L19 DESK : झारखंड का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल RIMS, अपनी बदहाली की गवाही खुद देता है. फिर चाहे फर्श पर लेटे मरीज हो या अल्ट्रासाउंड कराने के लिए हफ्तों का इंतजार करते मरीज, दवाइयों का ना होना हो या फिर ड्राक्टरों की कमी. ऐसी कई कमियां हैं जिसपर अगर हम बात करने बैठे तो पूरा दिन बीत जाए पर कमियां खत्म ना हो. हालांकि, जिन विषयों से राज्य की जनता और मरीजों का सीधा सरोकार रहता है उस पर हमने हमेशा वीडियो बनाया है और मरीजों की आवाज को उठाने का प्रयास किया है. वैसे ही एक और मुद्दे पर जब हमसे एक मरीज ने संपर्क कर अपनी परेशानी बताई तो हमने सोचा क्यों इस मुद्दे पर विस्तार से ही बात कर ली जाए. मुद्दा रिम्स परिसर में ही स्थित AMRIT PHARMACY से जुड़ा हुआ है.
दरअसल, रिम्स अस्पताल में जो भी मरीज एडमिट होते है. उन्हें डॉक्टरों की ओर से दवा की लिस्ट जब दी जाती है तो आमतौर और ज्यादातर समय मरीज के परिजन या रिश्तेतार रिम्स परिसर में ही स्थित Amrit Pharmacy से दवा लेने जाते हैं. लेकिन यहां दो परेशानियों का सामना आमतौर पर उन्हें करना पड़ता है. दोनों पर अलग-अलग बात करेंगे. शुरुआत दवाई खरीदने के दौरान आने वाली परेशानी से करते हैं. दरअसल, दवाई दुकान में महिला और पुरुष के लिए अलग-अलग काउंटर बनाई गई है. लेकिन ज्यादातर समय महिलाओं वाले काउंटर में कोई सेल्समेन या सेल्सवुमन रहती ही नहीं है. इसकी वजह से एक ही काउंटर में काफी ज्यादा भीड़ हो जाती है, इस वजह से दवाई लेने में लोगों को काफी दिक्कत होती है. ऐसे में जो मरीज EMERGENCY में एडमिट होते हैं उनके परिजनों के लिए दवाई खरीदने की यह लड़ाई कितनी दुखदायी रहती होगी वो उन्हें ही पता होगा. कई बार मरीजों की मौत इसलिए भी हो जाती है कि अस्पताल में जरूरत की या दवाईयां उपल्बध नहीं रहती हैं या समय पर उन्हें वो उपल्बध नहीं हो पाती हैं.
अब परिजनों को होने वाली दूसरी परेशानी पर बात करते हैं. आप सोच रहे होंगे कि आखिर जब पैसे लगाकर ही दवाईयां खरीदनी है तो हम वहां से ही दवा क्यों खरीदेंगे, इसकी पीछे भी अपनी एक वजह है. दरअसल, Amrit Pharmacy में दवाई प्रिंट रेट यानी MRP से कम दाम पर मिलती है. दवाइयों में कई प्रतिशत तक की छूट दी जाती है. ऐसे में गरीब परिवार के मरीजों के लिए यह दुकान एक वरतान से कम नहीं है. लेकिन अब यहां भी एक पेंच है. अगर, आप सोच रहे हैं कि घंटों लंबी लाइन में लगने के बाद आपको दवाई मिल जाएगी तो यहां भी आप गलत हैं. Prescription में लिखी गई आधी से ज्यादा दवा वहां आपको मिलेंगे ही नहीं. अब इसमें डॉक्टर की गलती है या दुकानदार की यह तो जांच का विषय है. लेकिन परेशानी तो मरीज और उनके परिजनों को उठाना पड़ता है.
इसको ऐसे समझिए रिम्स के बाहर सैकड़ों दवा की दुकाने हैं, ऐसे में जब अमृत से दवा नहीं मिलता है तो गरीब मरीजों को मजबूरी में बाहर की दवा दुकानों से MRP पर दवाइयां खरीदनी पड़ती हैं. और कई दफे पैसे नहीं होने की वजह से मरीजों को वह दवा उपल्बध भी नहीं हो पाती है, अंतत: उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर, सब दवा वहां मिल जाएगी तो फिर अन्य सैंकड़ों दुकानों की क्या जरूरत. खैर, ये विषय़ भी जांच योग्य है. लेकिन जांच हो या ना हो परेशान तो आम जनता को ही होना है…
इस खबर के अंत में हम राज्य के स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी जी से एक निवेदन करना चाहेंगे. आपने पिछली बार जब रिम्स का निरिक्षण किया था तब डॉक्टरों से उपल्बध दवाईयां ही लिखने का आदेश दिया था. लेकिन इस पर कितना काम हो रहा है, उसकी भी एक बार औचक निरीक्षण कर जांच की जाए ताकि आपके सामने भी सच आ सके.