L19 DESK : “शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करें।”
ये कथन भारत के पहले उप राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के हैं। आज 5 सितंबर है, और देशभर में यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डॉ एस. राधाकृष्णन की स्मृति में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। राधाकृष्णन एक मशहूर दार्शनिक और शिक्षाविद थे। उनका जन्म 5 सितम्बर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में हुआ था। वह शिक्षा के बड़े पक्षधर रहे हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार किया।
डॉ राधाकृष्णन पूरे विश्व को एक विद्यालय मानते थे। उनका मानना था कि शिक्षा से ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबन्धन करना चाहिए। ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये अपने भाषण में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था- “मानव को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति तभी सम्भव है जब देशों की नीतियों का आधार पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना का प्रयत्न हो।”
डॉ राधाकृष्णन अपनी बुद्धि से परिपूर्ण व्याख्याओं, आनन्ददायी अभिव्यक्तियों और हल्की गुदगुदाने वाली कहानियों से छात्रों को मन्त्रमुग्ध कर देते थे। उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने की प्रेरणा वह अपने छात्रों को भी देते थे। वह जिस भी विषय को पढ़ाते थे, पहले स्वयं उसका गहन अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गम्भीर विषय को भी वह अपनी शैली से सरल, रोचक और प्रिय बना देते थे।
मगर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के ही अवसर पर शिक्षक दिवस क्यों और कैसे मनाया जाने लगा?
राधाकृष्णन के जन्म तिथि पर क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस?
इससे जुड़ा एक किस्सा है। एक बार की बात है जब राधा कृष्णन के कुछ शिष्यों ने मिलकर उनका जन्मदिन मनाने का सोंचा। इस संबंध में जब वे उनसे अनुमति लेने पहुंचे, तो राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन को मनाने की बजाय अगर इस दिन को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाए, तो मुझे गर्व महसूस होगा। इसके बाद से ही हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। पहली बार शिक्षक दिवस 1962 में मनाया गया था। ये डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का 77वां बर्थ डे था।
डॉ राधाकृष्णन की उपलब्धियां
भारत की आजादी के बाद यूनिस्को में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। 1949 से लेकर 1952 तक राधाकृष्णन सोवियत संघ में भारत के राजदूत रहे। वर्ष 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। सन 1954 में उन्हें भारत रत्न देकर सम्मानित किया गया। इसके पश्चात 1962 में उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया। जब वे राष्ट्रपति पद पर आसीन थे उस वक्त भारत का चीन और पाकिस्तान से युध्द भी हुआ। वे 1967में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हुए और मद्रास जाकर बस गये।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए राधाकृष्णन को वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 1967 के गणतंत्र दिवस पर देश को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे और बतौर राष्ट्रपति ये उनका आखिरी भाषण था।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का निधन 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद हो गया राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई सम्प्रदाय के व्यक्ति थे। डॉक्टर राधाकृष्णन के पुत्र डॉक्टर एस. गोपाल ने 1989 में उनकी जीवनी का प्रकाशन भी किया।