L19/DESK : देश में समान नागरिक संहिता को लेकर छिड़ी बहस के बीच सोमवार को केंद्र सरकार की कानून व व्यवस्था मामलों की संसदीय समिति बैठक हुई।इस बैठक की अध्यक्षता भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने की। इसमें सुशील कुमार मोदी ने उत्तर-पूर्व और अन्य क्षेत्रों के आदिवासियों को किसी भी संभावित समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर रखने की वकालत की है। हालाँकि इस बैठक में एक सदस्य ने इस तर्क का विरोध करते हुए कहा कि अगर आदिवासियों को समान नागरिक संहिता से छूट दी गई तो एकरूपता कैसे आएगी? उन्होंने कहा कि आदिवासियों को संविधान की 6 वीं अनुसूची के तहत सुरक्षा मिलती है जब यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद संविधान की अनुसूची 6 में आदिवासियों के लिए किए गए विशिष्ट प्रावधान खत्म नहीं होंगे।
इस बैठक में विभिन्न दलों के 17 सांसद एवं विधि आयोग के सदस्य शामिल थे इन सबकी राय के आधार पर रिपोर्ट तैयार होगी, जिसे संसद में पेश किया जाएगा। वहीं, कांग्रेस और डीएमके समेत ज्यादातर विपक्षी दलों ने आम चुनाव के मद्देनजर यूसीसी को लेकर सरकार की टाइमिंग पर सवाल उठाए। सबकी राय के आधार पर रिपोर्ट तैयार होगी, जिसे संसद में पेश किया जाएगा। 14 जून को 22वें विधि आयोग ने एक बार फिर से यूनिफॉर्म सिविल कोड पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को आरंभ किया है और देश के सभी राज्यों के आदिवासी, धार्मिक और बुद्धिजीवियों के संगठनों से अपने अपने सुझाव मांगे गए हैं जिसमें अंतिम तिथि 14 जुलाई निर्धारित की है।
देश के विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा किया जा रहा विरोध
बीते दिनों मध्यप्रदेश में एक प्रोग्राम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूसीसी पर चर्चा की है, तब से देशभर में इस पर बहस छिड़ गया है। कई आदिवासी संगठन इस बात से आशंकित हैं कि अगर यह कानून लागू हुआ तो उनके रीति-रिवाजों, सामाजिक परंपरा, आदिवासी से जुड़े कानून पर इसका असर पड़ेगा। आदिवासी संगठनों को यह भी डर है कि अगर समान नागरिक संहिता लागू हो जाती है, तो आदिवासी समाज की पहचान ही खत्म हो जाएगी, इतना ही नहीं जमीन से जुड़े सीएनटी, एसपीटी और पेसा कानून पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।