L19 DESK : इलाज के नाम पर अस्पतालों में मनमाना रकम वसूला जा रहा है। यही नहीं, एक ही इलाज या सर्जरी के लिये अलग अलग अस्पतालों में अलग अलग रेट हैं। और आजकल तो बेहतर मेडिकल सुविधा के नाम पर सुपर स्पेशियेलिटी अस्पताल बनकर खड़े हो गये हैं। मगर इलाज के लिये जब फीस लेने की बारी आती है, तब ये मनचाहा रकम वसूलने लगते हैं। झारखंड के विभिन्न शहरों में करीब 18 से 20 मल्टी औऱ सुपर स्पेशियेलिटी अस्पताल स्थापित हो गये हैं। अभी भी और ऐसे अस्पताल बन ही रहे हैं। इनमें से 3, 4 पहले से ही संचालित हो रहे थे, मगर बाद में वे भी मल्टी और सुपरस्पेशियेलिटी अस्पतालों में तब्दील हो गये।
छोटे अस्पताल कम रेट, बड़े अस्पताल 50% ज्यादा रेट
सुपर स्पेशियेलिटी अस्पताल दरअसल, वे अस्पताल होते हैं जहां किसी विशेष चिकित्सा के क्षेत्र में एक्सपर्टिज होती है। ये अस्पताल उच्च तकनीकी उपकरणों और विशेषज्ञ चिकित्सकों से लैस होते हैं। मगर हैरत की बात तो ये है कि बेहतर और आधुनिक सुविधाओं के नाम पर ये सुपर स्पेशियेलिटी अस्पताल छोटे अस्पतालों या क्लिनिक्स के मुकाबले 50 फीसदी तक ज्यादा फीस चार्ज करते हैं। मीडिया रिपोर्ट से ये बात भी साफ होती है कि अस्पताल बदलते ही खर्च भी बढ़ जाता है।
उदाहरण के तौर पर सामान्य गॉल ब्लैडर में स्टोन की सर्जरी के लिये सर्जन की क्लिनिक में करीब 25 से 30 हजार रुपये के खर्च आते हैं। वहीं, जब मरीज छोटे या ट्रस्ट द्वारा संचालित किसी अस्पताल में जाते हैं, तो वहां इसी सर्जरी का खर्च करीब 45 से 50 हजार तक का आता है। और यही ऑपरेशन सुपिर स्पेशियेलिटी अस्पतालों में करीब 70 से 80 हजार रुपये में की जाती है। इससे समझा जा सकता है कि सुपर स्पेशियेलिटी के नाम पर सामान्य गॉल ब्लैडर जैसी सर्जरी के लिये भी किस तरह से मरीजों को ठगा जा रहा है।
अलग अलग अस्पतालों में अलग अलग हैं डॉक्टरों के रेट
यही नहीं, रिपोर्ट ये भी बताते हैं कि शहरभर के सर्जन अपनी क्लिनिक के अलावा, दूसरे अस्पतालों में भी बैठते हैं। और दोनों जगहों की फीस में काफी अंतर होता है। बीमारी और डॉक्टर तो वही होते हैं, पर इलाज का चार्ज सीधा ऊचाइंयों पर होता है। इसे उदाहरण के तौर परआप खुद भी देख सकते हैं जब आपको दांत से संबंधित कोई परेशानी होती है। तब सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर आपको अपने निजी क्लिनिक में इलाज कराने की सलाह देते हैं, जहां वे सेम इलाज के लिये मोटी रकम वसूल लेते हैं। मगर इलाज आप कहीं भी करा लें, डॉक्टरों की लापरवाही से आप पीछा नहीं छुड़ा सकते।
मरीजों के साथ किसी तरह की कोई लापरवाही बरती जाती है, तो डॉक्टर और अस्पताल प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट जाते हैं. इस रिपोर्ट से ये बात बिलकुल साफ है कि अस्पताल में मरीजों के साथ शोषण हो रहा है। निजी अस्पताल केवल बिजनेस मॉडल बन कर रह गये हैं।
इस तरह की मनमानी पर सरकार को अपने स्तर से इसपर संज्ञान लेना चाहिये, सोंच विचार करना चाहिये। निजी अस्पतालों में इलाज के लिये एक अधिकतम चार्ज फिक्स होना चाहिये, जिससे मरीजों को बेहतर इलाज किफायती दरों पर मिल सके। वैसे ये खबर आपको कैसी लगी, ये हमें कमेंट करके जरूर बतायें।