l19/DESK : हर तानाशाह का अंत एक दिन जरूर होता है। याद करिए हिटलर को जिनकी तानाशाही के कारण सेकंड वर्ल्ड वॉर हुआ था,लेकिन अंत में क्या हुआ?हिटलर ने खुद फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। याद करिए खाड़ी देश इराक को वहां भी कभी सद्दाम हुसैन का तानाशाह हुआ करता था, लेकिन जब वहां तख्ता पलट हुई तब उन्हें भी फांसी दी गई। यही हाल पाकिस्तान का भी है वहां पर हमेशा तख्ता पलट होते रहता है।इसलिए तानाशाही हद से अधिक नहीं होनी चाहिए।
अभी हाल ही में बांग्लादेश में जो कुछ देखने को मिला वह भी एक तानाशाही का ही उदाहरण है वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना बिगत 15 सालों से देश की बागडोर संभाल रही है। उन पर प्रारंभ से ही तानाशाही का आरोप लगता रहा है। देश के संवैधानिक ढांचों को एकीकृत करके खुद को पावरफुल बनाने का आरोप भी उन पर लगता रहा है।
जनता की आवाज को दबाना, मीडिया को खरीदना, विपक्ष की आवाज को दबाना,विपक्ष के सारे बड़े लीडरों को जेल में बंद करना, चुनाव में धांधली करना ऐसे दर्जनों आरोप शेख हसीना के ऊपर लगते रहे हैं। यही कारण है की बांग्लादेश की जनता काफ़ी वर्षो से परेशान थी और जब जनता परेशान होती है तो उसका परिणाम सबको पता है। उदाहरण के रूप में हम श्रीलंका को देख चुके हैं, किस तरह से सत्ता परिवर्तन किया गया था और वहां के राष्ट्रपति प्रधानमंत्री सबको देश छोड़कर भाग जाना पड़ा था,जनता सरकारी आवासों पर कब्जा की थी।
ठीक ऐसा ही दृश्य बांग्लादेश में भी देखने को मिल रहा है यहां भी तख्ता पलट लगभग हो चुका है सैनिक अपने सारे अधिकार खोल चुके हैं। शेख हसीना देश छोड़कर भाग चुकी है ऐसे में बांग्लादेश की वर्षों तानाशाही अब खत्म होने के कगार पर है।
वैसे वर्तमान की स्थिति कुछ और है जिसमें से प्रमुख मुद्दा है एक स्पेशल समुदाय को आरक्षण देना। वैसे आपको पता है 1971 में पूर्वी पाकिस्तान को अलग करके बांग्लादेश का गठन किया गया था जिसमें भारत की भागीदारी महत्वपूर्ण थी। शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान तत्कालीन बांग्लादेशी आंदोलन के बड़े लीडर हुआ करते थे बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने। लेकिन तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में कुछ पाकिस्तानी चरमपंथी विचारधारा के लोग भी थे जो बांग्लादेश अलग होने पर खुश नहीं थे। इधर शेख हसीना द्वारा 1971 बांग्लादेशी आंदोलन में लड़ाई लड़ने वाले परिवारों के लिए सरकारी नौकरियां शिक्षण संस्थानों में विशेष आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, जिसका देश की जनता विरोध कर रही थी और इस बार विरोध का नेतृत्व स्टूडेंट कर रहे थे। बीते कई महीनो से हो रहे आंदोलन में 20 से 25 विद्यार्थी की मौत भी हुई थी,ऐसे में आक्रोश देश में बढ़ता जा रहा था। धीरे-धीरे यह आक्रोश और बढ़ता गया क्योंकि शेख हसीना ने इन विद्यार्थी संगठनों को देश विरोधी गतिविधि के रूप में मानते हुए प्रतिबंधित कर दिया।
इन विद्यार्थी संगठनों को दबाने के लिए शेख हसीना ने तानाशाही रूप अपनाई जिसका परिणाम हुआ पूरा देश एकजुट हो गया,जगह-जगह आंदोलन होने लगे। ढाका, चटगांव जैसे बड़े शहरों पर लाखों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए। जनता का दवाब बढ़ता गया। इधर हसीना ने भी अपने तानाशाही रूप को और बढ़ाया और उस तानाशाही फरमान से सिर्फ जनता ही नहीं, बांग्लादेश के बड़े-बड़े अधिकारी और सैनिक भी नाराज थे। जिसका परिणाम हुआ देश में तख्ता पलट। इसलिए ठीक ही कहा जाता है तानाशाही भी एक हद और एक सीमा तक ही होनी चाहिए हद से ज्यादा होने पर उसका परिणाम होता है।।