कानून अब अंधा नहीं रहेगा और ना ही न्याय की देवी के हाथ में तलवार रहेगी ..जी सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन ये सच है।
अब आप सोच रहे होंगे की जिस न्याय की देवी के आंख में वर्षों से काली पट्टी, एक हाथ में तराजू और एक हाथ में तलवार देखते आ रहे थे उसमें अचानक बदलाव क्यों किया गया?
क्या भारत में सच में कानून अंधा है? न्याय की मूर्ति का इतिहास क्या है? आज हम इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढने का प्रयास करते हैं।
आपने जब से होश संभाला होगा कानून को अंधा ही सुना होगा.. अदालत में लगी न्याय की देवी की मूर्ति की आंखों पर पट्टी और हाथ में तलवार देखी होगी. लेकिन अब न्याय की देवी की ये तस्वीर इतिहास बन चुकी है.
वहीँ इसकी इतिहास की बात करें, न्याय की देवी यानी लेडी ऑफ जस्टिस का इतिहास कई हजार साल पुराना है. इसकी अवधारणा प्राचीन ग्रीक और मिस्र की सभ्यता के दौर से चली आ रही है. न्याय की देवी, जिसे लेडी जस्टिस भी कहते हैं, की प्राचीन छवियां मिस्र की देवी ‘मात’ से मिलती-जुलती हैं. मात मिस्त्र के प्राचीन समाज में सत्य और व्यवस्था की प्रतीक थीं. ग्रीक पौराणिक कथाओं में न्याय की देवी थीमिस और उनकी बेटी डिकी हैं, जिन्हें एस्ट्राया के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन यूनानी दैवीय कानून और रीति-रिवाजों की प्रतिमूर्ति देवी थेमिस और उनकी बेटी डिकी की पूजा करते थे. डिकी को हमेशा तराजू लिए हुए चित्रित किया जाता था और ऐसा माना जाता था कि वह मानवीय कानून पर शासन करती है. प्राचीन रोम में डिकी को जस्टिटिया के नाम से भी जाना जाता था. ग्रीक देवी ‘थीमिस’ कानून, व्यवस्था और न्याय का प्रतिनिधित्व करती थी, जबकि रोमन सभ्यता में देवी ‘मात’ थी, जो कि व्यवस्था के लिए खड़ी एक ऐसी देवी थी जो तलवार और सत्य के पंख रखती थी. हालांकि, मौजूदा न्याय की देवी की सबसे सीधी तुलना रोमन न्याय की देवी जस्टिटिया से की जाती है
अब मूर्ति में बदलाव होने जा रही है।
दरअसल अब मूर्ति की आंखों से पट्टी हट चुकी है और हाथ में तलवार की जगह अब संविधान है. बीते दिनों मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव करने का निर्देश दिया,जिसके तहत अब ‘लेडी ऑफ जस्टिस’ की नई मूर्ति लगाने को हरी झंडी दी है।
मुख्य न्यायाधीश CJI चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट में न्याय की देवी की मूर्ति में बदलाव करने के निर्देश दिए हैं. आदेश का पालन करते हुए अब मूर्ति की पारंपरिक आंखों की पट्टी हटा दी गई है, जो पारदर्शी न्याय का प्रतीक है. इसके अलावा, उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान की एक प्रति रखी गई है. जो बल पर कानून के शासन की प्रधानता पर जोर देती है.
रही बात आंखों की पट्टी का क्या इतिहास है ? चलिए इसे भी समझते हैं
‘न्याय की देवी ‘ की प्रतिमा पर लगी पारंपरिक काली पट्टी एक नई सोच यानी बदलाव न्याय की पारदर्शिता का प्रतीक है, जो दर्शाता है कि न्याय अब अधिक खुला और स्पष्ट है.वहीं बात करें न्याय की देवी के हाथ में जो तलवार थी, उसे संविधान की एक प्रति में बदल दिया गया है. यह बदलाव कानून की प्रधानता बल को दर्शाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिरकार इसे क्यों बदला गया तो आपको जानकारी होनी चाहिए इस न्याय की देवी का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है यही कारण है की समय की मांग को देखते हुए बदलाव किए गए हैं और इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और कानून के शासन को बढ़ावा देना है. इससे यह संदेश मिलता है कि न्याय केवल ताकत का नहीं, बल्कि सही और न्यायपूर्ण प्रक्रिया का आधार है.यह कहना गलत नहीं होगा कि CJI चंद्रचूड का यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट की छवि को आधुनिक बनाने और लोगों के विश्वास को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है.
आपने फिल्मों में सुना होगा कि कानून ‘अंधा’ है. ये इसलिए कहा जाता है क्योंकि न्याय की देवी की आंखों में पट्टी बंधी होती है.
दरअसल, कानून को अँधा इसलिए कहा जाता है क्यूंकि वो न्याय सुनाते समय ए नहीं देखता की उसके सामने आमिर खड़ा है या गरीब , नेता खड़ा है या आम इन्सान . वो हर किसी के लिए एक बराबर ही होता है. कोर्ट सिर्फ तथ्यों और सबूतों के आधार पर फैसला करती है और कानून का पालन करवाती है. बस यही बात कानून की देवी पर भी लागू होती है
और कई बार इसमें कुछ बेगुनाह भी इसकी चपेट आ जाते हैं क्यूंकि भारत का कानून व्यवस्था बहुत धीमी होने के कारण किसी की न्याय मिलने में काफी समय लग जाता है.