L19. झारखंड में हाथीयों दवारा किये जाने वाले हमलो को रोकने के लिए वन विभाग द्वारा कोई ठोस कदम नही उठाया गया हैं। योजनाएं बन जाने के बावजूद उसका फल देखने को अब तक नहीं मिला हैं। जिसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अबतक हाथियों द्वारा 1800 लोगों की जान ली जा चुकी हैं। आंकड़ों के अनुसार अब तक हाथी और जंगली जानवरों ने दो लाख लोगों को नुकसान पहुंचाया है। फसल, पशुओं, मकानोंऔर अनाज का नुकसान भी शामिल हैं।
जंगली जानवरों के शिकार हो चुके लोगों पर वन विभाग 16 करोड़ रुपये मुआवजा बांट चुका है। 2000 से अधिक लोग घायल हो जाने पर 3.50 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा गया है। 109500 लोगों के फसल, पशु, मकान और अनाज का नुकसान हुआ है। जिसमे 38 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा जा चुका है।
हाथियों के लिए नहीं बन पाया कॉरिडोर
हाथियों के आतंक पर काबू पाने के लिये वन विभाग ने योजनाएं तो बनाई हैं , लेकिन वह कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं और विफल योजना की भरपाई आम लोग अपनी जान देकर चुका रहे हैं। हाथियों के भ्रमण के लिये एक प्राकृतिक स्थल से दूसरे प्राकृतिक स्थल तक कोरिडोर तैयार करने के लिए जीआइएस मैपिंग भी हुई थी , लेकिन यह कॉरिडोर अब तक नहीं बन पाया है। राज्य में पूर्वी सिंहभूम, प. सिंहभूम, गिरिडीह और दुमका में कॉरिडोर बनाया जाना था। वहीं उड़ीसा-चाईबासा, उड़ीसा-सारंडा, पूर्णिया-दलमा और सरायकेला- बंगाल में अंतरराज्यीय कॉरिडोर बनाया जाना था, परन्तु यह योजनाए भी घरी की धरी रह गई।
पुनर्वास का अभाव
हाथियों के पुनर्वास का आभाव भी इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है । हाथियों के भ्रमण का रास्ता बदल गया है। छोटे-छोटे जंगल होने के कारण हाथी भी भटक जा रहे हैं और घटनाएं बढ़ रही है। झारखण्ड के कई जिलों में हाथियों की उत्पात की खबर आती रहती हैं । हाथी का आबादी वाले क्षेत्र में आ जाने के कारण सम्पत्ति को नुकसान होता है। नागरिक भी इन हाथियों के गुस्से का शिकार बन रहे हैं। झारखण्ड सरकार ने हाथियों द्वारा होने वाले जान माल के नुकसान पर मिलने वाली मुआवजा की राशी को बढ़ाने जा रही है। प्रभारी मंत्री चंपई सोरेन ने इसकी जानकारी झारखंड विधानसभा में दी हैं।
मुआवजा में कितनी राशी मिलती हैं?
वर्तमान में हाथियों के उत्पात से मौत होने पर मृतक के परिवार वालो को 65 लाख रुपए और मकान के क्षतिग्रस्त होने पर 65 हजार रुपए देने का प्रावधान है।
एलिफेंट रेसक्यू सेंटर बन पाया
राज्य बनाने के बाद हाथियों के लिये एलिफेंट रेसक्यू सेंटर भी बनाया जाना था पर वह भी नहीं बन पाया। धनबाद के वन क्षेत्र और दलमा में रेसक्यू सेंटर बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। वन विभाग के अनुसार, एक हाथी दो से पांच वर्ग किलोमीटर में घूमता है। इस हिसाब से धनबाद का वन क्षेत्र रेसक्यू सेंटर के लिये उचित नहीं है। बताते चले की रेसक्यू सेंटर में हाथियों की अवश्यकताओं को पूरा किया जाता । पूरे एरिया की फेंसिंग तथा हाथियों के लिए खाने पीने और हाथियों की सुरक्षा का इंतजाम भी होता हैं।