L19/Dhanbad : कोयला चोरी का खेल रुकने नाम नहीं ले रहा है हर दिन लाखों-करोड़ों का खेल हो रहा है। इसमें कई ग्रुप शामिल हैं। राज्यकर विभाग की रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें, तो 18 माह में कोयला खदानों से लगभग 24 लाख टन चोरी का कोयला निकला। 45 सेल कंपनियों के नाम से 80895 ई-वे बिल निकला जिसमे एक ट्रक में लगभग 30 टन कोयला लोड होता है। 80895 ई-वे बिल (परमिट) से कोयले को बिहार, यूपी व बंगाल भेजा जाता है। प्रति परमिट लगभग 30 टन चोरी का कोयला भेजा गया। इस खेल में कई ग्रुप शामिल हैं।
कई ग्रुप मिलकर करते है कोयले की चोरी
उत्खनन, ट्रांसपोर्टिंग व परमिट देने वाले अलग-अलग ग्रुप हैं। एक ग्रुप जो चोरी का कोयला एकत्रित करता है, दूसरा चोरी के कोयले का ट्रांसपोर्टेशन कराता है तथा तीसरा फर्जी कंपनी के नाम से ई-वे बिल (परमिट) देता है। सबसे बड़ा खेल इस ई-वे बिल के नाम पर होता है। किसी को पता तक नहीं चलता और उसके नाम पर यह ई-वे बिल निकल जाता है। धनबाद में इस काम में कई लोग है शामिल पर पांडेय, तायल, अंसारी, ओझा, सिंह जैसे ग्रुपों का बोलबाला है।
27 कंपनियों पर एफआइआर, मात्र एक की हुई थी गिरफ्तारी
27 सेल कंपनियों पर राज्यकर विभाग की ओर से विभिन्न थानों में एफआइआर दर्ज कराया गया है, पर आज तक कोयला का किंग पकड़ा नहीं गया। उस दौरान एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के बाद उसे छोड़ दिया गया था।
इन कंपनियों पर हो चुकी है एफआइआर
नारायण ट्रेडर्स, पूर्वा इंटरप्राइजेज, शुभ लक्ष्मी इंटरप्राइजेज, साईं ट्रेडर्स, धनबाद फ्यूल, न्यू हिंदुस्तान सेंटर, सिन्हा कोल ट्रेडिंग, देव इंटरप्राइजेज, गणेश फ्यूल सहित 27 कंपनियां है।
300-400 रुपये प्रति टन में बिकता है ई-वे बिल
ई-वे बिल (परमिट) बेचने वाले का बड़ा गिरोह के लोग काम कर रहा है। धनबाद में 300-400 रुपये प्रति टन ई-वे बिल (परमिट) बिकता है। यहां खास बात यह है कि पार्टी के हिसाब से ई-वे बिल की कीमत वसूली जाती है। हर ग्रुप का अपना-अपना सीमा बंटा हुआ है। झरिया, कतरास, बाघमारा, केंदुआ-करकेंद, निरसा में अलग-अलग ग्रुप काम करता है। कुछ का बैंक मोड़, झरिया, निरसा व कतरास में किसी दूसरे नाम से कार्यालय खुला हुआ है।
ऐसे होता है कोयले का खेल
कुछ जरूरतमंद लोगों के नाम, तो कुछ अनजान नाम से भी फर्जी कंपनी तैयार की जाती है। जिस व्यक्ति के नाम से कंपनी बनायी जाती है, उसका फोटो व आधार कार्ड इस्तेमाल किया जाता है। कई बार इसके बदले में कुछ पैसे का लालच दिया जाता है, तो कई बार किसी अनजान व्यक्ति का भी पेन कार्ड, रेंट एग्रीमेंट एवं एड्रेस प्रूफ इस काम में लगे शातिर तैयार कर लेते हैं लोगों को, इसके बाद जीएसटी के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाता है।