L19 DESK : “द केरल स्टोरी” तो देख ही लिया होगा आपने, इसे लेकर कुछ आंकड़ों पर बहस चल रही है कि आंकड़े गलत बताये गये हैं, या फिर इसे धार्मिक प्रोपगैंडा करार दिया जा रहा है। अब इसका फैसला तो हम नहीं कर सकते, मगर इतना ज़रूर है कि मानव तस्करी भारत के लिये एक बेहद अहम मुद्दा है। NCRB की 2021 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में कोरोना के बाद मानव तस्करी के मामलों में 27.7 फीसदी की दर से तेजी आयी है।
हर साल झारखंड में 25-30 हजार मानव तस्करी के आते हैं मामले
अब अगर झारखंड की बात करें तो आपने हाल ही में यह खबर देखी या सुनी होगी कि कुछ दिन पहले ही राज्य की 11 पहाड़िया नाबालिग लड़कियों को बेंगलुरु से रेस्कयू कर वापस अपने राज्य लाया गया था। इन बच्चियों की उम्र मात्र 14-17 साल के बीच ही थी। अब आपको राज्य के सालाना आंकड़ों की तरफ लेकर चलते हैं। मानव तस्करी पर काम करने वाली गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, राज्य से हर साल 25 से 30 हजार युवक युवतियों की तस्करी होती है। हालांकि कम ही मामले थानों में पहुंचते हैं।
इसी साल डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान यानि TRI के शोध में पाया गया कि मानव तस्करी का शिकार होने वाली बच्चियों में से 90 फीसदी आदिवासी और बाकि 10 फीसदी दलित समुदाय से हैं। इन आदिवासी बच्चियों में भी अधिकांश उरांव और मुंडा जनजातीय समुदायों से ही होती हैं। इन्हें ज्यादातर दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और इसके अलावा बंगाल, ओडिशा, बिहार या असम ले जाया जाता हैं। प्लेसमेंट एजेंसियों के जरिए हरियाणा और पंजाब में इन्हें जबरन शादी के लिये बेचा जाता है तो वहीं बाकि राज्यों में घरेलु काम के लिये इनकी तस्करी की जाती है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के कालीन उद्योग के लिये पलामू और गढ़वा से 11 हजार बच्चों की तस्करी हुई है।
धनबाद में महिलायें ही क्यों सौंप देती हैं खुद को मानव तस्करों के हवाले?
राज्य में खनन संपदाओं का भरमार है। और इन्हें संभालने वाले बाहरी ही हैं। ऐसा ही कुछ धनबाद के कोयला कारोबार के साथ भी है जो मानव तस्करी का एक मुख्य कारण बनकर उभरता नजर आता है। शोध के अनुसार, धनबाद में कोयला उठाने का काम करने वाले मुख्य रूप से यूपी और बिहार से हैं। इसके वजह से स्थानीय महिलायें रोजगार से वंचित हो जाती हैं। और तो और अवैध कोयला कारोबारी स्थानीय महिलाओं को वेश्यावृत्ति में धकेलते हैं। इससे बचने के लिये ये महिलायें खुद को मानव तस्करों को सौंप देती हैं। तस्करी की गयी लगभग सभी महिलाएं विभिन्न प्रकार के मौखिक, शारीरिक व यौन शोषण के दुर्व्यवहारों का शिकार होती हैं।
कई रिपोर्ट यह भी दर्शाते हैं कि मानव तस्करी में धकेलने वाले अक्सर पीड़ितों के रिश्तेदार, पड़ोसी या कोई परिचित ही होते हैं। इन तस्करों में भी ज्यादातर महिलायें होती हैं जो पीड़ितों को बेहतर नौकरी के विकल्प, उच्च शिक्षा या फिर शादी के लिये आसानी से बहला फुसला लेती हैं।
15 सालों में 5 हजार लड़कियों की मानव तस्करी कर कमाया करीब 5 करोड़
मानव तस्करी के मामले में ईडी ने साल 2022 में पन्ना लाल महतो और उसके सहभागियों को गिरफ्तार किया था। पन्ना लाल ने खुद स्वीकारा कि अपने सहभागियों के साथ मिलकर उसने करीब 15 सालों में 5 हजार से अधिक लड़कियों की तस्करी करके साढ़े चार से 5 करोड़ तक की संपत्ति अर्जित की हैं। अगर एक तस्कर और उनके साथियों के कारण मानव तस्करी का आंकड़ा इतना पहुंच जाता है, तो आप अंदाजा लगा ही सकते हैं कि ऐसा करने वाले कितने सारे लोग होंगे और इन सब के कारण आंकड़ा कहां तक चला जाता होगा।
तस्करी को रोकने के लिये सरकार ने क्या कदम उठाये?
राज्य में मानव तस्करी को रोकने के लिये कुछ आवश्यक कदम भी उठाये गये। साल 2018 में Anti-Human Trafficking Unit (AHTU), साल 2019 में सशक्तिकरण केंद्र की स्थापना की गयी थी। इसके बाद साल 2020 में झारखंड पुलिस की ओर से पुलिसकर्मियों को विशेष प्रशिक्षण और जागरुकता प्रदान करने और साल 2022 में झारखंड सरकार की ओर से स्थानीय संगठनों और गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर काम करने की शुरुआत हुई। हालांकि, आये दिन राज्य में ऐसे मामले आते रहते हैं।
क्या है झारखंड में तस्करी के पीछे की वजह?
अब मानव तस्करी की वजहों की बात करें तो अलग अलग रिपोर्टों का एक निष्कर्ष निकाल कर देख सकते हैं कि गरीबी, नक्सली संकट, खनन क्षेत्रों में विस्थापन, नशापान, परिजनों का समय से पहले ही गुजर जाना, अविकासशीलता, सीधापन, निरक्षरता, कृषि के लिये खराब सींचाई, एकल फसल पैटर्न, राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ स्थायी रोजगार, जागरुकता, उच्च शिक्षा और बेहतर विकल्पों की कमी तस्करी के लिये जिम्मेदार हैं। अगर इन सब पहलुओं पर सरकार कदम उठायेगी तो शायद मानव तस्करी में कमी लायी जा सकती है। और यहां के स्थानीयों की जिंदगी बेहतर बनायी जा सकती है।