L19 DESK : झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग, स्कूल ऑफ सोशल सइंसेस द्वारा मार्च 19-20, 2025 को दो-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोसठी का आयोजन किया गया. इस संगोसठी का विषय है “भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित संवहनीय संयोजकता (sustainable connectivity) की परिकल्पना: क्षेत्रीय संगठन एवं विकास वाहक स्वरूप दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया की भूमिका”
(Indian Knowledge Traditions and Sustainable Connectivity Vision: South and South-East Asia as Conduit for Regional Integration and Development). दो-दिवसीय इस संगोसठी के दूसरे एवं अंतिम दिन लगभग 40 शोध पत्र पस्तुत किए गए. सुबह के सत्र में जवाहरलाल नेहरू विश्वविध्यालय के महेश देबता ने अपने शोध पत्र मे विस्तार से बताया की बुद्धिस्ट परंपरा के साथ हिन्दू एवं सनातनी संस्कृति व कला का विस्तार चीन के जिनजियांग से लेकर सेंट्रल एशिया के क्षेत्रों में हुआ और इस विषय पर गहन शोध की आवश्यकता है. इसी सत्र में कल्याणी विश्वविद्यालय के प्रतीप चट्टोपाध्याय ने अपने उद्बोधन में चर्चा की कि भारत को भारतीय ज्ञान परंपरा को पड़ोसी देशों पर थोपने का प्रयास नहीं करना चाहिए बल्कि इस चर्चा हो और स्वत: इसका विस्तार हो. पर्दिनीय विश्वविद्यालय, श्रीलंका के उपली ने अपने उद्बोधन में लंका में इन्टर-फैथ की चर्चा की और विस्तार से बताया की श्रीलंका के बहु-सांस्कृतिक एवं बहुलता वाले देश में धर्म को कैसे एक सामाजिक समरसता हेतु उपयोग में लाया जाता है. इस अवसर पर देश एवं विदेश से आए लगभग 15 शिक्षकों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए. विभागाध्यक्ष आलोक कुमार गुप्ता ने प्रथम सत्र का संचालन किया.
दो-दिवसीय इस संगोसठी में लगभग 100 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए और इसका संचालन समानांतर सत्र एवं ऑनलाइन सत्र के माध्यम से भी किया गया.
समापन समारोह में जापान फाउंडेशन के कोजि सातों ने समापन भाषण दिया. उन्होंने अपने भाषण में इस तथ्य बात पर बाल दिया की जापान के लोग भारतीय संस्कृति को समझने का प्रयास करते है, जिसका प्रभाव भारत-जापान द्विपक्षीय संबद्धों में इंगित होता है. उन्होंने ने इस अवसर पर कई भारतीय सूफी संतों और परंपराओं का हवाला देते हुए भारत-जापान संबंधों की विस्तार से चर्चा की, प्राचीन भारतीय व्यापार के विस्तार की चर्चा करते हुए वर्तमान संबंधों की बुनीयाद को उद्धृत किया.
इस अवसर पर श्याम प्रशाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के कुलपति तपन कुमार सांडिल्य ने विशेष भाषण ज्ञापित किया. उन्होंने अपने भाषण में दक्षिण एवं दक्षिण-एशिया क्षेत्र के महत्व को एतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विस्तार से बताया और इस संदर्भ मे उन्होंने ने बताया की दक्षिण एशिया चार धर्मों का उद्गम स्थल रहा है: हिन्दू, इस्लाम, जैन एवं बुद्धिज़्म. जिसमें बुद्धिज़्म का विकास एवं विस्तार स्पाइस रूट एवं मैरीटाइम सिल्क रूट के रास्ते हुआ. उन्होंने इस रूट का व्यापार के विकाश के क्रम में क्या भूमिका रही उसे विस्तार से बताया.
मानहट्टन कॉलेज, सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू-यॉर्क की क्रिस्टीन फरिया ने समापन सत्र में फेलिसीटेसन अड्रेस दिया, उन्होंने अपने सम्बोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा की चर्चा अमेरिका के परिप्रेक्ष्य में करते हुए बताया कि भारत एक संस्कृति समृद्ध देश है और इसकी धमक अमेरिका तक है. यह अलग बात है कि भारत अपने इन परंपराओं का सही से और आक्रामक रूप से शोषण या शोधन नहीं किया है.
विभाग के डॉ अशोक निमेष ने दोनों दिवस पर प्रस्तुत किए गए शोध पत्रों का सारांश प्रस्तुत किया. समापन सत्र का संचालन संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति राज कुमार कोठारी ने किया. इंटरनेशनल कॉनफेरेंस, समन्वयक बिभूति भूषण विश्वास ने धन्यवाद ज्ञापन किया. इस अवसर पर विभाग के छात्र एवं शिक्षक उपस्थित थे.