आदिवासी संगठन एकजुट हों, सबकी समस्याओं पर गौर करें
इतिहासकारों ने आदिवासी नेताओं को अपनी लेखनी में नहीं दर्शाया
L19 DESK : विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि आज के नीति निर्माता आदिवासियों की जमीन, संस्कृति, भाषा को महत्व नहीं दे रहे हैं। आदिवासी किसी से भीख नहीं मांगता है। हम इस देश के मूल वासी हैं। हमारे पूर्वजों ने जंगल, पहाड़, जमीन बचाया। हमें जंगल में रहनेवाले गरीब के रूप में नहीं देखना चाहिए। एक आम देशवासी के प्रति आदिवासी समाज के प्रति सम्मान और सहयोग की भावना उत्पन्न हो। आदिवासी संगठनों के बीच संवाद स्थापित हो। इसकी वजह से मणिपुर, राजस्थान का मीणा, छत्तीसगढ़ की भील जाति, झारखंड का उरांव-हो जाति की समस्याओं को जानने की जरूरत है। आदिवासी जब गुस्सा हो जाता है, तो उसके पास से जुबान नहीं तीर और धनुष निकलते हैं।
राजधानी रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा (पुराना परिसर) में आयोजित कार्यक्रम में दिशोम गुरू शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री ने मौके पर आदिवासी दिवस से संबंधित डाक टिकट का विमोचन किया। मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के गठन के एक लंबे समय के बाद तीसरी बार आदिवासी महोत्सव आयोजित किया जा रहा है। पिछली बार घनघोर बारिश में भी इस कार्यक्रम को धूमधाम से मनाया गया। आज पुनः उस आदिवासी महोत्सव की अपेक्षा आज का यह महोत्सव और भी भव्य और उत्साह से भरा है। आज इस दो दिवसीय महोत्सव के उदघाटन बेला में मुझे बोलने का मौका मिला है। इस महोत्सव का एक मायने है। आज की परिस्थिति में यह दिवस और भी कई मायनों से महत्वपूर्ण है। दो दिन तक चलनेवाले कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्य से आये हुए आदिवासी समुदाय की नृत्य टोलियां अपना प्रदर्शन करेंगी। कई संगोष्ठी भी होगी।
आदिवासी अर्थव्यवस्था, आदिवासी मानव विज्ञान, आदिवासी साहित्य पर संगोष्ठी आयोजित किया जा रहा है। यहां आपको आदिवासी व्यंजन भी मिलेंगे, जो थालियों से गायब हो रही है। नृत्य, संगीत के साथ संगत आदिवासी समाज की पहचान है। मुख्यमंत्री ने कहा कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासी भाई बहन प्रताड़ना झेल रहे हैं। क्या मध्यप्रदेश, मणिपुर, गुजरात, तमिलनाडू, छत्तिसगढ़ में आदिवासियों के साथ प्रताड़ना हो रही है। आदिवासियों के घर जलाये जा रहे हैं। वर्चस्ववादी ताकतों, धार्मिक कट्टरपंथियों के साथ संघर्ष है। आदिवासी चिंतकों के साथ संघर्ष है। प्रकृति के खिलाफ चर्चा करनेवाले साहसी औऱ श्रमजीवी शक्तियां संघर्ष कर रही हैं।
देश के 13 करोड़ आदिवासी भाई बहनों को एक साथ लड़ने का आह्वान करता हूं। देश के आदिवासियों को एकजुट होना होगा। खून एक है, तो समाज भी एक ही होना चाहिए। हमारी समस्या की बनावट एक ही जैसी है। लड़ाई भी एक ही होना चाहिए। आदिवासी समाज को विस्थापन का दंश झेलना पड़ रहा है। केंद्र और राज्य सरकार में चाहे सरकारें किसी की भी हो। आदिवासियों के हित के बारे में काम नहीं किया गया। खदानों, डैम, कारखानों के द्वारा विस्थापित किये गये लोगों की कोई जानकारी नहीं लेता है। विस्थापित हुए लोगों में से 80 फीसदी आदिवासी हैं। कल का किसान आज साईकिल पर कोयला बेचने पर मजबूर है। बड़े शहरों में बर्तन मांजने, ईंट भट्ठों पर काम करने पर मजबूर हैं। हमारा झरिया शहर आग की भट्ठी में तप रहा है। लेकिन कोयला कंपनी और भारत सरकार कान में तेल डाल कर सोई हुई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विकास की चपेट में किसकी जमीन गयी, किसकी संस्कृति गयी, किसकी भाषा गयी, जो विस्थापित हुए वह कौन हैं। इतिहासकारों ने भी आदिवासियों के साथ बेईमानी की। आदिवासियों के इतिहास को दर्ज नहीं किया गया। अंगरेजों के खिलाफ संघर्ष को इतिहासकारों ने नहीं दर्शाया। इतिहासकारों ने हमारे पूर्वजों को जगह नहीं दी। आदिवासी समुदाय के कई भाषा विलुप्त हो रहे हैं। आदिवासी के पूज्य देवी-देवताओं को दूसरे अपना रहे हैं। लोग हमारे काम को छिनने में लगे हैं। हमें उनसे वंचित किया जा रहा है। हम आदिवासी मूलवासी हैं। आज आदिवासी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इतिहास में की गयी उपेक्षा के खिलाफ बोलने का प्रयास कर रहा है।
समाज की मुख्यधारा से हमेशा यह प्रयास किया गया है कि आदिवासी नीति निर्धारक नहीं बन पायें। 18 सौ ईस्वी के पूर्व का जिक्र आदिवासियों की गाथा में नहीं मिलता है। हमें क्रांति के नेतृत्वकर्ता में बांट दिया गया। इतिहास के हर वर्ग में आदिवासियों का योगदान रहा। लोक कल्याणकारी वंशों की स्थापना आदिवासी समाज ने की। सभ्यता, संस्कृति को गढ़ने में आदिवासी समाज के योगदान को पुनः परिभाषित किया जाये। आज भी देश में सबसे शोषित, प्रताड़ित आदिवासी समाज ही है। दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने विश्व आदिवासी दिवस पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं। सभी बच्चों को आदिवासी समुदाय पढ़ायें। आजीविका के साधन का उपयोग करें। जंगल नहीं है। जंगल समाप्त हो गया। फिर भी सखुआ का पौधा दिया गया। इसे अधिक से अधिक लगायें। आदिवासी आगे बढ़ें, पढ़ें लिखें। हम बराबरी नहीं कर सकते हैं।
केंद्र सरकार ने आरक्षण दिया। आरक्षण का लाभ लें। हमें आदिवासी दिवस को धूमधाम से मनाना चाहिए, ताकि हम अपनी पहचान को बचा सकें। गांव में लोग अपनी खेती-बाड़ी को महाजन के यहां दे देते थे, कर्ज लेते थे। अब महाजनी व्यवस्था से निकलने की जरूरत है। थाना-पुलिस से निजात पाने की जरूरत है। मौके पर सभी का स्वागत कल्याण सचिव ने किया। इस अवसर पर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह, डीजीपी अजय कुमार सिंह, सीएम की प्रधान सचिव वंदना डाडेल, सचिव विनय चौबे, विधायक अनुप सिंह, राजेश कच्छप और कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन मौजूद थे।