L19 Desk : 22 दिसंबर 1855 और 22 दिसंबर 2003 के ऐतिहासिक विजय को सेंगेल हासा – भाषा जीतकर माहा अर्थात हासा भाषा विजय दिवस सर्वत्र मनाने का संकल्प लेता है। क्योंकि महान वीर शहीद सिदो मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष एवं बलिदान का प्रतिफल 22 दिसंबर 1855 को संथाल परगना जिला (देश) और संताल परगाना कानून स्थापित हुआ था। उसी तर्ज पर पूर्व सांसद और संताली भाषा मोर्चा के अध्यक्ष सालखन मुर्मू के नेतृत्व में लंबे संघर्ष और आंदोलन से 22 दिसंबर 2003 को संथाली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हुआ है। हासा- भाषा विजय दिवस में शामिल झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम आदि के प्रतिनिधियों ने मांग रखा कि राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त संताली भाषा को अविलंब झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा प्रदान किया जाय।
2) सरना धर्म कोड की मान्यता मामले पर मान्य प्रधानमंत्री का उलिहातू दौरा (15 11 2023) और महामहिम राष्ट्रपति का बरिपदा दौरा (20.11.2023) बेकार साबित हुआ है। प्रकृति पूजक आदिवासियों को धार्मिक आजादी से वंचित रखने के लिए कांग्रेस और बीजेपी सर्वाधिक दोषी हैं। सेंगेल क्षोभ और चिंता व्यक्त करता है। सरना धर्म स्थलों – मरांग बुरु, लुगु बुरु, अयोध्या बुरु आदि की सुरक्षा और संवर्धन की मांग करता है। 3) भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें सरना धर्म कोड को अविलंब मान्यता प्रदान करें। अन्यथा 30 दिसंबर 2023 भारत बंद रहेगा। रेल रोड चक्का जाम रहेगा।
4) आदिवासी एकता और आंदोलन को सफल बनाने एवं संविधान- कानून प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने में आरक्षित सीटों से जीतने वाले अधिकांश आदिवासी जनप्रतिनिधि ( एमएलए, एमपी, मंत्री, मुख्यमंत्री आदि ) बेकार साबित हो रहे हैं। अधिकांश आदिवासी जन संगठन भी उनकी दलाली कर समाज को गुमराह कर रहे हैं। आदिवासी स्वशासन व्यवस्था ( ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम) में अभिलंब जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार अनिवार्य हैं। क्योंकि यह परंपरागत वंशानुगत व्यवस्था भी आदिवासी समाज में आदिवासी समाज- सुधार लाने और गांव- समाज में एकजुटता लाने में अब तक असफल साबित हुआ है। अंततः नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, वोट की खरीद बिक्री, धर्मांतरण आदि जारी है।
5) सेंगेल किसी पार्टी और उसके वोट बैंक को बचाने के बदले आदिवासी समाज को बचाने के लिए चिंतित है। चुनाव कोई भी जीते आदिवासी समाज की हार निश्चित है। आजादी के बाद से अब तक आदिवासी समाज हार रहा है, लुट- मिट रहा है। क्योंकि अधिकांश पार्टी और नेता के पास आदिवासी एजेंडा और एक्शन प्लान नहीं है। अंततः अभी तक हम धार्मिक आजादी से भी वंचित हैं। अतः फिलवक्त सरना धर्म कोड आंदोलन हमारी धार्मिक आजादी के साथ वृहद आदिवासी एकता और भारत के भीतर आदिवासी राष्ट्र के निर्माण का आंदोलन भी है। सेंगेल का नारा है – “आदिवासी समाज को बचाना है तो पार्टी की गुलामी मत करो, समाज की बात करो और काम करो। आदिवासी हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि की रक्षा करो। मगर जो सरना धर्म कोड देगा, आदिवासी उसको वोट देगा।