L19 DESK : सबसे पहले अलग झारखंड राज्य का सपना देखने वाले ‘मरंग गोमके’ जयपाल सिंह मुंडा का जन्म आज ही के दिन 3 जनवरी, 1903 को झारखंड राज्य के खूंटी जिला के टकरा हातू में एक मुंडा परिवार में हुआ था. मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के 122वें जन्मदिन के मौके पर आज हम हमारे चैनल के माध्यम से उनके बारे में विस्तार से बात करेंगे.
अलग झारखंड राज्य का सपना देखने वाले जयपाल सिंह मुंडा न सिर्फ झारखण्ड बल्कि समस्त भारत के आदिवासियों के बड़े नेता थे. जयपाल सिंह मुंडा का जन्म रांची से सटे खूंटी जिले के एक छोटे से गाँव टकरा में हुआ था. और उनका पालन-पोषण एक पारंपरिक मुंडा आदिवासी परिवार में हुआ था, जहाँ परंपराओं और संस्कृति का विशेष महत्व था. वहीँ उनका साकी नाम विनोद पाहन था जानकारी के लिए बता आदिवासी रीतिरिवाजों में साकी नाम भी एक आदिवासी परम्परा है जिसमें घर के बड़े- बुजर्गों यानि दादा-दादी का नाम बच्चे को दिया जाता है और इसे मुंडा में साकी नुतुम भी कहा जाता है, वहीँ शिक्षा के प्रति मरंग गोमके की रुचि बचपन से ही थी, और इसके लिए उन्होंने अपनी शिक्षा स्थानीय स्कूल से शुरू की थी, बाद में उन्होंने रांची के एक स्कूल से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की.
फ़िलहाल, जानकारी के लिए बता दें मरांग गोमके एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का किताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे. उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता था.
उन्होंने आदिवासियों को अधिकार दिलाने के लिए सड़क से लेकर संसद तक संघर्ष करने के साथ-साथ संविधान सभा में भी आदिवासियों के अधिकारों का आवाज बुलंद की थी. और यही नहीं मरंग गोमके अलग झारखंड राज्य के लिए हर वह कुर्बानी देने के लिए तैयार थे. इसके लिए उन्होंने बिना किसी स्वार्थ के संयुक्त बिहार के उप-मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा तक दे दिया था.
दरअसल, सन 1962 के चुनाव के बाद मरंग गोमके की झारखंड पार्टी में भगदड़ सी मच गयी थी जिसके एक साल बाद सन 1963 में जयपाल सिंह मुंडा ने अपनी पार्टी को कांग्रेस में विलय कर दिया था. क्यूंकि कांग्रेस पार्टी ने मरंग गोमके को भरोसा दिलाया था कि अगर वह अपनी पार्टी का इस राष्ट्रीय पार्टी यानि कांग्रेस में विलय कर देते हैं, तो वह अलग झारखंड राज्य का गठन करेंगे. लेकिन हुआ कुछ और कांग्रेश ने सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए मरंग गोमके से झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करने को कहा था,और भले ही बाद में जयपाल सिंह मुंडा को संयुक्त बिहार का उप-मुख्यमंत्री बना दिया गया.लेकिन अलग झारखंड राज्य का सपना देख रहे संयुक्त बिहार के उप-मुख्यमंत्री जयपाल सिंह मुंडा ने एक महीने बाद ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
दरअसल, यह इस्तीफा इसलिए दिया था क्यूंकि कांग्रेस ने अपने वादे के मुताबिक अलग झारखंड राज्य के गठन का अपना वादा पूरा नहीं किया था और यही नहीं एक वक्त ऐसा भी आया, जब जयपाल सिंह मुंडा ने सरेआम स्वीकार किया कि झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करना उनकी सबसे बड़ी भूल थी. जिसमें उन्होंने 13 मार्च, 1970 को कहा था कि कांग्रेस ने धोखा दिया. झारखंड पार्टी का कांग्रेस में विलय करना मेरी सबसे बड़ी भूल थी. मैं झारखंड पार्टी में लौटूंगा और अलग झारखंड राज्य के लिए नये सिरे से आंदोलन करूंगा. बता दें इस घोषणा के ही एक सप्ताह बाद 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा का दिल्ली में निधन हो गया.
बहरहाल, जयपाल सिंह मुंडा के निधन के 3 दशक बाद 15 नवंबर 2000 को अलग झारखंड राज्य तो बना,लेकिन उनकी उम्मीदों के अनुरूप आदिवासियों का उत्थान अब तक नहीं हो पाया है. वहीं, जहां उन्होंने कांग्रेस पर भरोसा किया, लेकिन उन्हें भरोसे के बदले में धोखा मिला.जिसका एहसास होते ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी से नाता तोड़ लिया था. वे आज हमारे बीच भले ही नहीं हैं लेकिन वे हर भारतीय आदिवासी समुदाय के प्रमुख नेताओं में से एक माने जाते हैं और माने जाते रहेंगे और उनका योगदान भारतीय समाज के लिए हमेसा अत्यधिक महत्वपूर्ण रहेगा. खासकर झारखंड क्षेत्र में आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए उनके संघर्षों को ऐतिहासिक महत्व दिया जायेगा.और तमाम आदिवासियों के बीच एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में याद किए जाएंगे.