L19/DESK : शारदीय नवरात्र की शुरुआत 15 अक्तूबर से हो रहा है। वहीं इसके शुरू होने से ठीक एक दिन पहले यानी 14 अक्तूबर पितृ विसर्जन के दिन सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है। 14 अक्तूबर को सूर्य ग्रहण रात 8 बजकर 34 मिनट से शुरू होगा और 15 अक्तूबर की रात 2 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगा। ऐसे में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत सूर्य ग्रहण के साए में हो रही है। धार्मिक शास्त्रों में एक तरफ जहां नवरात्रि को बहुत पावन माना जाता है, वहीं ग्रहण की घटना को शुभ नहीं माना जाता है। इस वजह से कई लोगों के मन में यह भय बना हुआ है कि सूर्य ग्रहण का प्रभाव शारदीय नवरात्र की पूजा पर भी होगा। शारदीय नवरात्र की शुरुआत 14 अक्टूब शनिवार को रात 11 बजकर 24 मिनट से हो रहा है। इस समय सूर्य ग्रहण भी लगा होगा।
पुरोहित आचार्य श्याम सुंदर मिश्र ने बताया कि सूर्य ग्रहण का नवरात्रि की पूजा पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि नवरात्रि में कलश स्थापना का महत्व होता है और इस दिन कलश स्थापना सूर्य ग्रहण समाप्त होने के कुछ घंटों बाद होगा। कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को दिन के 11 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक है। ऐसे में शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के लिए आपके पास 45 मिनट का समय है। सूर्य ग्रहण के दौरान आस-पास का वातावरण दूषित हो जाता है। आचार्य श्याम सुंदर मिश्र ने कहा कि कलश स्थापना से पहले आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद और कलश स्थापना से पहले पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें। फिर स्नान के बाद तुलसी के पौधे पर गंगाजल छिड़कें।
इसके अलावा इस दिन तिल और चने की दाल का दान करें। इसके बाद ही इस दिन विधि-विधान से कलश स्थापना करें, क्योंकि सूर्य ग्रहण के साए में ही शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। शारदीय नवरात्र नौ दिनों तक चलने वाली इस पूजा में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा करने से लोगों को हर से मुश्किल परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।आचार्य श्याम सुंदर मिश्र ने बताया कि शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता के अनुसार, कलश को भगवान विष्णु का प्रतिरुप माना गया है। इसलिए सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए । पूजा में सभी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। कलश में हल्दी को गांठ, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा रखी जाती है और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर कर जौ बौये जाते है। जौ बोने की इस विधि के द्वारा अन्नपूर्णा देवी का पूजन किया जाता है जोकि धन-धान्य देने वाली हैं तथा माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित कर रोली, चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से माता का श्रृंगार करना चाहिए। साथ ही माता जी को प्रातः काल फल एवं मिष्ठान का भोग और रात्रि में दूध का भोग लगाना चाहिए और नवरात्र के पूर्ण वाले दिन हलवा पूरी का भोग लगाना चाहिए।
नवरात्र के प्रथम दिन से ‘दुर्गा सप्तशती’ अथवा ‘दुर्गा चालीसा का पाठ प्रारम्भ किया जाता है। पाठ पूजन के समय अखंड दीप जलाया जाता है जोकि व्रत के पारायण तक जलता रहना चाहिए। कलश स्थापना के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कलश स्थापना के दिन ही नवरात्रि की पहली देवी, मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की आराधना की जाती है। इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा मां का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं।
शारदीय नवरात्र के दिन और तिथियां प्रतिपदा, कलश स्थापना:
15 अक्टूबर 2023- मां शैलपुत्री की पूजा द्वितीया 16 अक्टूबर 2023 – मां ब्रह्मचारिणी की पूजा तृतीया: 17 अक्टूबर 2023 चन्द्रघंटा की पूजा – मां चतुर्थी: 18 अक्टूबर 2023 कूष्मांडा की पूजा – मां पंचमी: 19 अक्टूबर 2023 स्कंदमाता की पूजा मां षष्ठी 20 अक्टूबर 2023 कात्यायनी की पूजा – मां सप्तमी: 21 अक्टूबर 2023 – कालरात्रि की पूजा मां अष्टमी: 22 अक्टूबर 2023 – मां सिद्धिदात्री की पूजा महानवमी: 23 अक्टूबर 2023 महागौरी की पूजा नवरात्रि व्रतपारण विजयादशमी (दशहरा), 24 अक्टूबर 2023.