भाजपा यानी भारतीय जनता पार्टी से अपने राजनीतिक जीवन की शुरआत करने वाले, पोडैयाहाट से लगातार छह बार विधायकी का चुनाव जीतने वाले, प्रदीप यादव को झारखंड कांग्रेस ने विधायक दल का नेता चुन लिया है. साल 2000 में पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले प्रदीप यादव कभी बाबूलाल मरांडी को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि साल 2019 चुनाव के बाद प्रदीप यादव ने ना सिर्फ बाबूलाल मरांडी का साथ छोड़ा बल्कि उनके खिलाफ भी सदन से लेकर सड़क तक मुखर रहे. इस न्यूज में हम प्रदीप यादव के राजनीतिक सफर में भाजपा और बाबूलाल मरांडी से हुए मोहभंग की बात तो करेंगे ही लेकिन हम यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर वो कौनसा फेक्टर है, जिसे साधने के लिए कांग्रेस ने महज कुछ सालों पहले पार्टी ज्वाइन किए प्रदीप यादव को विधायक दल के नेता जैसे बड़े पद का दायित्व दे दिया है.
गोड्डा जिले के पोड़ैयाहाट विधानसभा सीट से पहली बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते प्रदीप यादव को पार्टी ने विधायक दल का नेता बना दिया है. हालांकि, प्रदीप यादव इस सीट से कुल छह बार विधायकी का चुनाव जीत चुके हैं लेकिन कांग्रेस की टिकट पर यह उनकी पहली जीत है. प्रदीप यादव के राजनीतिक सफर की बात करें तो उन्होंने पहली बार साल 2000 में इस सीट से बीजेपी प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की थी. पहली बार चुनाव जीतने वाले प्रदीप यादव को बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में मंत्री बनाया गया था.
इसके बाद 2005 में भी वह दूसरी बार बीजेपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे, लेकिन 2006 में जब बाबूलाल मरांडी ने भारतीय जनता पार्टी से अलग होकर झारखंड विकास मोर्चा (JVM) नामक पार्टी बनाई तो प्रदीप यादव इसमें शामिल हो गए. प्रदीप यादव ने 2009, 2014 और 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की.
लेकिन 2019 के चुनाव परिणाम के बाद जब बाबूलाल मरांडी ने साल 2020 में अपनी पार्टी, झारखंड विकास मोर्चा का विलय भाजपा में किया तब प्रदीप यादव ने बाबूलाल मरांडी से अलग होने का फैसला लिया और वह कांग्रेस में शामिल हो गए. हालांकि, सदन में उन्हें कांग्रेस के बजाय झारखंड विकास मोर्चा के विधायक के रूप में ही मान्यता दी गई थी. वहीं, इस साल हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर पहली बार जीत दर्ज की और पार्टी ने उन्हें विधायक दल के नेता जैसे बड़े पद का दायित्व सौंप दिया है.
ऐसे में आपके मन में भी अब आप सवाल आ रहे होंगे कि आखिर कांग्रेस ने लंबे समय तक बाबूलाल मरांडी का साथ देने वाले प्रदीप यादव पर इतना भरोसा क्यों जताया. तो चलिए अब उस पर भी बात करते हैं. दरअसल, प्रदीप यादव के विधायक दल के नेता बनने के पीछे सबसे बड़ी वजह ये बताई जा रही है कि जब बाबूलाल मरांडी ने जेवीएम के विलय की बात कही तब प्रदीप यादव के पास भाजपा ज्वाइन करने का अच्छा मौका था, बीजेपी की केंद्र में सरकार भी थी मगर, प्रदीप यादव ने स्वतंत्र होकर अपने विचारों से मेल खाती पार्टी कांग्रेस का चयन किया. इसके अलावा प्रदीप यादव, गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ भी मुखर होकर बोलते रहे हैं. गोड्डा में इंडिया गठबंधन की ओर से जो नेता निशिकांत दुबे से दो-चार करने में सबसे आगे हैं उनमें प्रदीप यादव शीर्ष पर आते हैं. इसके अलावा प्रदीप यादव OBC समुदाय से आते हैं ऐसे में काग्रेंस उनके जरिए OBC वोटर खासकर यादव वोटरों पर अपना भरोसा बढ़ाना चाहती है. खैर, ऐसे कई और फैक्टर हैं जो प्रदीप यादव के पक्ष में रहे और उन्हें पार्टी ने यह जिम्मेदारी दी है.