L19 DESK : सरहुल पर्व की शुरुआत आज, 31 मार्च से हो गई है. इस महापर्व के दिन आदिवासी समाज के लोग उपवास में रहते हैं. सरहुल के पहले दिन ही मछली और केकड़ा भी पकड़ा जाता है. आदिवासी समाज के युवा नदी, तालाब या कुंआ से मछली और केकड़ा को पकड़कर लाते हैं. इसके बाद घर के मुखिया शाम को पुरखों का स्मरण करेंगे और उन्हें पकवान और तपावन आदि अर्पित करेंगे. शाम में पूजा होगी. पूजा के लिए पाहन दो नए घड़ों में पानी लाकर सरना स्थल पर रखेंगे.
मछली और केकड़ा पकड़ने की परंपरा
दरअसल, मछली और केकड़ा पकड़ने के पीछे आदिवासी समाज की अपनी अलग मान्यता है, उनका मानना है कि मछली और केकड़ा ही पृथ्वी के पूर्वज हैं. समाज का मानना है कि समुद्र के नीचे पड़ी मिट्टी को ऊपर लाकर ही पृथ्वी का निर्माण हुआ है और इसका पहला प्रयास मछली और केकड़े ने ही किया था. इसलिए सरहुल का पहला दिन इन्हीं को समर्पित होता है.
केकड़े को घर में टांग दिया जाता है
वहीं, आदिवासी समाज के द्वारा पकड़े गए केकड़े को रसोई घर में ऊपर टांग दिया जाता है. उसके कुछ महीने बाद इनके चूर्ण को खेतों में इस मनोकामना के साथ छींट दिया जाता है कि जैसे केकड़े की कई भुजाएं होती हैं, उसी तरह खेतों में फसलों की भरपूर बालियां हों.