L19 DESK : 15 नवंबर झारखंड अपना 23 वीं स्थापना दिवस मना रहा है साथ ही आज भगवान बिरसा मुंडा की जयंती दिवस भी है।इस दिन को खास बनाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिवसीय झारखंड यात्रा पर पहुंच चुके हैं और पूरा झारखंड उनके स्वागत में लगी हुई है। लेकिन क्या आपको पता है इस 23 साल के युवा झारखंड ने किन-किन परिस्थितियों को पार करते हुए अपने अस्तित्व को स्थापित किया? तो आइए आज स्थापना दिवस के अवसर पर हम आपको झारखंड निर्माण से संबंधित कुछ घटनाक्रमों को बताएंगे कि आखिर 79714 वर्ग किलोमीटर और 2.42 प्रतिशत हिस्से और करीब 4 करोड़ आबादी वाला एक छोटा सा राज्य झारखंड को बनाने में हमारे पूर्वजों ने कितनी मेहनत की है? बीते दो-तीन सालों से लगातार आप एक नारा झारखंड में बहुत सुन रहे होंगे “कैसे लिया झारखंड लड़ के लिया झारखंड” जी हां आज के दौर में इस नारे को शायद ही कोई नहीं जानता होगा क्योंकि हर छोटे बड़े आंदोलन में इस नारे को लिया जाता है।
वैसे झारखंड निर्माण का इतिहास काफी लंबी है लगभग 88 सालों के संघर्ष के बाद झारखंड का निर्माण हो पाया है और भारत में झारखंड एक मात्र ऐसा राज्य है जिसने इतने लंबे संघर्ष के बाद एक नए राज्य के लिए खुद को स्थापित किया है। अगर इतिहास के झरोखों से आप थोड़ी बहुत रिसर्च करते है तो आप जानते हैं आजादी से पहले झारखंड संयुक्त बंगाल का हिस्सा हुआ करता था। जी हां बंगाल उड़ीसा बिहार तीनों मिलकर एक राज्य हुआ करता था, परंतु 1912 में जब संयुक्त बंगाल से बिहार को अलग किया गया तब से जो हमारे छोटा नागपुर के बुद्धिजीवियों में अपने लिए भी एक अलग राज्य की मांग करने की सुगबुगाहट उठानी शुरू हो गई थी।
झारखंड में पहले संगठन निर्माण की अगर हम बात करें जिसने अलग राज्य निर्माण की बीजारोपण किया था तो हम 1912 में चाईबासा के एक विद्यार्थी जे. बार्थोलोमन का नाम लेते हैं। इन्होंने क्रिश्चियन स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की थी और झारखंड में पहली बार यहां के आदिवासी के हक अधिकार की बात की थी अर्थात सांगठनिक रूप में देखे तो पहली बार किसी संगठन ने अपने हक अधिकार के लिए आवाज उठाना शुरू किया था। इसके बाद 1915 में जुएल लकड़ा, बंदी उरांव, ठेबले उरांव एवं पॉल दयाल ने क्रिश्चियन स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन का नाम पदक बदलकर छोटानागपुर उन्नति समाज किया और एक धर्म विशेष से बढ़कर यहां के आदिवासियों की हक अधिकार, अस्तित्व एवम अस्मिता के लिए आवाज उठाई। 1915 में राष्ट्रीय आंदोलन में जब महात्मा गांधी का आगमन हुआ तो देश के सभी राज्यों में एक जागृति आई।
इसी बीच झारखंड में 1930 में एक और संगठन का निर्माण किया जाता है जिसका नाम किसान सभा रखा गया था जिसने यहां के जमींदारों के विरुद्ध किसानों और मजदूरों को संगठित करते हुए उनके हक अधिकार की बात की। 1912 में जो संगठन बनाने की बीच का रोपण किया गया था वह अब धीरे-धीरे बढ़ने लगए था इसी बीच 1933 में इग्निस बेक और बेनिफेस लकड़ा के सहयोग से छोटा नागपुर कैथोलिक सभा का गठन किया गया। 1912 से लेकर 1940 के बीच छिटफूट संगठनों के गठन के बाद 1938 में जब झारखंड की राजनीति मेंमरांग गोमक जयपाल सिंह मुंडा का आगमन होता है और तब से झारखंड निर्माण के आंदोलन को तेज़ बल मिलती है।
इस बीच झारखंड के सभी छोटे-बड़े संगठनों छोटानागपुर उन्नति समाज, किसान सभा, छोटानागपुर कैथोलिक सभा, मुंडा सभा, हो मालतो मरांग सभा को मिलकर एक संयुक्त संगठन छोटा नागपुर संथाल परगना आदिवासी सभा बनाया गया। जनवरी 1939 में इस संगठन का नाम बदलकर आदिवासी महासभा रखा गया और इस संगठन के प्रथम अधिवेशन में जयपाल सिंह मुंडा को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया। इस बीच झारखंड निर्माण को उस वक्त और बल मिला जब 1936 में संयुक्त बंगाल से उड़ीसा राज्य को अलग करके एक नया राज्य बनाया गया और इसके साथ ही तात्कालिक बिहार में कांग्रेसी सरकार में झारखंड के लोगों को प्रतिनिधित्व न देना भी यहां के लोगों को तकलीफ पहुंचाया और यही कारण है झारखंड राज्य निर्माण के लिए आवाज को और तेज किया गया।
20-21 जनवरी 1939 को आदिवासी महासभा के द्वितीय अधिवेशन में सार्वजनिक रूप से पहली बार झारखंड निर्माण के लिए आवाज उठाई गई और बाकायदा उपस्थित पदाधिकारियों ने एक प्रस्ताव तैयार किया। लगभग 10 वर्षों बाद आदिवासी महासभा से अलग होकर मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा ने 31 दिसंबर 1949 झारखंड पार्टी का निर्माण किया इसमें पहली बार झारखंड के आदिवासियों के साथ यहां के रहने वाले गैर आदिवासियों ने भी खुलकर झारखंड निर्माण की लड़ाई में भाग लिया और एक नई शक्ति प्रदान की। संपूर्ण क्रांति के नेता जयप्रकाश नारायण ने 1951 में सोशलिस्ट पार्टी का निर्माण किया था इस पार्टी ने भी अलग झारखंड राज्य निर्माण का समर्थन किया था जिससे यहां के लोगों को एक नए राज्य की स्थापना की आज बढ़ाने में एक और कदम का साथ मिला।
अलग झारखंड निर्माण की लड़ाई इतनी आसानी नहीं थी दोस्तों कभी यहां के नेताओं में आपसी मतभेद होने से उनका संगठन में बिखराव पड़ा तो कहीं राजनीतिक प्रतिद्वंदी या स्वार्थ ने इन्हें बर्बाद कर दिया ऐसा ही वाक्य झारखंड पार्टी के साथ भी हुआ, 20 जून 1963 को झारखंड पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ के लिए कांग्रेस में विलय कर दिया गया इसके बाद कुछ वर्षों के लिए झारखंड नवनिर्माण की लड़ाई धीमी पड़ गई। परंतु 1912 में जो बीज रोपा गया था वह इतनी आसानी से सूखने वाला नहीं था दोस्तों समय अंतराल के साथ धीरे-धीरे इस बिज़ ने फिर से पनपना शुरू कर दिया। इस दौरान 1965 में बिरसा सेवा दल जो की एक स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन था का गठन हुआ इसके साथ ही 1967 में ऑल इंडिया झारखंड पार्टी और 1969 में हुल झारखंड पार्टी नामक एक समानांतर संगठनों का गठन हुआ जिसने दबे जुबान ही सही अलग समय समय पर राज्य की मांग उठाती रही।
वैसे इतिहासकारों ने झारखंड निर्माण के इतिहास को दो भागों में विभक्त विभाजित करते हैं यानी की 1912 से लेकर 1940 तक के कालखंड को प्रथम भाग और 1940 से लेकर 2000 तक के भाग को द्वितीय भाग का नाम दिया है इसमें गौर करने की बात है कि 1912 से लेकर 1940 तक का वह कालखंड जिसमें झारखंड का निर्माण की बात तो नहीं उठाती थी लेकिन यहां के लोगों के हक अधिकार और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद होना शुरू हो गया था। 4 फरवरी 1973 का वह दिन जब झारखंड अलग राज्य के निर्माण में एक नई पार्टी के निर्माण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
जी हां हम बात कर रहे हैं झारखंड मुक्ति मोर्चा की। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है नए झारखंड की मुक्ति हेतु किया गया उलगुलान का एक ऐसा मोर्चा जो अलग राज्य निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहता है। वैसे आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूं 80 के दशक के जाने-माने नेता विनोद बिहारी महतो का शिवाजी समाज(1969), शिबू सोरेन का सोनोत समाज(1970) और ए.के रॉय का मार्क्सवादी समन्वय समिति (1971) के संयुक्त समन्वय से झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया था। इस मोर्चे ने भी अलग झारखंड राज्य की मांग की लड़ाई को प्रखरता से उठाना शुरू किया और यहां के लोगों के दिलों दिमाग में एक नई चिंगारी जलाने वाला काम किया। 1986 में झारखंड अलग राज्य की मांग को धार देने में झारखंड मुक्ति मोर्चा का स्टूडेंट विंग यानी ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसु) के गठन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस आर्गेनाइजेशन ने बृहद पैमाने पर झारखंड की युवाओं को एक मंच पर लाने का काम किया और जोरदार तरीके से अलग झारखंड राज्य की मांग उठनी लगी और भारत सरकार पर दबाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। अब धीरे-धीरे केंद्र सरकार के कानों तक झारखंड अलग राज्य की मांग पहुंच चुकी थी।इस बीच 1987 में 19 राष्ट्रीय दलों को छोड़कर झारखंड के 53 विभिन्न संगठनों ने संयुक्त रूप से झारखंड समन्वय समिति का गठन किया जिसका संयोजक डॉ. बीपी केसरी को बनाया गया। पहली बार इतने बड़े पैमाने पर और संख्या में सभी संगठनों ने संयुक्त रूप से अलग राज्य की मांग के लिए एक होने का मन बनाया जो आप इंगित कर रहा था कि बहुत जल्द इन्हें अलग झारखंड राज्य मिलने वाला है।
इस समिति ने लिखित रूप से तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन को एक 23 सूत्री मांगपत्र सौपता है जिसमें बिहार बंगाल उड़ीसा व मध्य प्रदेश के कुल 21 जिलों को मिलाकर झारखंड राज्य का निर्माण करने की मांग करते हैं। आहिस्ता आहिस्ता झारखंड निर्माण का रास्ता साफ होते जा रहा था । 1989 में झारखंड विषयक समिति का गठन किया गया,जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री बूटा सिंह की अध्यक्षता में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि बिहार सरकार के प्रतिनिधि और झारखंड प्रांत के प्रतिनिधि सदस्यों को वार्ता के लिए बुलाया गया और इसमें नए झारखंड निर्माण के लिए प्रस्ताव स्वीकृत किया गया। इस बीच झारखंड विषयक समिति ने केंद्रीय गृह मंत्री से झारखंड क्षेत्र विकास परिषद के गठन की सिफारिश की थी।
सन 1995 झारखंड एरिया ऑटोनॉमस काउंसिल यानी झारखंड क्षेत्रीय स्वशासीय परिषद का गठन किया गया इस परिषद ने बिहार सरकार और झारखंड के नेताओं के बीच कई दौर की वार्ता के पश्चात इसके गठन का प्रस्ताव पारित हुआ। झारखंड एरिया ऑटोनॉमस काउंसिल का अध्यक्ष शिबू सोरेन और उपाध्यक्ष सूरज मंडल को बनाया गया था। परंतु इस परिषद में तत्कालीन बिहार सरकार में झारखंड को मात्र 18 जिलों के साथ अलग करने के लिए राजी हुआ जो कि यहां के आदिवासियों के लिए उनके हाथ में झुनझुना सौंपने के जैसा था। लगातार अलग झारखंड की मांग ने तत्कालिन केंद्र सरकार और राज्य सरकार की नींद हराम कर दी थी।
इस बीच 22 जुलाई 1997 ई को बिहार विधानसभा द्वारा झारखंड अलग-अलग राज्य गठन हेतु संकल्प पारित कर उसे केंद्र को भेजा गया। 1998 ईस्वी में केंद्र सरकार ने बिहार विधानसभा द्वारा पारित संकल्प के आधार पर अरुणाचल राज्यों से संबंधित बिहार राज्य पुनर्गठन विधायक तैयार कर स्वीकृति के लिए बिहार सरकार को भेजो जिसे बिहार विधानसभा ने नामंजूर कर दिया। इस बीच 25 अप्रैल 2000 ई को झारखंड निर्माण हेतु बिहार राज्य पुनर्गठन विधेयक 2000 को बिहार सरकार द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई। इस विधायक को 2 अगस्त 2000 ई को लोकसभा और 11 अगस्त 2000 ई को राज्यसभा से पारित किया गया।
और अंततः 25 अगस्त 2000 को देश के महामहिम राष्ट्रपति के आर नारायण ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर किया और इस तरह से भगवान बिरसा मुंडा के जयंती यानी 15 नवंबर को अंतत झारखंड भारत का 28 वा राज्य बना। इतनी लंबी संघर्ष के बाद अंतत हमारा झारखंड का निर्माण हुआ 2.42 प्रतिशत हिस्से के साथ या भारत का 28 वन राज्य बना और लगभग चार करोड़ की आबादी इस राज्य में निवास करती है। दोस्तों यह रही झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर झारखंड निर्माण के आंदोलन की कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम जिसे मैंने संक्षिप्त में आपके सामने बताने का प्रयास किया।