हैं ना ही दूसरों के दखल देते हैं है, क्योंकि इनका अपना स्वभाव रहा है जो पूर्ण रूप से जल जंगल जमीन से आधारित है इनकी मातृभूमि और आराध्य देवी देवता भी। लेकिन पिछले दो तीन दशकों से आदिवासियों के धार्मिक स्थलों और उनकी संस्कृतियों पर एक सुनियोजित तरीके से लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है जिसका ताजातरीन उदाहरण पिठौरिया सूतियांबे मुड़हर पहाड़ है। जो कि मुंडा आदिवासियों का पवित्र पूजा स्थल से लेकर ऐतिहासिक राजनीति भूमि रही है जहां से मुंडाओं ने आज से 2700 साल पहले गणतंत्र क्या होता है शासन व्यवस्था कैसी चलाई जाती है इसका मिशाल पूरी दुनिया को बताया।
यदि आप प्राचीन इतिहास की थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं तो आपको मालूम होनी चाहिए कि भारत के प्राचीन इतिहास में हड़प्पा सभ्यता आज से लगभग 4500 साल पहले इस देश में एक नगरी शासन व्यवस्था थी हालांकि इस सभ्यता के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है लेकिन हड़प्पा सभ्यता युग से ही झारखंड की धरती पर आदिवासियों के निवास का प्रमाण मिलता है। इसके बाद वैदिक काल आता है जहां से भाषा का विकास के साथ साहित्यिक रचनाएं शुरू होने लगती है और इंसानी सभ्यता की पूर्ण जानकारी हमें मिलती है 1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच हमारे देश में 16 महाजनपद हुआ करता था और इन 16 महाजनपदों के दौर में ही झारखंड में मुंडाओं का आगमन माना जाता है।
जी हां ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर आज से 600 ईसा पूर्व पूर्व यानी अभी के समय में हम हिसाब करें तो लगभग 2600 साल पहले झारखंड में मुंडा जनजातियों का आगमन होता है, हालांकि उनके आगमन को लेकर इतिहासकारों में कई तरह के विवाद है कुछ इतिहासकार मुंडाओं के आगमन को तिब्बत से जोड़ते हैं जबकि अधिकतर इतिहासकार इन्हें दक्षिण भारत के निवासी मानते हैं जो कालांतर में आर्यों के आक्रमण से बचने के लिए और अपने साम्राज्य का विस्तार करते-करते झारखंड की भूमि पर कदम रखते हैं। क्या आपने कभी मंदिर में आदिवासियों का धार्मिक अतिक्रमण देखा है? क्या आपने कभी धर्म के नाम पर आदिवासियों का तांडव देखा है?? नहीं देखा है और ना कभी देखिएगा क्योंकि शांतिप्रिय प्रकृति प्रेमी आदिवासी ना तो कभी किसी दुसरे धर्म संस्कृति पर हावी हुए हैं ना ही दूसरों के दखल देते हैं है क्योंकि इनका अपना स्वभाव रहा है जो पूर्ण रूप से जल जंगल जमीन से आधारित है क्योंकि यही इनकी मातृभूमि और आराध्य देवी देवता भी।
लेकिन पिछले दो तीन दशकों से आदिवासियों के धार्मिक स्थलों और उनकी संस्कृतियों पर एक सुनियोजित तरीके से लगातार अतिक्रमण किया जा रहा है जिसका ताजातरीन उदाहरण पिठौरिया सूतियांबे मुड़हर पहाड़ है। जो कि मुंडा आदिवासियों का पवित्र पूजा स्थल से लेकर ऐतिहासिक राजनीति भूमि रही है जहां से मुंडाओं ने आज से 2700 साल पहले गणतंत्र क्या होता है शासन व्यवस्था कैसी चलाई जाती है इसका मिशाल पूरी दुनिया को बताया। तो आखिर मुड़हर पहाड़ को की मुंडाओं का ऐतिहासिक स्थल क्यों कहा है और झारखंड में मुंडाओं का इतिहास कैसा रहा है आइए आज हम इस पर थोड़ी जानकारी प्राप्त करते हैं जोहार मैं हूं गोविंद टोप्पो और आप देख रहे हैं लोकतंत्र 19 यदि आप प्राचीन इतिहास की थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं तो आपको मालूम होनी चाहिए कि भारत के प्राचीन इतिहास में हड़प्पा सभ्यता आज से लगभग 4500 साल पहले इस देश में एक नगरी शासन व्यवस्था थी हालांकि इस सभ्यता के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है लेकिन हड़प्पा सभ्यता युग से ही झारखंड की धरती पर आदिवासियों के निवास का प्रमाण मिलता है।
इसके बाद वैदिक काल आता है जहां से भाषा का विकास के साथ साहित्यिक रचनाएं शुरू होने लगती है और इंसानी सभ्यता की पूर्ण जानकारी हमें मिलती है 1000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच हमारे देश में 16 महाजनपद हुआ करता था और इन 16 महाजनपदों के दौर में ही झारखंड में मुंडाओं का आगमन माना जाता है। जी हां ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर आज से 600 ईसा पूर्व पूर्व यानी अभी के समय में हम हिसाब करें तो लगभग 2600 साल पहले झारखंड में मुंडा जनजातियों का आगमन होता है, हालांकि उनके आगमन को लेकर इतिहासकारों में कई तरह के विवाद है कुछ इतिहासकार मुंडाओं के आगमन को तिब्बत से जोड़ते हैं जबकि अधिकतर इतिहासकार इन्हें दक्षिण भारत के निवासी मानते हैं जो कालांतर में आर्यों के आक्रमण से बचने के लिए और अपने साम्राज्य का विस्तार करते-करते झारखंड की भूमि पर कदम रखते हैं।
झारखण्ड की जनजातियों में मुण्डाओं ने ही सर्वप्रथम राज्य निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ की। रिता मुण्डा को ही सर्वप्रथम झारखण्ड में राज्य निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का श्रेय जाता है। > ऋषा मुण्डा ने सुतिया पाहन को मुण्डाओं का शासक नियुक्त किया और इस नवस्थापित राज्य का नाम सुतियापाहन के नाम पर सुतिया नागखण्ड पड़ा। सुतिया नागखण्ड नामक इस राज्य को सुतिया पाहन ने सात गढ़ों और 21 परगना में विभक्त किया। जी हां यह 21 परगना उत्तरी छोटनगपुर के हजारीबाग से से लेकर दक्षिणी छोटानागपुर के लोहरदगा कोल्हान के चाईबासा और छत्तीसगढ़ के सरगुजा तक फैली थी जहां मुंडाओं के द्वारा पारंपरिक शासन व्यवस्था के तहत राज्य का संचालन होता था। मुंडाओं के अंतिम राजा मदरा मुंडा को माना जाता है जिन्होंने मुंडा साम्राज्य का स्थानांतरण नागवंशी शासको को सौंप कर मुंडा साम्राज्य का अंत किया और झारखंड में नागवंशी शासन व्यवस्था की शुरुआत हुई जो भारत की आजादी यानी 1947 तक बरकरार रही और इस वंश ने मुंडाओं के शासन व्यवस्था को ही अपने राज्य शासन में अपना और राज्य पर शासन चलाया।
समय के साथ मुंडाओं की आबादी धीरे-धीरे झारखंड में बढ़ती गई और वर्ष 2011 के सेंसेक्स के अनुसार वर्तमान में झारखंड में मुंडाओं की कुल आबादी लगभग 12.50 लाख से ऊपर पाई जाती है। प्राचीन समय से ही मुंडा जनजाति की अपनी एक सामाजिक स्वशासन व्यवस्था रही है समाज में घटित होने वाले सामाजिक धार्मिक आर्थिक सांस्कृतिक और आपराधिक मामलों का निपटारा इसी शासन व्यवस्था के द्वारा होता आया है। इस व्यवस्था को महाजनपद काल के वैशाली साम्राज्य के लिछवि वंश के राजाओं ने भी अंगीकृत किया था। उस वक्त की व्यवस्था एक खुट कट्टीदार व्यवस्था थी खुट का मतलब परिवार होता है। ये लोग प्रारंभ में जंगलों को साफ करके खेत और गांव बसाए उनके द्वारा बसाया हुआ गांव खुटकट्टीदार गांव कहलाने लगा और उनके द्वारा बनाया गया खेत खुट्टकटी खेत। इतनी लंबी कालावधी के साथ झारखंड के धरती पर मुंडाओं ने स्वशासन व्यवस्था की जो पौधा रोपी उसकी छांव कहीं ना कहीं आज भी हमें देखने को मिलती है।