L19 DESK : कहानी साल 1995 की है जब एक महिला पर गांव के पंचायत ने जादू टोना के जरिए पड़ोसी की बेटी को बीमार करने का आरोप लगा दिया था। इसके लिए पंचायत ने उस महिला पर 500 रुपए जुर्माना लगा दिया। महिला ने डर से जुर्माना तो भर दिया। मगर कहानी यहीं खत्म नहीं होती। बच्ची की हालत में कोई सुधार नहीं होने के कारण 4 सितंबर, 1995 को एक साथ 40–50 लोगों ने महिला के घर पर धावा बोला। उसे खींचकर घर से बाहर निकाला, देह से सारे कपड़े नोंच डाले, नग्न शरीर पर बेरहमी से पिटाई की, और तो और उसपर मलमूत्र भी फेंका। इस घटना के बाद से उनका गांव में गुजर बसर करना मुश्किल हो गया। पति के भी साथ छोड़ देने के बाद वह रातों रात अपने 3 बच्चों के साथ गांव से भाग निकली। इसी के साथ महिला ने प्रण लिया कि जो मेरे साथ हुआ वह और किसी के साथ नहीं होना चाहिये। अब वह एक वीरांगना के तौर पर अपनी पहचान स्थापित कर चुकी हैं जिसने करीब 150 महिलाओं की ज़िंदगी नरक होने से बचा लिया। यह महिला कोई और नहीं, बल्कि साल 2021 में पद्मश्री से सम्मानित छुटनी देवी हैं। छुटनी देवी अकेली ऐसी पीड़िता नहीं हैं जो डायन बिसाही जैसे कुप्रथा का शिकार हुई हैं। झारखंड राज्य में हर साल करीब 35 पुरुष और महिला डायन हत्या का शिकार होते हैं।
डायन किसे कहा जाता है?
अब जानते हैं कि ग्रामीणों की भाषा में डायन आखिर होती कौन है। डायन एक ऐसी महिला होती है, जो अलग-अलग तरीकों से इंसानों की जान ले लेती है। ऐसा समझा जाता है कि डायन कही जाने वाली महिला के पास अलौकिक शक्ति होती है, जो उसे प्रेत-साधना से हासिल होती है। अंधविश्वासी ऐसा मानते हैं कि कृष्ण पक्ष अमावस्या की रात में ऐसी महिलाएं श्मशान घाट पर जमा होती हैं। वहां वे निर्वस्त्र होकर कमर की चारों ओर झाड़ू लपेट लेती हैं तथा मंत्रों का उच्च्चारण करते हुए नृत्य करती हैं। और इसे भगाने के लिये गांववाले ओझा तांत्रिक के पास जाते हैं। ये ओझा तांत्रिक परिवार में घटित किसी घटना के बाद परिजनों को अपने झांसे में ले लेते हैं। अपनी रोजी रोटी को कायम रखने के लिये और अपनी पुरानी दुश्मनी का बदला लेने के लिये गांव की ही किसी महिला को डायन करार देते हैं। इसके बाद गांव वाले मिलकर महिला और उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार करते हैं और महिला को सजा देते हैं। कई मामलों में यह सजा जबरन मल पिलाने से लेकर हत्या का रूप ले लेती है। इसे लेकर बीते 23 जून को एक नागपुरी फिल्म नासूर एक प्रेम कथा थिएटर में रिलीज हुई है। इससे पहले भी डायन हत्या पर फिल्में बनी हैं और सामाजिक व्यवस्था पर सवाल खड़े कर चुकी हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े?
अब अगर आंकड़ों की बात करें तो देश भर में डायन बिसाही के सबसे ज्यादा मामले झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और असम से आते हैं। भारत में हर साल करीब 95 महिलायें डायन प्रथा का शिकार होती हैं। इनमें से एक हमारा राज्य झारखंड भी है। झारखंड पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि अलग राज्य गठित होने के बाद से सितंबर 2022 तक झारखंड में डायन और तंत्र मंत्र के नाम पर अब तक 1050 से भी ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं। वहीं, इस साल 2023 में जून महीने तक कुल 13 लोगों की हत्या की जा चुकी है। हालांकि NCRB द्वारा जारी आंकड़ों में डायन हत्या की संख्या काफी कम हैं। ऐसा इसलिये भी है क्योंकि डायन हत्या को लेकर कोई अलग से धारा नहीं हैं। डायन हत्या के मामले में ज्यादातर IPC की धारा 302 लगा दी जाती है जो हत्या को परिभाषित करती है।
डायन कुप्रथा के रोकथाम के लिए साल 2001 में बाबूलाल मरांडी की सरकार ने डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 लागू किया था। इस अधिनियम की धारा 3 के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी को डायन कहकर उसपर किसी भी तरह की कार्रवाई करता है, तो इसके लिए 3 महीने का कारावास या,फिर 1000 रुपया जुर्माने का प्रावधान है। वहीं, इस अधिनियम की धारा 4 के तहत किसी औरत को डायन कहने पर 6 महीने का कारावास या 2000 रुपया जुर्माना या फिर दोनों हो सकता है। इसके साथ ही राज्य सरकार की ओर से झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी यानि जेएसएलपीएस के माध्यम से गरिमा परियोजना चलायी जा रही है। इस परियोजना के तहत डायन बताकर प्रताड़ित की गई महिलाओं को चिह्नित करके उन्हें सखी मंडल से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जाना है। इस कुप्रथा से पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता देने के साथ उनका मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग भी कराने और उन्हें सामाजिक गरिमा फिर से दिलाने का प्रयास किये जाने की बात कही गयी है। इसके लिये सरकार हर साल करोड़ों रुपये खर्च करती है।
डायन प्रथा के प्रचलन का कारण
फिलहाल, डायन प्रथा के कारणों के बारे में जानते हैं। कई रिपोर्ट्स के अनुसार जलन, निजी स्वार्थ, ज़मीन हड़पने की साजिश, तांत्रिक ओझा का चक्कर, अंधविश्वास, अशिक्षा, अकेली महिला का शोषण, महिलाओं की प्रगति, संपत्ति विवाद, स्वास्थ्य सेवा का अभाव, आर्थिक स्थिति का ठीक न होना डायन कुप्रथा के मुख्य कारणों में शामिल है। इनमें भी सबसे प्रमुख कारण विधवा और निःसंतान या बांझ कहे जाने वाली औरतों के प्रति फैला अंधविश्वास है जिसके वजह से डायन बिसाही का शिकार सबसे अधिक ये महिलायें ही होती हैं। वहीं, राज्य में साक्षरता दर भी एक अहम कारण बनकर सामने आता है जिससे लोगो में अंधविश्वास और जागरूकता की भयंकर कमी दिखाई पड़ती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड में साक्षरता दर मात्र 66.4% है और इसका स्थान देश के 35 में से 32वें स्थान पर है।
जहां मामले ज्यादा दर्ज, हत्याओं की संख्या कम
वहीं, रिपोर्ट्स ये भी बताती हैं कि जिन जिलों में डायन बिसाही को लेकर मामले ज्यादा दर्ज किये जाते हैं, वहां हत्याएं कम होती हैं। मगर जिन जिलों में कम मामले दर्ज किये जाते हैं, वहां हत्याएं ज्यादा होती हैं। उदाहरण के लिये साल 2018 में डायन बिसाही के सबसे ज्यादा मामले गढ़वा जिले में दर्ज किये गये थे। राज्यभर में जहां 592 ऐसे मामले दर्ज किये गये, वहीं अकेले गढ़वा से 140 मामले आये। मगर इनमें से एक भी मामले हत्या के नहीं थे। वहीं, चाईबासा में साल 2018 से लेकर 15 जून 2023 तक 58 डायन बिसाही के मामले सामने आये, जिनमें से 28 मामले हत्या के थे। यानि साफ है, ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग जितनी ज्यादा होगी, उतना ही पुलिस प्रशासन आगाह होगी, और हत्या की नौबत नहीं आयेगी। मगर सवाल ये उठता है क्या डायन कहकर अमानवीय व्यवहार किया जाना, जबरन मल खिलाकर आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना मौत देने से कम है? सरकार जो इतने पैसे खर्च करती है इस कुप्रथा के रोकथाम के लिये, तो भी ये खत्म होने का नाम क्यों नहीं ले रही है? और क्या इसी तरह से ये प्रथा आगे भी चलती रहेगी और महिलाओं के साथ प्रताड़ना होती रहेगी?