L19 DESK : बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में, क्या संथाल हो जायेगी फतह… बुधवार के दिन बाबूलाल मरांडी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया गया, इसी के साथ कार्यकर्ताओं में एक खुशी का माहौल दिखने लगा है। बाबूलाल जी के साथ एक खास बात यह है कि वो झारखंड प्रदेश के अधिकतर भाजपा कार्यकर्ताओं का नाम मुँह जुबानी रखते हैं, मिलनसार हैं, और नब्ज पकड़ना जानते हैं। लेकिन संथाल परगना के इलाके में बाबूलाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने से भाजपा कार्यकर्ताओं में अलग ही जोश और ऊर्जा देखने को मिल रहा है, इसके पीछे का कारण यह है कि भाजपा के बड़े नेता संथाल परगना के इलाके को झामुमो का गढ़ मान कर उतना ध्यान नहीं देते हैं जितना बाबूलाल मरांडी के भाजपा में आने के बाद दिया गया है। लगभग हर महीने बाबूलाल जी अपने लाव लश्करों के साथ संथाल का दौरा कर रहे हैं, जिससे 2019 के बाद लगभग निराश हो चुकी संथाल की भाजपा सेना, के पास अचानक से ऊर्जा का संचालन हो गया। बाबूलाल मरांडी की खबरों को जब आप कवर करने संथाल के इलाकों में जायेंगे तो वहाँ कार्यकर्ताओं को बाबूलाल जी डांट के साथ सम्मान भी देते दिख जायेंगे, बिल्कुल एक अभिभावक की भांति। संथाल परगना की जब चर्चा हो रही है तो चुनावी हार जीत की बात होनी चाहिये, 2024 के चुनाव में भाजपा प्रदेश में हारे या जीते यह तो भविष्य के गर्त में है, क्योंकि संथाल परगना को छोड़कर बाकी चारो प्रमंडल में एक तीसरा धड़ा जयराम महतो के नेतृत्व में खड़ा हो चुका है। इसलिए परिणाम किसके पक्ष में होगा यह तय करना बेहद मुश्किल है।
लेकिन संथाल परगना के राजनीति को आसानी से निष्कर्ष तक पहुँचाया जा सकता है। संथाल परगना की बेहद खास सीट है बरहेट, दुमका, बोरियो और लिट्टीपाड़ा इसके अलावा बाकी सीटों पर भाजपा और झामुमो की टक्कर हो सकती है। संथाल में अभी तक तीसरा धड़ा ताल ठोकते नहीं दिख रहा है, वजह है कि जयराम महतो की पकड़ गोड्डा को छोड़कर संथाल परगना में उतनी अच्छी नहीं है। हालांकि तीसरा धड़ा लोबिन हेम्ब्रोम के तरफ से भविष्य में खड़ा किया जा सकता है।
बरहेट विधानसभा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का चुनावी क्षेत्र है, पिछले दो बार से हेमंत यहाँ से झामुमो पार्टी से चुनाव जीत रहे हैं लेकिन बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही यह सीट सवाल के घेरे में खड़ी दिख रही है। वजह है बरहेट विधानसभा क्षेत्र में बाबूलाल हेम्ब्रोम की मजबूत पकड़, और संथाल बहुल बरहेट, बोरियो में संथाल मतदाताओं के बीच बाबूलाल की गहरी लोकप्रियता और हेमंत सोरेन की गिरती पहचान।
बरहेट की जब बात करते हैं तो बाबूलाल मरांडी के पास यहाँ तुरुप के पत्ते के रूप में गमालियल हेम्ब्रोम जैसे मजबूत नेतृत्वकर्ता है। जिसे बाबूलाल काफी पसंद करते हैं, और अब जब बाबूलाल प्रदेश अध्यक्ष बने हैं तो हो सकता है, गमालियल हेम्ब्रोम को मुख्यमन्त्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ाया जाए। क्योंकि बरहेट भाजपा के पास अब तक रेणुका मुर्मू और सिमोन मालतो जैसे स्थानीय स्तर के नेता ही थे, जिनकी पकड़ तो गैर संथाल समुदाय में अच्छी थी लेकिन संथाल बहुल इलाके में संथाल समुदाय के मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ नहीं थी। सिमोन मालतो 2019 के चुनाव में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव भाजपा से मैदान में थे 25 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।
लेकिन गमालियल हेम्ब्रोम जैसा एक मजबूत विकल्प अब बरहेट भाजपा के पास दिख रहा है ऊपर से बाबूलाल मरांडी का हाथ। सबसे खास बात यह है कि आजसु के टिकट पर गमालियल हेम्ब्रोम 2019 के चुनाव में भाग्य आजमा चुके हैं हालाँकि तब गमालियल की लोकप्रियता इतनी नहीं थी, और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। गमालियल हेम्ब्रोम के पहचान की बात करें तो संथाल समुदाय से संबंध रखते हैं, और जयहिंद क्लब के अध्यक्ष हैं। संथाल युवाओं में गमालियल हेम्ब्रोम की काफी पकड़ है संथाल समुदाय के युवा पीढ़ी उन्हें काफी पसंद करते हैं, साथ ही गैर संथाल समुदायों में भी इनकी अच्छी खासी लोकप्रियता है। गमालियल बरहेट के एक प्रसिद्ध फुटबॉल क्लब के संस्थापक सह अध्यक्ष हैं, जयहिंद क्लब पेटखासा में हर वर्ष विदेशों से फुटबॉल लीग खेलने के लिए खिलाडी आते हैं काफी भीड़ होती है गोड्डा साहिबगंज पाकुड़ दुमका के दर्शकों की भीड़ देखकर लोगों को पसीने आ जाते हैं, खास बात यह है कि महिलाओं का भी मैच इस लीग में आयोजित होता है जिसे देखने के लिए लाखों में महिलाएं भी आती है खासकर आदिवासी महिलाएं। कई सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाये जाते हैं और यह सब सफल होता है गमालियल हेम्ब्रोम के नेतृत्व में।
जिस कारण संथाल परगना के चार पाँच जिलों के लोग गमालियल हेम्ब्रोम को निजी तौर पर जानते हैं खासकर संथाल युवाओं चाहे पुरुष हो या महिलाएं इनका अलग ही लोकप्रियता है। इसके साथ गमालियल हाल के वर्षों में सामाजिक कार्यक्रमों में भी रुचि लेते दिखते हैं, जिस कारण बरहेट के हरेक गाँवो में इनकी अपनी पहचान है।
हेमंत सोरेन और गमालियल हेम्ब्रोम का तुलना किया जाए, तो फिलहाल गमालियल ज्यादा प्रभावशाली दिखते हैं। क्योंकि भले ही हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हो लेकिन उनसे लोग नाराज हैं, क्योंकि जिन मुद्दों को लेकर झामुमो गठबंधन सरकार में आयी थी, उन मुद्दों पर काम नहीं किया गया। दूसरी बात है की हेमंत सोरेन बरहेट विधानसभा से भले ही चुनाव जीत रहे हैं लेकिन वो रामगढ़ जिला के नेमरा गाँव से संबंध रखते हैं। जबकि गमालियल बरहेट विधानसभा के ही मूल निवासी हैं ऊपर से क्षेत्र में अच्छी पकड़। तीसरी सबसे अहम विषय है युवाओं में गमालियल की अच्छी पहचान और जमीनी जुड़ाव, जबकि हेमंत सोरेन अपने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही रहते हैं। चौथी क्रांतिकारी सिध्दू कान्हु के वंशज मंडल मुर्मू का गमालियल के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलना, और बाबूलाल मरांडी का आशीर्वाद। पांचवी बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रोम का मुख्यमंत्री हेमंत के खिलाफ ही पत्ता खोल कर हंगामा करना, जिस कारण विकल्प की तलाश में बरहेट विधानसभा के लोग गमालियल हेम्ब्रोम के साथ जा सकते हैं।
हालांकि अब तक कोई भी औपचारिक घोषणा नहीं है लेकिन बाबूलाल के साथ गमालियल हेम्ब्रोम के नजदीकी रिश्ते और लोकप्रियता, विकल्प बना सकती है।
बोरियो विधानसभा की बात करें तो लोबिन हेम्ब्रोम की अपनी पकड़ और लोकप्रियता है, यहाँ से बाबूलाल मरांडी लोबिन हेम्ब्रोम या उसके बेटे अजय हेम्ब्रोम को भी पार्टी में शामिल कराकर चुनाव लड़ा सकते हैं। हालांकि अब तक लोबिन हेम्ब्रोम झामुमो के ही विधायक हैं लेकिन बोरियो विधानसभा में झामुमो पार्टी के कार्यकर्ताओं के अंदर दो फाड़ साफ दिखती है। वैसे भाजपा के पास बोरियो विधानसभा में सलखु सोरेन, पूर्व विधायक ताला मरांडी, सुर्य नारायण हाँसदा, बरहेट से लाकर रेणुका मुर्मू, सिमोन मालतो या फिर दुमका से लाकर पूर्व मंत्री लुईस मरांडी पर दांव खेल सकती है, यह भाजपा की अंदरूनी मामला है। सलखु सोरेन पर दांव खेलने के पीछे का कारण यह है कि जब बोरियो विधानसभा में भाजपा बिल्कुल हासिये पर चली गयी थी तब भी सलखु सोरेन तन मन धन से अपने गिने चुने 5-10 कार्यकर्ताओं के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ने में लगे थे और पार्टी को क्षेत्र में मजबूत कर रहे थे, फ़िल्हाल वो भाजपा अनुसूचित मोर्चा के जिला अध्यक्ष हैं। ताला मरांडी के बारे में कहा जाता है कि उनकी छवि तो साफ है, लेकिन वो चुनाव जीतने के बाद काम नहीं करते, वो बोरियो विधानसभा से दो बार भाजपा से विधायक रह चुके हैं। इनके साथ यह भी है कि रघुवर सरकार में विधायक रहते इन्होंने कुछ नीतियों का विरोध कर दिया था जिस कारण गैर आदिवासी वोटर इनसे नाराज दिखते हैं।
सुर्य नारायण हाँसदा के बारे में कहा जाता है इनकी छवि क्षेत्र में साफ नहीं है लोग इन्हें समर्थन देने से सिर्फ इसलिए डरते हैं क्योंकि इनका पिछला इतिहास आपराधिक मामलों से जुड़ा हुआ है हालांकि सूर्या हाँसदा की भी पकड़ संथाल युवाओं के बीच काफी मजबूत है। हो सकता है बाबूलाल मरांडी और भाजपा नेतृत्व दोबारा इन पर दांव चलाये, क्योंकि पिछली बार जब इन्हें भाजपा से टिकट दिया गया था, तो मोदी लहर के बावजूद क्षेत्र में इन्हें लोबिन हेम्ब्रोम से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन क्षेत्र में युवाओं के बीच अच्छी पकड़ होने के कारण भाजपा नेतृत्व इस पर दांव खेल सकते हैं।
रेणुका मुर्मू भाजपा की महिला नेत्री हैं जिला परिषद अध्यक्ष भी रह चुकी हैं इनके पति अंजीत भगत गैर आदिवासी हैं और बरहेट विधानसभा और बाजार में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अंजीत भगत और रेणुका मुर्मू की अच्छी पकड़ है। लेकिन बरहेट से इन्हें कभी भाजपा ने चुनाव का टिकट दिया ही नहीं और इस बार भी बहुत ही कम उम्मीद दिख रहा है क्योंकि भाजपा के पदाधिकारी नाम ना बताने के शर्त पर बताते हैं कि रेणुका मुर्मू आदिवासी संथाल समुदाय से जरूर आती हैं लेकिन संथाल समुदाय में नेता के रूप में पकड़ मजबूत नहीं है, भले ही सामाजिक कार्यकर्ता क्यों ना हो। और बोरियो से रेणुका मुर्मू के टिकट मिलने की बात पर भाजपा के कुछ बड़े नेता बताते हैं कि इस विधानसभा से आज तक कोई भी महिला, विधायक नहीं चुनी गई है। इसलिए साफ छवि होने के कारण भाग्य आजमाया जा सकता है।
सिमोन मालतो के बारे में कहा जाता है कि बरहेट सीट से उन पर भाजपा भाग्य अजमा चूकी है, लेकिन वो जीत नहीं पाए, इसके पीछे की वजह यह है कि सिमोन मालतो, विलुप्त हो रही पहाड़िया समुदाय (प्रिमिटिव ट्राईब) से ताल्लुक रखते हैं, जिनकी आबादी बरहेट विधानसभा में भले ही ठीक ठाक हो लेकिन बहुत प्रभावशाली नहीं है। दूसरी बात यह है कि आदिम जनजाति से संबंध रखने के कारण संथाल समुदाय के मतदाता वोट देने से परहेज करते हैं। जबकि भाजपा के कोर वोटर यानी कि गैर आदिवासी हिंदू समुदाय खुलकर पिछले चुनावों में सिमोन मालतो के पक्ष में खड़े दिखे थे।
बोरियो से इन्हें चुनाव लड़ाने के पीछे यह जानकारी हाथ लगा कि चर्चित रेबिका पहाड़ीन हत्याकांड के समय सिमोन मालतो ने प्रदेश नेतृत्व से आई भाजपा टीम को काफी सहयोग किया था, क्योंकि रेबिका भी सिमोन मालतो के समुदाय से ही संबंध रखती थी, दूसरी बात है कि सिमोन का लोगों के बीच अच्छा छवि का होना और विकल्प होना। मतलब भाजपा के कोर वोटबैंक के एक बड़े हिस्से का मानना है कि क्षेत्र से भाजपा के गैर संथाल को टिकट दिया जाना चाहिए, क्योंकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट होने के नाते इस सीट पर आज तक संथाल समुदाय से संबंध रखने वाले नेता ही विधायक बनते रहे हैं, जबकि आदिवासी समुदाय में संथाल के अलावा कई जनजातियाँ इस क्षेत्र में निवास करती रही है।
जिनमें, पहाड़िया, उरांव और लोहरा समुदाय के लोग खास तौर पर हैं, लेकिन इनकी आबादी संथाल परगना के क्षेत्र में कम होने की वजह से अनुसूचित जनजाति की सीटों पर हमेशा से संथाल समुदाय के ही लोग विधायक बनते रहे हैं। पहाड़िया समुदाय के बारे में बात किया जाए तो दामिन ए कोह के तर्ज पर इतिहास में राजमहल की पहाड़ियों का मूल वासी इन्हें ही माना गया है, ये बातें फ्रांसीसी बुकानन के जर्नल में लिखी गई है। इसके बावजूद आज तक पहाड़िया समुदाय के एक भी विधायक किसी भी आरक्षित सीट से विधायक या सांसद नहीं बने।
इसलिए इस बार बोरियो विधानसभा में लगभग बारह से तेरह हजार की आबादी माने जाने वाले पहाड़िया समुदाय के सिमोन मालतो को भाजपा चुनाव लड़ाकर विधानसभा भेजने पर विचार कर रही है, हालांकि अभी तक कुछ भी निश्चित नहीं है। पहाड़िया समुदाय को वापस अपने मूल धर्म में लौटाने के लिए भी भाजपा यह दांव खेल सकती है क्योंकि संथाल परगना के क्षेत्र में पहाड़िया समुदाय का एक बहुत बड़ा तबका ईसाई धर्म के प्रभाव में आया है। और ऐसे में सिमोन मालतो को विधायक बनाकर भाजपा पहाड़िया समुदाय का रहनुमा बनना चाह रही है।
हालांकि हो सकता है कि सिमोन को लिट्टीपाड़ा विधानसभा से भी टिकट देकर चुनाव लड़वाया जाए। क्योंकि भाजपा यहाँ पिछले दो बार बार से संथाल समुदाय से आने वाले नेता पर ही भाग्य आजमा रही है लेकिन सफलता हाथ नहीं लग रहा, इस विधानसभा में भाजपा ने 2014 के चुनाव में झामुमो से बगावत करने वाले कद्दावर नेता साइमन मरांडी को चुनाव लड़ाया था, लेकिन तब झामुमो से डॉ अनिल मुर्मू ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल किया था, उसके बाद 2017 में उनके डॉ अनिल मुर्मू के अचानक निधन से उपचुनाव कराया गया, तब वापस झामुमो में घर वापसी करते हुए साइमन मरांडी को टिकट दिया गया, और झामुमो से ही बगावत करने वाले बरहेट के पूर्व विधायक सह मंत्री हेमलाल मुर्मू पर भाजपा नेतृत्व ने भाग्य अजमाया लेकिन फिर असफलता हाथ लगी।
साइमन मरांडी फिर चुनाव जीत गए, और 2019 के चुनाव में अपने बेटे दिनेश विलियम मरांडी को टिकट देकर चुनाव लड़वाया और भाजपा उम्मीदवार दानिएल किस्कु को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, और इस तरह झामुमो की परंपरागत सीट उसी झामुमो ने फतह कर लिया। खास बात यह है कि इस विधानसभा क्षेत्र में पहाड़िया समुदाय जनसंख्या के दृष्टि से काफी प्रभावशाली है। लेकिन संथाल समुदाय यहाँ भी बहुलता में हैं, जबकि गैर आदिवासी समुदाय इस क्षेत्र में संख्यात्मक रूप से काफी कम है।
लिट्टीपाड़ा से झारखंड के पूर्व मंत्री रहे स्व. साइमन मरांडी के पुत्र दिनेश विलियम मरांडी फिलहाल झामुमो से विधायक हैं, ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले दिनेश विलियम मरांडी का पकड़ संथाल समुदाय और मुस्लिम समुदाय के अलावा ईसाई धर्मावलंबियों में भी काफी मजबूत है। और लिट्टीपाड़ा में पहाड़िया समुदाय के प्रभावशाली होने के बावजूद आज तक कभी विधायक नहीं बनने के पीछे का कारण भी यही बताया जाता है कि ईसाई मिशनरियों के पहाड़िया समुदाय में पकड़ होने से ईसाई धर्मावलंबी झामुमो उम्मीदवार दिनेश विलियम मरांडी को ही अपना मत देते रहे हैं, क्योंकि दिनेश खुद ईसाई धर्मावलंबी हैं।
और ऐसे में बरहेट विधानसभा से सिमोन मालतो को लिट्टीपाड़ा भेजकर दांव खेल सकती है, क्योंकि सिमोन की सौम्यता और पहाड़िया समुदाय में कई वर्षों से जागरूकता के लिए काम करना अब उनकी पहचान बन चुकी है। हालांकि कई भाजपा के नेता कहते दिख जायेंगे कि लिट्टीपाड़ा से भाजपा अपने पुराने उम्मीदवार पर ही दांव खेल सकती है।बता दे कि काँग्रेस ने 2014 के चुनाव में पहाड़िया समुदाय से आने वाले शिवचरण मालतो को अपना उम्मीदवार बनाया था, तब बारह हजार से अधिक मत लाकर शिवचरण तीसरे स्थान पर रहे थे।
ईधर दुमका सीट की बात की जाए तो यहाँ से शिबू सोरेन के छोटे बेटे और हेमंत सोरेन के भाई वसंत सोरेन विधायक हैं, जिन्होंने हेमंत सोरेन के सीट छोड़ने के बाद उपचुनाव में जीत हासिल किया था। पिछले चुनाव में हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका से एकसाथ झामुमो के टिकट पर दो सीटों से चुनाव लड़े थे, और जीते भी थे, फिर बाद में मुख्यमंत्री बनने के बाद दुमका सीट को छोड़ते हुए अपने भाई वसंत सोरेन को चुनाव लड़वाया था। इस बार भी इसी तर्ज पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है, क्योंकि हेमंत सोरेन भी खतरे को भांप चुके हैं।
इसलिए दुमका सीट से अगर हेमंत फिर से चुनाव लड़ते हैं तो इस बार डॉ लुईस मरांडी फिर से उनके खिलाफ ताल ठोकती दिख सकती है, इसके पीछे का वजह है लुईस की पकड़, हालांकि भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं के माध्यम से यह सूचना आयी थी कि पूर्व मंत्री रही डॉ लुईस मरांडी को भाजपा, बोरियो विधानसभा से चुनाव लड़वा कर बड़ा खेला कर सकती है। इसके पीछे का वजह यह बताया गया कि महिला के साथ समर्पित कार्यकर्ता, साथ ही राजमहल विधायक अनंत ओझा के साथ हर मौके पर क्षेत्र में कदम ताल करते दिखना बड़ा संकेत देता है। लेकिन भाजपा के बड़े नेताओं और आम कार्यकर्ताओं का मानना है कि लुईस मरांडी दुमका से ही चुनाव लड़ सकती है।
हालांकि उन्हें इस शर्त पर बोरियो से चुनाव लड़ने भेजा जा सकता है, कि अगर बाबूलाल मरांडी राजमहल लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं और जीतने के बाद केंद्र की नेतृत्व में नहीं जाते हैं, या फिर हारने पर, झारखंड की राजनीति में मुख्यमंत्री का दावा कर दें, तब उन्हें दुमका विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया जा सकता है या फिर विधानसभा चुनाव में दुमका के साथ धनवार विधानसभा से चुनाव लड़ें, तो डॉ लुईस मरांडी को बोरियो भेजा जा सकता है। हालांकि यह अभी सिर्फ कहावत और अनुमान है, इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है। अब राजनीति किस और करवट लेगी यह तो समय की बात है लेकिन बाबूलाल मरांडी के भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही कई बंद रास्ते खुल चुके हैं।
सबसे रोचक बात यह है कि बरहेट से हेमंत सोरेन के लिए गमालियल हेम्ब्रोम कहीं मुसीबत खड़ी ना कर दे, और संथाल परगना की राजनीति में बड़ा भुचाल ना आ जाए। सूरज सुधानंबाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में, क्या संथाल हो जायेगी फतह… बुधवार के दिन बाबूलाल मरांडी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष घोषित कर दिया गया, इसी के साथ कार्यकर्ताओं में एक खुशी का माहौल दिखने लगा है। बाबूलाल जी के साथ एक खास बात यह है कि वो झारखंड प्रदेश के अधिकतर भाजपा कार्यकर्ताओं का नाम मुँह जुबानी रखते हैं, मिलनसार हैं, और नब्ज पकड़ना जानते हैं।
लेकिन संथाल परगना के इलाके में बाबूलाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने से भाजपा कार्यकर्ताओं में अलग ही जोश और ऊर्जा देखने को मिल रहा है, इसके पीछे का कारण यह है कि भाजपा के बड़े नेता संथाल परगना के इलाके को झामुमो का गढ़ मान कर उतना ध्यान नहीं देते हैं जितना बाबूलाल मरांडी के भाजपा में आने के बाद दिया गया है। लगभग हर महीने बाबूलाल जी अपने लाव लश्करों के साथ संथाल का दौरा कर रहे हैं, जिससे 2019 के बाद लगभग निराश हो चुकी संथाल की भाजपा सेना, के पास अचानक से ऊर्जा का संचालन हो गया। बाबूलाल मरांडी की खबरों को जब आप कवर करने संथाल के इलाकों में जायेंगे तो वहाँ कार्यकर्ताओं को बाबूलाल जी डांट के साथ सम्मान भी देते दिख जायेंगे, बिल्कुल एक अभिभावक की भांति।
संथाल परगना की जब चर्चा हो रही है तो चुनावी हार जीत की बात होनी चाहिये, 2024 के चुनाव में भाजपा प्रदेश में हारे या जीते यह तो भविष्य के गर्त में है, क्योंकि संथाल परगना को छोड़कर बाकी चारो प्रमंडल में एक तीसरा धड़ा जयराम महतो के नेतृत्व में खड़ा हो चुका है। इसलिए परिणाम किसके पक्ष में होगा यह तय करना बेहद मुश्किल है। लेकिन संथाल परगना के राजनीति को आसानी से निष्कर्ष तक पहुँचाया जा सकता है। संथाल परगना की बेहद खास सीट है बरहेट, दुमका, बोरियो और लिट्टीपाड़ा इसके अलावा बाकी सीटों पर भाजपा और झामुमो की टक्कर हो सकती है। संथाल में अभी तक तीसरा धड़ा ताल ठोकते नहीं दिख रहा है, वजह है कि जयराम महतो की पकड़ गोड्डा को छोड़कर संथाल परगना में उतनी अच्छी नहीं है। हालांकि तीसरा धड़ा लोबिन हेम्ब्रोम के तरफ से भविष्य में खड़ा किया जा सकता है।
बरहेट विधानसभा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का चुनावी क्षेत्र है, पिछले दो बार से हेमंत यहाँ से झामुमो पार्टी से चुनाव जीत रहे हैं लेकिन बाबूलाल मरांडी के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही यह सीट सवाल के घेरे में खड़ी दिख रही है। वजह है बरहेट विधानसभा क्षेत्र में बाबूलाल हेम्ब्रोम की मजबूत पकड़, और संथाल बहुल बरहेट, बोरियो में संथाल मतदाताओं के बीच बाबूलाल की गहरी लोकप्रियता और हेमंत सोरेन की गिरती पहचान। बरहेट की जब बात करते हैं तो बाबूलाल मरांडी के पास यहाँ तुरुप के पत्ते के रूप में गमालियल हेम्ब्रोम जैसे मजबूत नेतृत्वकर्ता है। जिसे बाबूलाल काफी पसंद करते हैं, और अब जब बाबूलाल प्रदेश अध्यक्ष बने हैं तो हो सकता है, गमालियल हेम्ब्रोम को मुख्यमन्त्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव लड़ाया जाए।
क्योंकि बरहेट भाजपा के पास अब तक रेणुका मुर्मू और सिमोन मालतो जैसे स्थानीय स्तर के नेता ही थे, जिनकी पकड़ तो गैर संथाल समुदाय में अच्छी थी लेकिन संथाल बहुल इलाके में संथाल समुदाय के मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ नहीं थी। सिमोन मालतो 2019 के चुनाव में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ चुनाव भाजपा से मैदान में थे 25 हजार से अधिक मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन गमालियल हेम्ब्रोम जैसा एक मजबूत विकल्प अब बरहेट भाजपा के पास दिख रहा है ऊपर से बाबूलाल मरांडी का हाथ।
सबसे खास बात यह है कि आजसु के टिकट पर गमालियल हेम्ब्रोम 2019 के चुनाव में भाग्य आजमा चुके हैं हालाँकि तब गमालियल की लोकप्रियता इतनी नहीं थी, और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। गमालियल हेम्ब्रोम के पहचान की बात करें तो संथाल समुदाय से संबंध रखते हैं, और जयहिंद क्लब के अध्यक्ष हैं। संथाल युवाओं में गमालियल हेम्ब्रोम की काफी पकड़ है संथाल समुदाय के युवा पीढ़ी उन्हें काफी पसंद करते हैं, साथ ही गैर संथाल समुदायों में भी इनकी अच्छी खासी लोकप्रियता है।
गमालियल बरहेट के एक प्रसिद्ध फुटबॉल क्लब के संस्थापक सह अध्यक्ष हैं, जयहिंद क्लब पेटखासा में हर वर्ष विदेशों से फुटबॉल लीग खेलने के लिए खिलाडी आते हैं काफी भीड़ होती है गोड्डा साहिबगंज पाकुड़ दुमका के दर्शकों की भीड़ देखकर लोगों को पसीने आ जाते हैं, खास बात यह है कि महिलाओं का भी मैच इस लीग में आयोजित होता है जिसे देखने के लिए लाखों में महिलाएं भी आती है खासकर आदिवासी महिलाएं। कई सांस्कृतिक कार्यक्रम करवाये जाते हैं और यह सब सफल होता है गमालियल हेम्ब्रोम के नेतृत्व में। जिस कारण संथाल परगना के चार पाँच जिलों के लोग गमालियल हेम्ब्रोम को निजी तौर पर जानते हैं खासकर संथाल युवाओं चाहे पुरुष हो या महिलाएं इनका अलग ही लोकप्रियता है।
इसके साथ गमालियल हाल के वर्षों में सामाजिक कार्यक्रमों में भी रुचि लेते दिखते हैं, जिस कारण बरहेट के हरेक गाँवो में इनकी अपनी पहचान है। हेमंत सोरेन और गमालियल हेम्ब्रोम का तुलना किया जाए, तो फिलहाल गमालियल ज्यादा प्रभावशाली दिखते हैं। क्योंकि भले ही हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हो लेकिन उनसे लोग नाराज हैं, क्योंकि जिन मुद्दों को लेकर झामुमो गठबंधन सरकार में आयी थी, उन मुद्दों पर काम नहीं किया गया। दूसरी बात है की हेमंत सोरेन बरहेट विधानसभा से भले ही चुनाव जीत रहे हैं लेकिन वो रामगढ़ जिला के नेमरा गाँव से संबंध रखते हैं। जबकि गमालियल बरहेट विधानसभा के ही मूल निवासी हैं ऊपर से क्षेत्र में अच्छी पकड़। तीसरी सबसे अहम विषय है युवाओं में गमालियल की अच्छी पहचान और जमीनी जुड़ाव, जबकि हेमंत सोरेन अपने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही रहते हैं।
चौथी क्रांतिकारी सिध्दू कान्हु के वंशज मंडल मुर्मू का गमालियल के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलना, और बाबूलाल मरांडी का आशीर्वाद। पांचवी बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रोम का मुख्यमंत्री हेमंत के खिलाफ ही पत्ता खोल कर हंगामा करना, जिस कारण विकल्प की तलाश में बरहेट विधानसभा के लोग गमालियल हेम्ब्रोम के साथ जा सकते हैं। हालांकि अब तक कोई भी औपचारिक घोषणा नहीं है लेकिन बाबूलाल के साथ गमालियल हेम्ब्रोम के नजदीकी रिश्ते और लोकप्रियता, विकल्प बना सकती है। बोरियो विधानसभा की बात करें तो लोबिन हेम्ब्रोम की अपनी पकड़ और लोकप्रियता है, यहाँ से बाबूलाल मरांडी लोबिन हेम्ब्रोम या उसके बेटे अजय हेम्ब्रोम को भी पार्टी में शामिल कराकर चुनाव लड़ा सकते हैं।
हालांकि अब तक लोबिन हेम्ब्रोम झामुमो के ही विधायक हैं लेकिन बोरियो विधानसभा में झामुमो पार्टी के कार्यकर्ताओं के अंदर दो फाड़ साफ दिखती है। वैसे भाजपा के पास बोरियो विधानसभा में सलखु सोरेन, पूर्व विधायक ताला मरांडी, सुर्य नारायण हाँसदा, बरहेट से लाकर रेणुका मुर्मू, सिमोन मालतो या फिर दुमका से लाकर पूर्व मंत्री लुईस मरांडी पर दांव खेल सकती है, यह भाजपा की अंदरूनी मामला है। सलखु सोरेन पर दांव खेलने के पीछे का कारण यह है कि जब बोरियो विधानसभा में भाजपा बिल्कुल हासिये पर चली गयी थी तब भी सलखु सोरेन तन मन धन से अपने गिने चुने 5-10 कार्यकर्ताओं के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ने में लगे थे और पार्टी को क्षेत्र में मजबूत कर रहे थे, फ़िल्हाल वो भाजपा अनुसूचित मोर्चा के जिला अध्यक्ष हैं।
ताला मरांडी के बारे में कहा जाता है कि उनकी छवि तो साफ है, लेकिन वो चुनाव जीतने के बाद काम नहीं करते, वो बोरियो विधानसभा से दो बार भाजपा से विधायक रह चुके हैं। इनके साथ यह भी है कि रघुवर सरकार में विधायक रहते इन्होंने कुछ नीतियों का विरोध कर दिया था जिस कारण गैर आदिवासी वोटर इनसे नाराज दिखते हैं। सुर्य नारायण हाँसदा के बारे में कहा जाता है इनकी छवि क्षेत्र में साफ नहीं है लोग इन्हें समर्थन देने से सिर्फ इसलिए डरते हैं क्योंकि इनका पिछला इतिहास आपराधिक मामलों से जुड़ा हुआ है हालांकि सूर्या हाँसदा की भी पकड़ संथाल युवाओं के बीच काफी मजबूत है।
हो सकता है बाबूलाल मरांडी और भाजपा नेतृत्व दोबारा इन पर दांव चलाये, क्योंकि पिछली बार जब इन्हें भाजपा से टिकट दिया गया था, तो मोदी लहर के बावजूद क्षेत्र में इन्हें लोबिन हेम्ब्रोम से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन क्षेत्र में युवाओं के बीच अच्छी पकड़ होने के कारण भाजपा नेतृत्व इस पर दांव खेल सकते हैं। रेणुका मुर्मू भाजपा की महिला नेत्री हैं जिला परिषद अध्यक्ष भी रह चुकी हैं इनके पति अंजीत भगत गैर आदिवासी हैं और बरहेट विधानसभा और बाजार में सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अंजीत भगत और रेणुका मुर्मू की अच्छी पकड़ है।
लेकिन बरहेट से इन्हें कभी भाजपा ने चुनाव का टिकट दिया ही नहीं और इस बार भी बहुत ही कम उम्मीद दिख रहा है क्योंकि भाजपा के पदाधिकारी नाम ना बताने के शर्त पर बताते हैं कि रेणुका मुर्मू आदिवासी संथाल समुदाय से जरूर आती हैं लेकिन संथाल समुदाय में नेता के रूप में पकड़ मजबूत नहीं है, भले ही सामाजिक कार्यकर्ता क्यों ना हो। और बोरियो से रेणुका मुर्मू के टिकट मिलने की बात पर भाजपा के कुछ बड़े नेता बताते हैं कि इस विधानसभा से आज तक कोई भी महिला, विधायक नहीं चुनी गई है। इसलिए साफ छवि होने के कारण भाग्य आजमाया जा सकता है।
सिमोन मालतो के बारे में कहा जाता है कि बरहेट सीट से उन पर भाजपा भाग्य अजमा चूकी है, लेकिन वो जीत नहीं पाए, इसके पीछे की वजह यह है कि सिमोन मालतो, विलुप्त हो रही पहाड़िया समुदाय (प्रिमिटिव ट्राईब) से ताल्लुक रखते हैं, जिनकी आबादी बरहेट विधानसभा में भले ही ठीक ठाक हो लेकिन बहुत प्रभावशाली नहीं है। दूसरी बात यह है कि आदिम जनजाति से संबंध रखने के कारण संथाल समुदाय के मतदाता वोट देने से परहेज करते हैं। जबकि भाजपा के कोर वोटर यानी कि गैर आदिवासी हिंदू समुदाय खुलकर पिछले चुनावों में सिमोन मालतो के पक्ष में खड़े दिखे थे।
बोरियो से इन्हें चुनाव लड़ाने के पीछे यह जानकारी हाथ लगा कि चर्चित रेबिका पहाड़ीन हत्याकांड के समय सिमोन मालतो ने प्रदेश नेतृत्व से आई भाजपा टीम को काफी सहयोग किया था, क्योंकि रेबिका भी सिमोन मालतो के समुदाय से ही संबंध रखती थी, दूसरी बात है कि सिमोन का लोगों के बीच अच्छा छवि का होना और विकल्प होना। मतलब भाजपा के कोर वोटबैंक के एक बड़े हिस्से का मानना है कि क्षेत्र से भाजपा के गैर संथाल को टिकट दिया जाना चाहिए, क्योंकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट होने के नाते इस सीट पर आज तक संथाल समुदाय से संबंध रखने वाले नेता ही विधायक बनते रहे हैं, जबकि आदिवासी समुदाय में संथाल के अलावा कई जनजातियाँ इस क्षेत्र में निवास करती रही है।
जिनमें, पहाड़िया, उरांव और लोहरा समुदाय के लोग खास तौर पर हैं, लेकिन इनकी आबादी संथाल परगना के क्षेत्र में कम होने की वजह से अनुसूचित जनजाति की सीटों पर हमेशा से संथाल समुदाय के ही लोग विधायक बनते रहे हैं। पहाड़िया समुदाय के बारे में बात किया जाए तो दामिन ए कोह के तर्ज पर इतिहास में राजमहल की पहाड़ियों का मूल वासी इन्हें ही माना गया है, ये बातें फ्रांसीसी बुकानन के जर्नल में लिखी गई है। इसके बावजूद आज तक पहाड़िया समुदाय के एक भी विधायक किसी भी आरक्षित सीट से विधायक या सांसद नहीं बने। इसलिए इस बार बोरियो विधानसभा में लगभग बारह से तेरह हजार की आबादी माने जाने वाले पहाड़िया समुदाय के सिमोन मालतो को भाजपा चुनाव लड़ाकर विधानसभा भेजने पर विचार कर रही है, हालांकि अभी तक कुछ भी निश्चित नहीं है।
पहाड़िया समुदाय को वापस अपने मूल धर्म में लौटाने के लिए भी भाजपा यह दांव खेल सकती है क्योंकि संथाल परगना के क्षेत्र में पहाड़िया समुदाय का एक बहुत बड़ा तबका ईसाई धर्म के प्रभाव में आया है। और ऐसे में सिमोन मालतो को विधायक बनाकर भाजपा पहाड़िया समुदाय का रहनुमा बनना चाह रही है। हालांकि हो सकता है कि सिमोन को लिट्टीपाड़ा विधानसभा से भी टिकट देकर चुनाव लड़वाया जाए। क्योंकि भाजपा यहाँ पिछले दो बार बार से संथाल समुदाय से आने वाले नेता पर ही भाग्य आजमा रही है लेकिन सफलता हाथ नहीं लग रहा, इस विधानसभा में भाजपा ने 2014 के चुनाव में झामुमो से बगावत करने वाले कद्दावर नेता साइमन मरांडी को चुनाव लड़ाया था, लेकिन तब झामुमो से डॉ अनिल मुर्मू ने रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल किया था, उसके बाद 2017 में उनके डॉ अनिल मुर्मू के अचानक निधन से उपचुनाव कराया गया, तब वापस झामुमो में घर वापसी करते हुए साइमन मरांडी को टिकट दिया गया, और झामुमो से ही बगावत करने वाले बरहेट के पूर्व विधायक सह मंत्री हेमलाल मुर्मू पर भाजपा नेतृत्व ने भाग्य अजमाया लेकिन फिर असफलता हाथ लगी।
साइमन मरांडी फिर चुनाव जीत गए, और 2019 के चुनाव में अपने बेटे दिनेश विलियम मरांडी को टिकट देकर चुनाव लड़वाया और भाजपा उम्मीदवार दानिएल किस्कु को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, और इस तरह झामुमो की परंपरागत सीट उसी झामुमो ने फतह कर लिया। खास बात यह है कि इस विधानसभा क्षेत्र में पहाड़िया समुदाय जनसंख्या के दृष्टि से काफी प्रभावशाली है। लेकिन संथाल समुदाय यहाँ भी बहुलता में हैं, जबकि गैर आदिवासी समुदाय इस क्षेत्र में संख्यात्मक रूप से काफी कम है। लिट्टीपाड़ा से झारखंड के पूर्व मंत्री रहे स्व. साइमन मरांडी के पुत्र दिनेश विलियम मरांडी फिलहाल झामुमो से विधायक हैं, ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले दिनेश विलियम मरांडी का पकड़ संथाल समुदाय और मुस्लिम समुदाय के अलावा ईसाई धर्मावलंबियों में भी काफी मजबूत है।
और लिट्टीपाड़ा में पहाड़िया समुदाय के प्रभावशाली होने के बावजूद आज तक कभी विधायक नहीं बनने के पीछे का कारण भी यही बताया जाता है कि ईसाई मिशनरियों के पहाड़िया समुदाय में पकड़ होने से ईसाई धर्मावलंबी झामुमो उम्मीदवार दिनेश विलियम मरांडी को ही अपना मत देते रहे हैं, क्योंकि दिनेश खुद ईसाई धर्मावलंबी हैं। और ऐसे में बरहेट विधानसभा से सिमोन मालतो को लिट्टीपाड़ा भेजकर दांव खेल सकती है, क्योंकि सिमोन की सौम्यता और पहाड़िया समुदाय में कई वर्षों से जागरूकता के लिए काम करना अब उनकी पहचान बन चुकी है। हालांकि कई भाजपा के नेता कहते दिख जायेंगे कि लिट्टीपाड़ा से भाजपा अपने पुराने उम्मीदवार पर ही दांव खेल सकती है।
बता दे कि काँग्रेस ने 2014 के चुनाव में पहाड़िया समुदाय से आने वाले शिवचरण मालतो को अपना उम्मीदवार बनाया था, तब बारह हजार से अधिक मत लाकर शिवचरण तीसरे स्थान पर रहे थे। ईधर दुमका सीट की बात की जाए तो यहाँ से शिबू सोरेन के छोटे बेटे और हेमंत सोरेन के भाई वसंत सोरेन विधायक हैं, जिन्होंने हेमंत सोरेन के सीट छोड़ने के बाद उपचुनाव में जीत हासिल किया था। पिछले चुनाव में हेमंत सोरेन बरहेट और दुमका से एकसाथ झामुमो के टिकट पर दो सीटों से चुनाव लड़े थे, और जीते भी थे, फिर बाद में मुख्यमंत्री बनने के बाद दुमका सीट को छोड़ते हुए अपने भाई वसंत सोरेन को चुनाव लड़वाया था।
इस बार भी इसी तर्ज पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है, क्योंकि हेमंत सोरेन भी खतरे को भांप चुके हैं। इसलिए दुमका सीट से अगर हेमंत फिर से चुनाव लड़ते हैं तो इस बार डॉ लुईस मरांडी फिर से उनके खिलाफ ताल ठोकती दिख सकती है, इसके पीछे का वजह है लुईस की पकड़, हालांकि भाजपा के बड़े आदिवासी नेताओं के माध्यम से यह सूचना आयी थी कि पूर्व मंत्री रही डॉ लुईस मरांडी को भाजपा, बोरियो विधानसभा से चुनाव लड़वा कर बड़ा खेला कर सकती है। इसके पीछे का वजह यह बताया गया कि महिला के साथ समर्पित कार्यकर्ता, साथ ही राजमहल विधायक अनंत ओझा के साथ हर मौके पर क्षेत्र में कदम ताल करते दिखना बड़ा संकेत देता है।
लेकिन भाजपा के बड़े नेताओं और आम कार्यकर्ताओं का मानना है कि लुईस मरांडी दुमका से ही चुनाव लड़ सकती है। हालांकि उन्हें इस शर्त पर बोरियो से चुनाव लड़ने भेजा जा सकता है, कि अगर बाबूलाल मरांडी राजमहल लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं और जीतने के बाद केंद्र की नेतृत्व में नहीं जाते हैं, या फिर हारने पर, झारखंड की राजनीति में मुख्यमंत्री का दावा कर दें, तब उन्हें दुमका विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया जा सकता है या फिर विधानसभा चुनाव में दुमका के साथ धनवार विधानसभा से चुनाव लड़ें, तो डॉ लुईस मरांडी को बोरियो भेजा जा सकता है।
हालांकि यह अभी सिर्फ कहावत और अनुमान है, इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है। अब राजनीति किस और करवट लेगी यह तो समय की बात है लेकिन बाबूलाल मरांडी के भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ ही कई बंद रास्ते खुल चुके हैं। सबसे रोचक बात यह है कि बरहेट से हेमंत सोरेन के लिए गमालियल हेम्ब्रोम कहीं मुसीबत खड़ी ना कर दे, और संथाल परगना की राजनीति में बड़ा भुचाल ना आ जाए।
पत्रकार – सूरज सुधानंद