L19/ DESK : ओडिशा में हुए ट्रेन हादसे में करीब पौने तीन सौ लोगों की मौत के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। विपक्षी दल यात्री और ट्रेन की सुरक्षा को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर है तो सत्ताधारी दल की ओर से रेल हादसों का पुराना रिकॉर्ड दिखाया जा रहा है। इस बीच, कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की वर्ष 2022 की रिपोर्ट से पता चलता है कि रेल ट्रैक को बदलने के लिए जो फंड रेलवे को मिलता है, उसका उचित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। यहां तक कि कई रेलवे डिवीजन पैसे सरेंडर कर देता है पर रेल की पटरी नहीं बदलती। सीएजी की रिपोर्ट के द्वारा भारतीय रेलवे को हर साल 4,500 किलोमीटर रेल लाइन बदलना है। लेकिन, वित्तीय बाधाओं के चलते पिछले 6 साल में रेल लाइन नहीं बदले गये।
देश में करीब 1.15 लाख किलोमीटर का लंबा रेल नेटवर्क है। इनमें से हर साल 4,500 किमी ट्रैक को बदलना है। पर ऐसा नहीं हो रहा। रिपोर्ट में एक व्हाइट पेपर का जिक्र किया गया है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2016-17 में स्टैंडिंग कमेटी ने जो सिफारिशें कीं थीं, उस पर भी अमल नहीं हो रहा है। रिपोर्ट के द्वारा वर्ष 2019-20 में देश के सबसे व्यस्त पश्चिमी रेलवे को रेल ट्रैक बदलने के लिए 689.90 करोड़ रुपये दिये गये थे। उसने इसमें से सिर्फ 3.01 फीसदी राशि यानी 20.74 करोड़ रुपये ही खर्च किये। वहीं, भारतीय रेलवे के अन्य जोन ने इस मद में मिले पैसे सरेंडर कर दिये। ऐसा कई सालों से हो रहा है। रेलवे जोन इस मद के पैसे खर्च नहीं कर रहे, उनका आवंटन लगातार कम होता जा रहा है।
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-19 में रेलवे ने रेल ट्रैक बदलने के लिए 9,607.65 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, जो वर्ष 2019-20 में घटकर 7,417 करोड़ रुपये रह गया। वर्ष 2017-18 और वर्ष 2018-19 में सप्लाई की समस्या की वजह से कुछ रेलवे डिवीजनों में कम्प्लीट ट्रैक रिन्यूअल का भी काम पूरा नहीं हो पाया। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्टैंडिंग कमेटी ने जो सिफारिशें कीं थीं, उसे रेलवे ने पूरा नहीं किया।