L19 DESK : भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने राज्य में गैर मजरुआ खास और गैर मजरुआ आम जमीन की गलत बंदोबस्ती किये जाने को लेकर प्रवर्तन निदेशालय को जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि जाली कागजात से जमीन हेराफेरी के अलावा 4 एच के जरिये लोगों को अंचल कार्यालयों और उपायुक्त कार्यालय से नोटिस देकर परेशान किया गया। इसके लिए फरजी डीड आजादी के पहले के बनवाये गये और उसे रद्द कर कई कारोबारियों को जमीन के बिचौलियों ने करोड़ों की जमीन बेच दी। इन नोटिसों के जरिये भयादोहन भी पूर्व उपायुक्त छवि रंजन के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर किया गया है।
उन्होंने इडी के क्षेत्रीय कार्यालय से जमीन के महाघोटाले की जांच एवं पूछताछ में 4एच के नोटिस के बाबत पूर्व उपायुक्त को घेरे में लिये जाने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि पूर्व उपायुक्त के खिलाफ तत्कालीन प्रमंडलीय आयुक्त की रिपोर्ट पर सरकार ने कार्रवाई नहीं की। इडी इन सभी मामलों की पड़ताल करे। उधऱ मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने एक बार फिर कहा है कि मुख्यमंत्री जी आंखे खोलिये और गौर से दिखिये। जमीन घोटालेबाजों ने पूर्व उपायुक्त के नेतृत्व में शहर के कई जमीन पर कब्जा करवाया है। इसके लिए टेंट लगायी जाती थी, पुलिस का भारी मजमा भी रहता था। उन्होंने इस संबंध में दो वीडियो भी सार्वजनिक किया है। जिसमें पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में जमीन कब्जा हो रहा है।
क्या है 4 एच का प्रावधान
बिहार भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 4-एच के तहत अगर भूतपूर्व जमींदारों की तरफ से की गयी गलत बंदोबस्ती के बारे में जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि भूमि सुधार के उद्देश्यों को विफल करने के लिए या सरकार को घाटा पहुंचाने के उद्देश्य से अथवा निजी लाभ से बंदोबस्ती अथवा हुकुमनामा निर्गत कर जमाबंदी खोली है। तो इसकी जांच समाहर्ता अथवा उपायक्त कर सकते हैं। ये दोनों अधिकारी अंतिम आदेश भी पारित कर सकते हैं। धारा 4-एच में यह भी प्रावधान है कि ऐसे आदेश पर राज्य सरकार की संपुष्टि प्राप्त करने के बाद ही जमाबंदी कायम की जायेगी और जमीन में दखल-कब्जा लिया जा सकेगा। सरकार की अनुमति लेकर जमाबंदी रद्द की जायेगी।
कई उच्च न्यायालयों में जमाबंदी रद्द करने के विरुद्ध रिट याचिकाओं का निष्पादन किया गया है। जमालूद्दीन अहमद बनाम एसडीओ खगड़िया एवं अन्य के मामले में न्यायालय ने 1930 और 1940 के सादा हुकुमनामा से बंदोबस्त की गयी जमीन की जमाबंदी रद्द करने के मामले में कहा था कि ऐसे मामले के विरुद्ध सरकार इस्टोपल ले सकती है। यद्यपि बंदोबस्ती 1950 में की गयी है, जिसकी जांच धारा 4 एच के अधीन की जा सकती थी, पर उपायुक्त और समाहर्ता ने अपने स्तर से ही जमाबंदी रद्द कर दिया। गैर मजरुआ मालिक या आम भूमि से संबंधित हुकुमनामा तथा जमाबंदी के बारे में भूमि विवाद हो इस पर सावधानी पूर्वक जांच की जानी चाहिए।
सरकारी पदाधिकारियों की तरफ से एंटीडेटेड अनिबंधित हुकुमनामों के आधार पर जमाबंदी खोलना गलत है। राज्य सरकार को ही जमीन के स्वरूप को परिवर्तित करते हुए गैर मजरुआ आम भूमि की बंदोबस्ती करने का अधिकार है। पर इसके लिए पूर्व जमींदारों की मनमानी दिखाना जरूरी है