L19 DESK: UCCकोड को लेकर पूरे देश के आदिवासी समुदायों में विरोध जारी है और पूरे देशवासियों के लिए एक समान कानून बनाने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लाने की तैयारी चल रही है। इस बीच आदिवासियों समुदाय को अपवाद के तौर पर छूट देने के भी सुझाव आ रहे हैं। बीतो दिनों UCC को लेकर कानूनी मामलों में संसदीय समिति की मीटिंग हुई थी, जिसमें अध्यक्ष सुशील मोदी ने आदिवासियों को इसके दायरे से बाहर रखने की बात कही है। और ऐसा ही सुझाव आरएसएस के आनुषांगिक संगठन वनवासी कल्याण आश्रम ने भी दिया है। वनवासी कल्याण आश्रम ने विधि आयोग को लिखित पत्र के मध्यम से कहा है कि उन्हे इस मामले में जल्दबाजी में रिपोर्ट नहीं सौंपनी चाहिए।
क्या कहना है आरएसएस का?
RSS के संगठन का भी कहना है कि विधि आयोग इस मामले में कोई फैसला लेने से पहले आदिवासी समाज के रिवाजों और परंपराओं को अच्छे से समझे फिर इस पर विचार करे। इसके लिए उन्हे आदिवासी संगठनों और सिविल सोसायटी के सदस्यों से बात करनी चाहिए। आरएसएस ने इस विषय पर आदिवासी समुदाय के लोगों से भी अपील की है कि, वे अपने सुझाव आयोग के सामने आवश्य पेश करें तथा आरएसएस संगठन ने कहा कि आदिवासी समाज के लोगों को सोशल मीडिया पर चल रही डिबेट्स को नजरअंदाज करते हुए अपने सुझाव सरकार को सौंपने चाहिए।
वनवासी कल्याण आश्रम ने क्या कहा?
वनवासी कल्याण आश्रम की ओर से जारी बयान में कहा गया है , कि हम संसदीय पैनल के सुझाव की सराहना करते हैं, जिन्होंने आदिवासियों समुदाय को UCC के दायरे से बाहर रखने को कहा है। संगठन ने यह भी कहा कि इस मामले में सोशल मीडिया पर डिबेट जरूर चल रही हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों में विचार का अभाव देखने को मिल रहा है लेकिन इसके चलते लोग भ्रमित भी हो रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी समुदाय के लोगों में भी भ्रम पैदा किया जा रहा है। कुछ लोग अपना एजेंडा पूरा करने के लिए ऐसा कर रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा के साथ गठबंधन करने वाले कई राजनीतिक दलों ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर ऐतराज जताया है।
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इन राज्यों में निवास करती है आदिवासियों की बहुत बड़ी आबादी। दरअसल पूर्वोत्तर भारत, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों में आदिवासियों की बड़ी आबादी निवास करती है। ऐसे में यूसीसी का असर इन राज्यों में देखने को मिल सकता है। यह मामला राजनीतिक लिहाज से भी बहुत ज्यादा संवेदनशील है । इस वर्ष 2023 में मध्य प्रदेश और छ्त्तीसगढ़ में चुनाव होने को हैं। ऐसे में भाजपा सरकार भी नहीं चाहेगी कि आदिवासी समुदाय के बीच कोई भ्रम पैदा हो, जिसका प्रभाव आने वाले चुनाव में दिखाई पड़े ।