By Anshu;
L19 DESK : क्या आपको पता है कि हमारे देश को जो अधिकारी चलाते हैं, उनमें से लगभग सारे ही तथाकथित “ऊंची जाति” से हैं। देश की आधी से भी ज्यादा आबादी यानि एससी एसटी ओबीसी वर्ग से केवल गिने चुने ही लोग ग्रेड ए और ग्रेड बी के पोस्ट पर हैं। इसके आंकड़े खुद भारत सरकार ने पेश कर रखे हैं। दरअसल, इसी साल मार्च 2023 में एक रिपोर्ट राज्यसभा में पेश की गयी, जिसमें साल 2018 से लेकर 2022 तक में जितने भी आईएएस, आईपीएस व आईएफएस अफसर बने, उनकी डिटेल्स साल के अनुसार दी गयी। इन अफसरों की जाति का भी आंकड़ा पेश किया गया कि इनमें से कितने एससी एसटी और ओबीसी तबके से हैं। आंकड़े देखकर आपको काफी हैरानी होगी।
देश के अफसर पदों पर बहुजनों की क्या है स्थिति?
ये आंकड़े भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग मंत्रालय ने पेश किये हैं। इसके अंतर्गत ही यूपीएससी की परीक्षा कंडक्ट की जाती है और ग्रेड ए और ग्रेड बी के अफसर नियुक्त किये जाते हैं। आंकड़ों की मानें, तो साल 2018 से लेकर 2022 के बीच आईएएस, आईपीएस और भारतीय वन सेवा में की गई कुल 4,365 नियुक्तियों में से ओबीसी तबके से केवल 695, एससी से 334 और एसटी से 166 उम्मीदवारों को ही नियुक्त किया गया। जबकि 2018 में, कुल 464 आईएएस अधिकारियों को नियुक्त किया गया था, उनमें से केवल 54 ओबीसी, 29 एससी और 14 एसटी समुदाय से थे।
2019 और 2022 के बीच भी, संख्याओं पर बारीकी से नजर डालने से पता चलता है कि आईएएस श्रेणी की सरकारी नौकरियों के लिए ओबीसी, एससी और एसटी तबके से नियुक्त उम्मीदवारों ने कभी भी कुल मिलाकर सौ का आंकड़ा पार नहीं किया। 2019 में 371 और 2020 में 478 आईएएस अधिकारियों को नियुक्त किया गया, दोनों वर्षों में केवल 61 ओबीसी समूहों से थे। जबकि 2019 में एससी वर्ग से 28 और एसटी समुदायों से 14 आईएएस अधिकारियों को नियुक्त किया गया था, 2020 में एससी से 25 और एसटी समूहों से 14 को आईएएस अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया था।
वहीं, साल 2021 में जो नियुक्तियां हुईं, उनमें से केवल 54 आईएएस अधिकारी ही ओबीसी तबके से थे। 2022 में 58 ओबीसी, 30 एससी और 13 एसटी से आईएएस अधिकारी के रूप में नियुक्त किए गये।
आईपीएस और आईएफएस श्रेणियों में भी, पिछले पांच वर्षों में ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों से नियुक्ति की कम दर देखी गई थी। 337 आईपीएस अधिकारियों में से केवल 49 ओबीसी समूह से थे जबकि 25 एससी और 20 एसटी से थे। 2021 में, 339 आईपीएस अधिकारियों में से केवल 57 ओबीसी समुदायों से थे, जबकि 28 एससी और 14 एसटी श्रेणियों से थे। वहीं, 2021 में 190 IFS अधिकारियों में से केवल 40 ओबीसी समूह से थे, 16 एससी से और 8 एसटी से थे।
अगर हम इसे पर्सेंटेज में गिने तो, पता चलता है पिछले पांच सालों के दौरान आईएएस, आईपीएस और आईएफएस में नियुक्तियों के कुल आंकड़ों में से ओबीसी से केवल 15.92 प्रतिशत लोगों ने नौकरियां हासिल कीं, जबकि एससी को 7.65 प्रतिशत और एसटी को 3.80 प्रतिशत नौकरियां मिलीं। यानि कुल मिलाकर इन तबकों से केवल 27% लोगों को इन पदों पर नियुक्ति मिली। जबकि हमारे भारतीय संविधान में ओबीसी तबके के लिये 27%, एससी के लिये 15%, एसटी के लिये 7.5% सीटें आरक्षित हैं जो कि कुल मिलाकर 50% होती हैं। मगर हर तबके के आरक्षित सीटों पर केवल आधे उम्मीदवार ही ग्रेड ए और ग्रेड बी के पोस्ट पर नियुक्त हैं।
क्या हैं कारण?
अगर इसके कारण पर जायें, तो ये स्पष्ट नहीं है। हालांकि, कई बार ये आरोप लगते रहे हैं कि यूपीएससी के इंटरव्यू में एससी एसटी और ओबीसी तबके के उम्मीदवारों के साथ भेदभाव होता है। उनके रिटेन में अच्छे मार्क्स होते हैं, मगर इंटरव्यू के समय उन्हें कम मार्क्स दिये जाते हैं, जिससे उनका सेलेक्श रुक जाता है।
इसे लेकर साल 2021 में दिल्ली सरकार में समाज कल्याण विभाग के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने भी आरोप लगाये थे। इसके साथ ही उन्होंने ये सुझाव दिया था कि जिस तरह से रिटेन परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों की जाति का पता नहीं होता है, ठीक उसी तरह इंटरव्यू के दौरान भी सरनेम का पता इंटरव्यू लेने वालों को नहीं होनी चाहिये।
इसी तर्ज पर दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रिज यानि ‘डिक्की’ ने भी एक रिपोर्ट जारी की थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सरनेम पता होने के वजह से सिविल सेवा परीक्षा में ज्यादातर शोषित समाज के उम्मीदवारों के साथ इंटरव्यू के दौरान भेदभाव होता है। वहीं, जिन उम्मीदवारों ने जाति और धर्म छिपा रखी थी, उनके पास होने की संख्या भी ज्यादा थी।
अब कारण जो भी हो, मगर ये तो साफ है कि सिविल सेवा की नियुक्तियों में अब भी सामाजिक रुप से काफी अंतर है। देश के बहुजनों की ग्रेड ए और ग्रेड बी की नौकरियों में अब भी पहुंच नहीं बन पायी है। उनकी सीटें खाली रह जाती हैं।