l19/DESK : एक दौर था जब आदिवासियों को निम्न और हिन दृष्टि से देखा जाता था, हालांकि ऐसी मानसिकता अभी खत्म नहीं हुई है। जंगली, गंवार, सुवर, गधा,असभ्य और न जाने क्या-क्या कहकर संबोधित किया जाता है।लेकिन अब हर कोई आदिवासी बनना चाहता है, एक आंकड़ा कहता है भारत में 250 से ज्यादा गैर आदिवासी समाज खुद को आदिवासी बनाने की होड़ में लगे हुए हैं। धीरे-धीरे ऐसे समुदायों की संख्या बढ़ रही है जो आदिवासियों की संस्कृतियों से प्यार होने का ढोंग रच रहे हैं। पहले आदिवासी परिधान पहनने से लोगों को लाज लगता था, अब कोई भी, कहीं भी, कभी भी आदिवासी परिधानों का इस्तेमाल कर रहा है। आदिवासी कार्यक्रमों में जाने से पहले ये समुदाय दूरी बनाते थे अब वही लोग आदिवासी कार्यक्रमों, रिझरंग में भाग ले रहे हैं। आज हमारे आरक्षण पर सवाल उठाए जा रहा है,हमें तोड़ने के लिए हमें आपस में ही लड़ाया जा रहा है। आखिर ऐसा क्यों?क्या आपने कभी सोचा है??
ऐसा इसलिए क्योंकि इस आधुनिक युग में आदिवासियों के ही पास जल, जंगल,जमीन बचा हुआ है। यह वही जल, जंगल, जमीन है जिस पर अब सबकी नजर है,नजर इसलिए है क्योंकि इन आदिवासियों के पास ही सबसे ज्यादा जमीने हैं, इन आदिवासियों के पास ही प्राकृतिक संसाधन हैं,इन आदिवासियों के पास ही लोकतंत्र को बचाने की कला है तो ऐसे में जाहिर सी बात है आदिवासी प्रेम दिखेगा ही! ऐसे में सवाल तो बनता है जिस समाज को हजारों वर्षों से उपेक्षित नजरों से देखा जाता था वह समाज अब सबके लिए प्रिय कैसे बन रहा है?
आज केंद्र और राज्य की राजनीति का सबसे प्रमुख केंद्र बिंदु आदिवासी ही हैं। सभी राजनीतिक दल आदिवासियों के बिना अधूरी हैं। सुबह हो या शाम दर्जनों कार्यक्रम आदिवासियों के नाम आयोजित किया जा रहा है उनकी संस्कृतियों को समझने और बढ़ाने का मुहीम चलाया जा रहा है आखिर ऐसा क्यों? ऐसे में हम आप और सभी आदिवासियों को एकजुट होने की जरूरत है क्योंकि हमारे समुदाय पर अन्य समुदाय की गिद्ध नजर पड़ चुकी है। अगर आज हम, आप बिखर गए, आज हम, आप टूट गए तो जो बचा खुचा हमारा अस्तित्व है वह भी समाप्त हो जाएगा। इसलिए अब हमें पढ़ने लिखने से लेकर आदिवासी अस्मिता के लिए हर मुमेंट में आगे आना होगा, समय निकालना होगा, तभी जाकर हम अपनी आदिवासी अस्मिता,संस्कृति और परंपराओं को बचा सकते हैं।