L19 DESK : ईश्वर एक ऐसा खिलौना है, जिसे शूद्रों को डराने और सवर्ण को कमाने के लिये बनाया गया है। ये कथन महात्मा ज्योतिबा फुले के हैं। शायद आप में से कई लोग ज्योतिबा फुले से परिचित नहीं होंगे। मगर आज उनके पुण्यतिथि पर हम आपको उस शख्सियत से अवगत करायेंगे, जिसने सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीतियों और व्यवस्था को जड़ से हिला कर रख दिया था। इसकी शुरुआत एक किस्से से करते हैं।
जब शादी से बेइज्जत करके ज्योतिबा को निकाल दिया गया
कहानी भारत के पश्चिमी हिस्से महाराष्ट्र की है। उस दौरान शादियों का दौर चल रहा था। एक लड़का अपने प्रिय दोस्त की शादी में शरीक होने जाता है। मगर उसी वक्त उसे बारात से बेइज्जत कर के बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. वह शादी एक ब्राह्मण की थी, और वह लड़का जाति से शूद्र था। वर्णव्यवस्था में सबसे नीचे की जाति। बारातियों ने उसे ये कहकर बाहर निकाला, कि ये शूद्र ब्राह्मणों की शादी में क्या कर रहा है, इसी वक्त इसे यहां से बाहर निकालो। और उस लड़के को धक्के मारकर सबके सामने बेइज्ज्त कर के बाहर निकाल दिया। इस वाकये ने उस लड़के के जहन में गहरा चोट किया। उसके समाज को देखने का नजरिया बदल गया। अब उसने ठान लिया था कि जात पात के इस कलंकित व्यवस्था को खत्म करना है। उसने शूद्र होने के बावजूद शिक्षा ग्रहण की, और सदियों से चले आ रहे इस व्यवस्था को हिला कर रख दिया। आज इस शख्स को हम महात्मा ज्योतिबा फुले के तौर पर जानते हैं।
कौन थे ज्योतिबा फुले ?
ज्योतिबा फुले एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्हें वंचितों के हितैषी और संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने भी अपना प्रेरणास्रोत माना। अंबेडकर उनके बारे में कहते थे कि बाकि लोग परिवार सुधारक थे, मगर ज्योतिबा फुले समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय समाज में जात-पात जैसी गुलामी की मुखालफत की औऱ इसका दंश झेल रहे शूद्रों, अछूतों, को मुक्ति दिलाने के लिये कदम बढ़ाया। किसानों से लेकर मजदूरों समाज के हर शोषित वर्गों की आवाज बने। क्रांति ज्योति महात्मा फुले एक महान विचारक, समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, संपादक और क्रांतिकारी थे।
कैसा था 19वीं सदी में भारतीय समाज ?
19वीं सदी में भारतीय समाज अंधविश्वास और कुरीतियों से भरा हुआ था। उस समय अछूतों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। अछूतों की परछाई पड़ने से ही वर्ण व्यस्था के संचालक अशुद्ध हो जाते थे। उनकी थूक और पैर के निशान जमीन में पड़ने को ब्राह्मण इतना अशुद्ध मानते थे, कि अछूतों को अपने गले में थूकने के लिये मटका और पैरों के निशान मिटाने के लिये कमर में झाड़ू लटकाये चलना पड़ता था। ऐसा न करने पर उनके साथ जानवरों से भी घटिया सलूक किया जाता था।
ज्योतिबा की जीवनी
11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में ज्योतिराव फुले का जन्म हुआ था। माता का नाम चिम्नाबाई और पिता का नाम गोविंदराव था। ज्योतिराव जब 9 महीने के थे, तभी माता का देहांत हो गया था, फिर सगुणाबाई ने उन्हें पाला। वे लोग जाति से माली थे, जिसके वजह से पिता जाति के अनुसार ही फूलों का कारोबार संभालते थे। ज्योतिराव की प्रारंभिक शिक्षा 7 साल की उम्र में शुरु हुई, मगर कुछ ही समय के बाद उन्हें पिता के कारोबार में हाथ बंटाना पड़ा। ज्योतिराव जब कभी भी किसी से बात करते, उनकी बातें बहुत तर्कशील सुनाई पड़ती। इसके वजह से पिता के दो मित्रों ने उन्हें अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने की सलाह दी। उनकी सलाह पर पिता ने बेटे ज्योतिराव का दाखिला एक स्कॉटिश मिशन स्कूल में करा दिया।
उस दौरान शिक्षा का अधिकार केवल ब्राहमणों को था। हालांकि, धीरे धीरे क्षत्रिय और वैश्य समाज के लोग भी शिक्षित होने लगे। मगर अब भी शूद्रों और दलितों से शिक्षा कोसों दूर थी। हालांकि, अंग्रेजों के मिशन स्कूलों में समाज के हर तबके के लिये जगह थी। और इसलिये ज्योतिराव को पढ़ने का मौका मिल पाया। स्कूल में उन्होंने दुनिया का इतिहास पढ़ा। अंग्रेजी भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाया। वह फ्रांसिसी क्रांति और अमेरिकी क्रांति से बहुत प्रभावित हुए, जिसने उनके हाथों सामाजिक सुधार करा डाला।
सामाजिक बदलाव की शुरुआत घर से होनी चाहिये : ज्योतिराव फुले
साल 1840 में ज्योतिबा फुले का बाल विवाह करा दिया जाता है। उनकी शादी सावित्रीबाई से होती है। सावित्रीबाई को पढ़ी लिखी नहीं थी, क्योंकि उस समय के भारतीय समाज में महिलाओं तक को पढ़ने का अधिकार नहीं था, चाहे वह किसी भी जाति की हो। ज्योतिबा फुले ने महिला शिक्षा पर भी बहुत काम किया। इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई से की। उनका मानना था कि सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत सबसे पहले घर से ही होनी चाहिये। उन्होंने सावित्रीबाई को पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया कि वह देश की पहली महिला शिक्षिका बनकर उभरी औऱ मात्र 17 साल की उम्र में उन्होंने अपने स्कूल में महिलाओं को शिक्षित करने की शुरुआत की।
जब सावित्रिबाई फुले पर कीचड़ और गोबर फेंके जाते थे
ज्योतिबा फुले शूद्रों और दलितों को भी शिक्षा से अवगत कराना चाहते थे, जिसके वजह से साल 1848 में उन्होंने पुणे के पेठ में अछूत बच्चों के लिये पहला स्कूल खोला। धीरे धीरे स्कूल पर स्कूल खुलने लगे और वह इलाका शिक्षा का केंद्र बनता चला गया। इससे ऊंची जाति वालों के आंखों में कांटा चुभने लगा। उन्होंने इसका विरोध शुरु कर दिया। फुले दंपत्ति को अपना घर बार छोड़ना पड़ा। सावित्रीबाई फुले के ऊपर रास्ते में कीचड़ और गोबर फेंके जाते थे। मगर दोनों ही तटस्थ थे। उन्होंने जो मिशन तय किया, उससे पीछे नहीं हटे। ज्योतिबा फुले ने महिलाओं और वंचितों के उत्थान पर बहुत जोर दिया। उनका मानना था कि जब तक समाज में स्त्रियों और वंचितों का उत्थान नहीं होता, तब तक सामाजिक विकास संभव नहीं है।
इसलिये मिली थी ज्योतिबा को महात्मा की फ
वह बाल विवाह के विरोधी औऱ विधवा पुनर्विवाह के समर्थक थे। उन्होंने विधवाओं के विवाह की जिम्मेवारी अपने सिर पर ली। यही नहीं, बलात्कार और शोषण का शिकार महिलायें, जिन्हें समाज तिरस्कार कर देता था, उन्हें ज्योतिबा ने अपने घर में जगह दी। उनके लिये आश्रम खोले। कचरे में फेंक दी जाने वाली बच्चियों को गोद लिया। उन्होंने ऐसी शादियों की शुरुआत की, जिसमें पंडा पुरोहित की कोई आवश्यकता नहीं होती थी। जाति प्रथा, लैंगिक भेदभाव, बाल विवाह समेत कई सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन के लिये सत्यशोधक समाज की शुरुआत की। उन्होंने अपने जीवन काल में किसानों और मजदूरों के लिये भी आवाज उठाने का काम किया। इसके लिय उन्होंने दीनबंधु नाम से एक अखबार का प्रकाशन शुरु किया। उनके जोर से ही देश में पहला ट्रेड यूनियन बना। उन्होंने किसानों के लिये भी आवाज उठाने के काम किया, जिसका असर ये रहा कि अंग्रेजों को एग्रीकल्चर एक्ट पास करना पड़ा। उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के शोषित वर्गों उत्थान पर पर लगा दिया। जिसके वजह से साल 1888 में मुंबई के एक विशाल सभा के दौरान उन्हें महात्मा की उपाधि दी गयी।
28 नवंबर को हुई थी महात्मा फुले की मृत्यु
आखिरकार, 28 नवंबर साल 1890 में उनकी 63 साल की उम्र में मृत्यु हो गयी। आखिरी समय में उन्हें लकवा मार गया था। उनके मृत्योपरांत सावित्रीबाई फुले ने सत्यशोधक समाज का बागडोर संभाला। इसका तेजी से विस्तार होने लगा। आज भी उनके कार्यों को याद किया जाता है। समाज में उनके द्वारा किया गया बदलाव ने आज देश के शोषित समाज हक और अधिकार के साथ जी रहे हैं।