L19 Desk : सिर पर हरी पगड़ी, गेहुएं रंग के चेहरे पर सफेद नुकीली मूंछें, गठीले शरीर पर सफेद धोती-कुर्ता, उसके ऊपर लदा एक पुराने स्टाइल का बंडी, पैरों में एक काला चमड़े का जूता, और हट्टे कट्टे मजबूत गठीले हाथों में एक टांगी – ये पहनावा, और ये विशेषण कहीं न कहीं किसी गांव में रहने वाले बुजुर्ग हरियाणवी के लिये शायद बिल्कुल सटीक लग रहे होंगे, लेकिन कुछ ऐसा ही पहनावा झारखंड के एक वरिष्ठ आंदोलनकारी नेता का भी हुआ करता था, जो आज इस दुनिया में नहीं हैं। वो नाम है दिवंगत शिवा महतो। वही शिवा महतो, जिनकी गिनती झारखंड आंदोलन के अग्रणियों के तौर पर होती है, जिन्होंने गुरुजी शिबू सोरेन की ही तरह सूदखोरों, महाजनों और माफियाओं के खिलाफ आवाज़ बुलंद किया, जिनके खोरठा भाषा में दिये जाने वाले जोशीले भाषणों से पूरा इलाका गूंज उठता था, जिन्हें ‘झारखंड का शेर’ कहकर संबोधित किया जाता था।
आज दिग्गज नेता शिवा महतो की पुण्यतिथि है। 1 मार्च 2022 को डुमरी प्रखंड के घुटवाली स्थित पैतृक आवास में उन्होंने 108 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। स्वजनों के अनुसार, उनका जन्म बोकारो जिलार्न्तगत दुग्दा के सिजुवा में 1914 को शिवरात्रि के दिन हुआ था और संयोगवश उनका निधन शिवरात्रि के पूर्व रात्रि 108 वर्ष की आयु में हो गया। डुमरी में उच्च शिक्षा जगत की अलख जगाने वाले और झारखंड अलग राज्य आंदोलन के प्रमुख नेता रहे शिवा महतो डुमरी विधानसभा सीट से 1980, 1985 और 1995 में विधायक रहे थे।
वही डुमरी विधानसभा, जो आज भी पूर्व शिक्षा मंत्री स्व.जगन्नाथ महतो का गढ़ माना जाता है। दरअसल, कहा जाता है कि जगन्नाथ महतो ने राजनीति का ककहरा शिवा महतो से ही सीखा था, वह उनके राजनीतिक गुरु थे। जगन्नाथ महतो से पहले डुमरी का पूरा इलाका शिवा महतो का ही माना जाता था। शिवा महतो जब पहली बार डुमरी विधानसभा सीट से झामुमो उम्मीदवार बन कर चुनाव लड़े, तब जगरनाथ महतो उनका दाहिना हाथ बने। साल 1980 से लेकर 1999 के विधानसभा चुनाव के पहले तक जगरनाथ महतो शिवा महतो के ही साथ रहे। हालांकि, बाद में दोनों के रास्ते जुदा हो गये।
झामुमो के संस्थापक सदस्य और झारखंड आंदोलन के जनक विनोद बिहारी महतो, कामरेड एके राय, गुरुजी शिबू सोरेन जैसे दिग्गज आंदोलकारियों की कतार में शिवा महतो का नाम लिया जाता है। हालांकि, शिवा महतो ने ही आगे चलकर गुरुजी शिबू सोरेन का मोर्चा खोल दिया था, 1990 के दशक में स्व. बिनोद बाबू के बेटे राजकिशोर महतो और कृष्णा मार्डी के नेतृत्व में नौ विधायकों ने झामुमो से अलग होकर मार्डी गुट का गठन कर लिया था। इन विधायकों में डुमरी विधायक शिवा महतो और मांडू विधायक टेकलाल महतो भी शामिल थे। मार्डी गुट की वजह से झारखंड में झामुमो को पहली बार कड़ी चुनौती मिल रही थी। हालांकि, इन सब के बावजूद, शिवा महतो ने कभी भी भाजपा से हाथ नहीं मिलाया। शिवा महतो ने राजनीति में कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
बताया जाता है कि जब कोयलांचल में सूदखोरों, माफियाओं और महाजनों के खिलाफ किसी की मुंह खोलने की हिम्मत नहीं होती थी, तब एकमात्र शिवा महतो ही थे, जो लगातार अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे। बेरमो कोयलांचल में विस्थापितों के हक-अधिकार को लेकर विनोद बिहारी महतो के साथ लंबी लड़ाई भी लड़ी। शिवा महतो पर एक बार जानलेवा हमला भी हुआ। बताया जाता है कि एक बार शिवा महतो को मारकर घायल अवस्था में उन्हें फेंक दिया गया था। तब ग्रामीणों ने अस्पताल में भर्ती करवा कर उनकी जान बचायी। खास खोरठा भाषा में भाषण देने की शैली के कारण लोग इन्हें दूर-दूर से सुनने के लिए सभाओं में पहुंचते थे।
डुमरी के लोगों को आज अगर उच्च शिक्षा का लाभ मिल पा रहा है, तो इसका सबसे बड़ा श्रेय दिवंगत शिवा महतो को ही जाता है। विधायक रहते शिवा महतो ने डुमरी में झारखंड कॉमर्स इंटर कॉलेज समेत 2 कॉलेज और कई विद्यालयों की स्थापना की। वह गांव-गांव घूम कर लोगों को जागरूक करते रहे और इलाके में शिक्षा का अलख जगाते रहे। गरीब के बच्चों को पढ़ो और लड़ो की सीख देते थे। उन्होंने शिक्षा, न्याय और हक की लड़ाई में अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी। आज भी डुमरी और पूरे झारखंड के लोग उनकी विरासत को याद करते हैं, और उनके दिखाये मार्ग पर चलने की प्रेरणा पाते हैं। शिवा महतो की बुलंद आवाज़ और उनके सिद्धांतों की गूंज आने वाली पीढ़ियों को हमेशा संघर्ष और सच्चाई का पाठ पढ़ाती रहेगी।