क्या लोबिन हेंब्रम को कमल थमाकर बीजेपी ने बड़ा राजनीतिक दांव खेला है ? क्या जेएमएम को बोरियो विधानसभा में बड़ा झटका लगने वाला है, या फिर भगवा ओढ़कर लोबिन हेंब्रम ने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है ? दरअसल, झारखंड मुक्ति मोर्चा के कद्दावर नेता और बोरियो से पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम के भाजपा में शामिल होते ही ये सवाल अब सबके मन में उमड़ने शुरु हो चुके हैं। पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के झामुमो से बगावत कर भाजपा में शामिल होने के ठीक एक दिन के बाद लोबिन हेंब्रम भी इसी रास्ते पर चल पड़े। ये कदम उन्हें मजबूरी में उठाना पड़ गया क्योंकि हाल के समय में विधानसभा स्पीकर के फैसले के बाद उनकी विधायिकी रद्द कर दी गयी, इसके साथ ही जेएमएम ने उन्हें 6 सालों के लिये पार्टी से सस्पेंड भी कर दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जेएमएम और हेमंत सोरेन से अक्सर नाराज होकर इसके खिलाफत में मोर्चा खोलने वाले लोबिन हेंब्रम को इस बार पार्टी साइडलाइन करना चाहती थी, इसी वजह से उनपर कड़ा एक्शन लिया गया। तो अब जब लोबिन हेंब्रम ने भाजपा ज्वाइन कर लिया है, तो क्या पहली बार वह बोरियो में कमल खिलाने वाले हैं ? इस बार बोरियो का राजनीतक समीकरण क्या होगा, जेएमएम की ओर से कौन हैं दावेदार ? ये सब जानेंगे आज के अपने सेग्मेंट रिपोर्ट कार्ड में, साथ ही बोरियो के स्थानीय मुद्दों, समस्याओं, पर भी नजर डालेंगे।
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लोबिन हेंब्रम के बारे में बात करें तो वह बोरियो विधानसभा क्षेत्र में अब तक 5 बार जीत हासिल कर चुके हैं। पहली बार साल 1990 में, फिर 2000, 2009 और आखिर बार 2019 में उन्होंने झामुमो की टिकट पर फतेह हासिल किया था। हालांकि, 1995 में जब जेएमएम ने उनका टिकट काटकर किसी दूसरे प्रत्याशी को दे दिया था, तब वह निर्दलीय ही चुनाव में कूद पड़े थे, इसके बावजूद उन्होंने सीट पर कब्जा जमाया। क्षेत्र में उनकी छवि एक बेदाग और जमीनी नेता के तौर पर है, जो हर सुख दुख में अपनी जनता के साथ खड़े रहते हैं। एक आम आदमी भी उन तक अपनी पहुंच बना सकता है। क्षेत्र के लोग बताते हैं कि लोबिन हेंब्रम अपने इलाके के वैद्य भी हैं, जो रोजाना शिविर लगाकर लोगों के छोटे बड़े बीमारियों का अपनी जड़ी बूटी के जरिये इलाज करते हैं, वह भी मुफ्त में। जल जंगल जमीन की राजनीति करने वाले लोबिन हेंब्रम के क्षेत्र में विकास का स्तर भी ठीक ठाक है, इलाके को बहुत पिछड़ा नहीं माना जा सकता, क्योंकि यहां पर लोगों की मूलभूत सुविधायें मिल जाती हैं। पिछले दिनों 41 करोड़ की लागत से सड़क का भी निर्माण हुआ है, हां ये जरूर है कि यहां पर बड़े स्तर पर अब तक कोई कॉलेज, मेडिकल इंस्टीट्यूट का निर्माण नहीं हुआ। बोरियो में पलायन एक गंभीर समस्या है, जो दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कोयला, पत्थर, बालू जैसे खनिज संपदाओं से भरपूर इस इलाके में अवैध खनन भी तेजी से बढ़ा है, इसके रोकथाम के लिये भी कोई पहल नहीं हुई। वहीं, अगर यहां पर वैध तरीके से खदानों का निर्माण होता, तो बहुत संभव है कि रोजगार के लिये युवाओं को दूसरे जगहों पर निर्भर नहीं होना पड़ता। वहीं, पहाड़िया जनजाति के लोगों की भी स्थिति गंभीर है, हालांकि, ये समस्या पूरे संथाल परगना की है। कहीं भी पहाड़िया जनजाति के लिये कोई खास पहल नहीं हुई, आज भी वे मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं, और हाशिये पर खड़े हैं। हालांकि, इसके बावजूद लोबिन हेंब्रम की साफ छवि के कारण लोग उनपर भरोसा करते हैं। एक वजह ये भी है कि वह केवल जल जंगल जमीन की राजनीति ही नहीं करते, बल्कि इसके संरक्षण के लिये लड़ाई भी लड़ते रहे हैं। स्थानीय पत्रकार बतातें हैं कि उन्होंने क्षेत्र में कई बार जमीन अधिग्रहण को रोककर अपने आदिवासियत का परिचय दिया है। लोबिन हेंब्रम की पैठ केवल क्षेत्र के आदिवासी और मुस्लिम जनता के बीच ही नहीं, बल्कि हिंदू वोटरों के बीच भी अच्छी है। इन तीनों के मिले जुले सहयोग से ही वह क्षेत्र में 5 बार तक चुनाव जीतते रहे हैं। बोरियो विधानसभा के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर संथाल आदिवासियों की जनसंख्या तकरीबन 45 फीसदी, पहाड़िया समुदाय की आबादी 5-6 फीसदी, मुसलमानों की आबादी 20-25 प्रतिशत है। इस वजह से बोरियो में संथाली और मुसलमान वोटर्स निर्णायक भूमिका में होते हैं। ये वोटर्स ही जेएमएम के कोर वोट बैंक माने जाते हैं। तो अब जब लोबिन हेंब्रम तीर कमान छोड़कर कमल थाम चुके हैं, तो क्या इसका दुष्प्रभाव उन्हें झेलना होगा, क्या आदिवासी औऱ अल्पसंख्यक समाज के लोग उनपर भरोसा जता पायेंगे, ये बड़ा सवाल है। इसके लिये हमें यहां के राजनीतिक समीकरण पर गौर करना जरूरी है। जानकार बताते हैं कि बोरियो विधानसभा में हमेशा से जेएमएम का प्रभाव रहा है। लेकिन भाजपा को भी यहां से जीत मिलती रही है। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से यहां पर जेएमएम और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलता रहा है। तब से अब तक जेएमएम यहां पर तीन बार और भाजपा दो बार अपना झंडा गाड़ चुकी है। हालांकि, भाजपा ने ज्यादा से ज्यादा 9 हजार वोटों के अंतर से यहां पर जीत दर्ज की, 2014 में तो यह आंकड़ा 712 तक ही सीमट कर रह गया था, जबकि, लोबिन हेंब्रम के जरिये जेएमएम ने 2019 के चुनाव में 17 हजार से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल करके सबको चौंका दिया था। इस वजह से इस बार भी मुकाबला टक्कर का होने की संभावना है, लोबिन हेंब्रम को भाजपा में शामिल कराकर पार्टी को चुनाव में बहुत हद तक फायदा होना तो लाजिमी है, कोल्हान के साथ साथ अब भाजपा संथाल परगना में भी सेंधमारी करने के लिये तैयार है। लेकिन कुछ हद तक नुकसान होने की भी संभावना है। जो लोबिन हेंब्रम के चेहरे पर वोट देते आये हैं, वे तो उनके साथ ही जायेंगे, लेकिन जो शिबू सोरेन और तीर कमान को देखकर लोबिन हेंब्रम को वोट करते रहे हैं, वे उनसे जुदा हो सकते हैं, वहीं, बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा उठाने के कारण अल्पसंख्यक समुदाय जो निर्णायक भूमिका में होते हैं, वे भी लोबिन हेंब्रम से दूरी बना सकते हैं, ऐसे भी अल्पसंख्यक समुदाय हमेशा से भाजपा के विरोध में वोट करते रहे हैं। इसके अलावा, नुकसान अपनों से भी हो सकता है। जब तक लोबिन हेंब्रम जेएमएम में थे, उस समय तक ताला मरांडी, सूर्य नारायण हांसदा जैसे नेता बोरियो सीट को लेकर भाजपा में अपनी दावेदारी कर रहे थे, लेकिन लोबिन हेंब्रम के आने से उनकी दावेदारी पर पानी फिर जायेगा। ऐसे में भाजपा के अंदर अंतर्कलह की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, और यह चुनाव के दौरान भीतरघात का कारण बन सकता है। इन वजहों से लोबिन हेंब्रम को भाजपा में जाने का खामियाजा उठाना पड़ सकता है, और इसका फायदा जेएमएम को हो सकता है।
वहीं, दूसरी तरफ जेएमएम की ओऱ से इस बार दो लोगों की दावेदारी मजबूत है। एक तो हेमलाल मुर्मू हैं, और दूसरे स्टीफन मुर्मू। हेमलाल मुर्मू को लेकर चर्चा तेज है, वह पार्टी के सीनियर नेता भी हैं, हालांकि पार्टी से बगावत करने के लिये भी उन्हें जाना जाता है। स्थानीय जानकारों की मानें, तो क्षेत्र में हेमलाल मुर्मू की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है, क्योंकि वह बरहेट विधानसभा से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में हेमलाल औऱ लोबिन के बीच तुलना करने पर लोबिन का पलड़ा भारी नजर आता है। जनता भी स्थानीय नेताओं पर ही भरोसा अफजायी करती है। वहीं, जेएमएम हेमलाल मुर्मू के विकल्प में स्टीफन मुर्मू को अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है। ऐसा इसलिये क्योंकि युवा नेता स्टीफन मुर्मू की युवाओं की बीच पकड़ मजबूत है, औऱ केवल युवा ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में भी उनकी पैठ मजबूत मानी जाती है। वह फिलहाल जेएमएम के प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं, साथ ही बाघीसंथाली के मुखिया भी रह चुके हैं। जानकार बताते हैं कि अगर स्टीफन मुर्मू की भिड़ंत लोबिन हेंब्रम से होती है, तो बहुत संभव है कि दोनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
लोबिन हेंब्रम के बीजेपी जाने से कितना होगा फायदा?
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