l19/DESK : SC ST आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले के तहत कहा गया है कि राज्य अपने यहां की ज्यादा वंचित जातियों के बेहतर विकास के लिए एससी/एसटी वर्ग को मिलने वाले कोटे के अंदर भी कोटा बना सकते हैं। साथ ही कोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर को लागू करने की भी बात कही है। आज हुए सुनवाई में इसके पक्ष में फैसला देने वाले 6 जजों में से 4 जजों ने ऐसी बात कही है। वैसे अब तक सिर्फ OBC आरक्षण में ही क्रीमी लेयर की व्यवस्था लागू है।
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दें…… क्रीमी लेयर के माध्यम से अन्य पिछड़ा वर्ग अर्थात OBC के लोगों को आर्थिक आधार पर चिन्हित किया जाता है। इसकी शुरुआत 1993 में हुई थी। वर्तमान में जिन परिवारों की वार्षिक आय 8 लाख रुपये से अधिक है उनको सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण नहीं दिया जाता है। अर्थात ये लोग क्रीमी लेयर में आते हैं। आज हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक पीठ में चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला त्रिवेदी पंकज मिथल, मनोज मिश्रा औरसतीश चंद्र मिश्रा शामिल थे।
इस बेंच में शामिल जस्टिस गवई ने अपने फैसले में कहा, राज्य को…… एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें सकारात्मक कार्यवाही से इसके दायरे से बाहर करने की नीति विकसित करनी चाहिए। तब जाकर असली समानता हासिल की जा सकती है। जस्टिस विक्रम नाथ ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर का सिद्धांत एससी/एसटी आरक्षण पर भी लागू हो। वहीं जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि आरक्षण एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए। अगर एक पीढ़ी आरक्षण के जरिये सरकारी नौकरी और अन्य सुविधाओं तक पहुंच गई है, तो उसके अगली पीढ़ी आरक्षण की हकदार नहीं होनी चाहिए। जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने भी इस विचार का समर्थन किया है। हालांकि इस संवैधानिक बेंच की अध्यक्षता कर रहे मुख्यनयायधीश DV चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा ने इस बारे में अपनी कोई राय नहीं दी है।
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच एससी/एसटी आरक्षण को लेकर 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें से मुख्य याचिका पंजाब सरकार ने दायर की है, जिसमें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती दी गयी है.
वैसे वर्षों से SC ST आरक्षण को लेकर केंद्र और राज्यों के एक खेमा इसका विरोध करता रहा है और उनकी मांग रही है कि अब समय के साथ आरक्षण समाप्त कर देना चाहिए। हालांकि आज हुए फैसले ने एक बार फिर से आरक्षण के मुद्दा को गरम कर दिया है।