L19/Gumla : पूरे देश के साथ झारखंड में भी वनाधिकार कानून 2006 में लागू हुआ। इसके तहत जंगलों में निवास कर रहे या जंगलों की जमीन के सहारे अपनी आजीविका अर्जित कर रहे अनुसूचित जनजाति के लोगों को वन पट्टा देने का प्रावधान है। वन पट्टे का मतलब है अपने अनुसार जंगल के उपयोग करने का अधिकारपत्र। यह निजी व सामुदायिक दोनों ही प्रकार के होते हैं।
हालांकि, झारखंड राज्य में इसकी स्थिति अच्छी नहीं है। वन पट्टे के लिए दिसंबर 2022 तक 1 लाख से ज्यादा आवेदन आ चुके थे। मगर इनमें से अबतक केवल 2104 सामुदायिक वन पट्टे के आवेदनों को ही सरकार की मंजूरी मिली है। इसके बावजूद, जिन गांवों में वन पट्टे प्रदान किये गये हैं, वहां के ग्रामीणों की जीवनशैली, खेती बाड़ी में अच्छे बदलाव देखने को मिले हैं। यही नहीं, जंगलों के संरक्षण के साथ-साथ, ग्राम सभा और महिलाएं भी सशक्त हुई हैं। वहीं, बच्चे पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करते हैं जो गांवों में साक्षरता दर बढ़ने के संकेत दे रहे हैं।
इन्हीं में से एक गुमला जिले के बसिया प्रखंड में स्थित कुरुदेगा गांव भी है, जहां एक एनजीओ की सहायता से बेहतर बदलाव देखने को मिले हैं। इस एनजीओ का नाम है “प्रदान।” ग्रामीणों ने बताया कि प्रदान एनजीओ के वजह से गांव में खेती का स्तर मजबूत हुआ है।
क्या कहते हैं ग्रामीण?
ग्राम सभा प्रधान मंगल केरकेट्टा कहते हैं कि प्रदान नामक संस्था ने 2015-16 से आना शुरु किया और ग्राम सभा की बैठक करने का सुझाव दिया। पूर्व में एकाद बार ही बैठक की जाती थी, मगर अब हर कुछ अंतराल में बैठक होने से काफी मुद्दों पर चर्चायें होती हैं। इसके तहत जंगल का संरक्षण किया जा रहा है। जंगल की रोजाना देखभाल की जाती है। साथ ही बाकि योजनाओं की भी जानकारी मिली।
वहीं, एक महिला ग्रामीण सुरजीता जोजा के अनुसार, इससे न केवल खेती बाड़ी में सहायता मिली, परंतु ठेकेदारी प्रथा भी समाप्त हो गयी। साहूकारों से भी ज़रुरत के समय पैसे मांगने की स्थिति नहीं आती। क्योंकि अब महिला मंडल की ओर से हर सप्ताह 10 रूपए जमा किये जाते हैं, जो ज़रुरत के समय काम आते हैं। साथ ही, अब खाने पीने की दिक्कतें नहीं आती। धान की भी खेती की जाती है। सब्जियों व धान की खेती करने के बाद उन्हें गांव की महिलाओं द्वारा ही बाजार में बेचा जाता है।
कुरुदेगा गांव के ग्रामीण नेल्सन तोपनो ने बताया कि पूर्व में रसायनिक खाद्यों के प्रयोग से ज़मीन की उपजाऊ शक्ति समाप्त होने की कगार पर थी। मगर अब मवेशियों के गोबर, मूत्र से ही जैविक खाद्य से फल, सब्जी का खेती की जा रही है। इसके साथ ही जैविक खाद्य का प्रयोग कर जीवामृत, कीटनाशक तैयार कर पेस्टिसाइड के तौर पर इस्तेमाल किये जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि टमाटर की खेती की जानकारी नहीं थी, मगर अब बरसात के दिनों में टमाटर, मिर्च की खेती की जाती है। साथ ही गांव में महुआ, हंड़िया या अन्य नशीले पदार्थों के सेवन पर भी रोक लगा दी गयी है।