लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में आगामी विधानसभा की हलचल शुरू हो गई है।और इन दिनों गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिया गया एक बयान भी खूब चर्चा का विषय बना हुआ है,इस बयान के तहत गृह मंत्री ने कहा था…. झारखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाएगा,लेकिन इस कानून से आदिवासी समाज को अलग रखा जाएगा और इस कानून से आदिवासीयों को कोई नुकसान नही पहुंचेगा। भले भाजपा के लिए यह पॉलिटिकाल स्टंट हो, लेकिन दबे जुबान ही सही आदिवासी समाज और मुस्लिम समाज फिर से इस कानून को लेकर ऐक्टिव हो गए हैं और UCC के खिलाफ अपनी नाराजगी व्यक्त करना शुरू कर दिए हैं। बताते चले साल 2019 में दूसरी बार NDA की सरकार बनते ही UCC यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड चर्चा में आया था। तब पूरे भारत के आदिवासी और मुस्लिम समुदायों द्वारा इस कानून का पुरजोर विरोध किया गया था। इधर अमित शाह द्वारा दिए गए इस बयान ने एक बार फिर झारखंड में UCC की राजनीति को गरम कर दिया है। तो आइए समझते हैं…….. आखिर क्यूँ UCC कानून का आदिवासी और मुस्लिम समाज हमेशा से विरोध करता आ रहा है और इसके लागू होने से क्या नुकसान पहुँचने वाला है?केंद्रीय विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर लोगों से रायशुमारी करनी शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि नवनिर्मित मोदी सरकार आने वाले 1, 2 सालों के अंदर इस कानून को पूरे देश में लागू कर देगी। अभी हाल में ही उतराखंड सरकार द्वारा UCC कानून को पूर्ण रूप से लागू किया गया है और इस लाइन में up बिहार महाराष्ट्र गुजरात जैसे भाजपा शासित राज्य भी खड़े हैं जहां जल्द ही इस कानून को लागू किया जा सकता है.. ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि बहुत जल्द अन्य राज्यों में भी इसे लागू किया जा सकता हैं। इधर झारखंड के संदर्भ में देखे तो आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी यानि बीजेपी इसे राज्य में बड़ा राजनीतिक दांव के रूप में ले सकती है। चुनावों में इसका कितना लाभ मिल सकता है? यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कानून के जानकारों का कहना है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे गंभीर मुद्दे पर कानून बनाने के लिए एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा। इसके लिए फिलहाल समय नहीं बचा है। ऐसे में समान नागरिकता कानून लागू होने की संभावना राज्य में नहीं दिख रही है। वहीँ इस संबंध में यदि सरकार चाहे तो वह अध्यादेश के जरिए समान नागरिक संहिता लाने का विकल्प अपना सकती है। बाद में इसके उपबंधों पर विस्तृत विचार-विमर्श करते हुए कानून लाया जा सकता है।क्यूकी केंद्र सरकार इसके पहले कई मुद्दों पर अध्यादेश के जरिए कानून ला चुकी है। हाँ वैसे आपको जानकारी के लिए बता दें इस कानून को लाने से पहले दर्जनों अन्य वर्तमान कानूनों में बदलाव की आवश्यकता होगी जो कि एक लंबी प्रक्रिया है। वहीँ विभिन्न समुदायों से व्यापक विचार-विमर्श के बिना इस कानून को लाने से इसका विरोध हो सकता है। आपको बता दें सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) और एनआरसी (नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजंस) जैसे मुद्दों पर इसी तरह का विरोध हुआ था। ऐसे में बड़ा प्रश्न यह भी है कि क्या सरकार यह कानून लाकर आदिवासियों और मुसलमानों की नाराजगी का खतरा उठाएगी? कहा जा रहा है कि इससे उन लोगों पर ज्यादा असर होगा जो अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार चार विवाह कर सकते हैं।1955 में एक कानून के जरिए बहुविवाह को अवैध करार दे दिया गया था, लेकिन अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण मुसलमानों को भी इससे छूट प्राप्त है।कई जनजातिय समूहों में भी ‘बहुपत्नी’ और ‘बहुपति’ प्रथा शामिल है इसलिए समान नागरिक संहिता लागू होने से कहीं ना कहीं आदिवासी समुदाय की इस मान्यता को चोट पहुंच सकती है।और लिहाजा इस कानून के प्रति उनके बीच विरोध तेज हो सकता है। इतने विरोध के बावजूद भाजपा को यह समझना चाहिए कि पिछले 10 12 सालों के अंदर पार्टी में आदिवासी वोटरों की संख्या बढ़ी है।बात करें तो साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 27 सीटों और 2019 में 31 सीटों पर सफलता मिली थी। दूसरी सीटों पर भी अगर हम बात करें तो आदिवासी मतदाताओं ने भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब जबकि इसी साल हुए आदिवासी मतदाताओं की बहुलता वाले राज्य यानि की छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव में भाजपा को अछि खासी बढ़त मिली है, ऐसे में एक बार फिर से UCC का मुद्दा उठाना इन राज्यों में भाजपा को मंहगा पड़ सकता है। ऐसे में आगामी झारखंड विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है क्योंकि एक ओर बीजेपी UCC लागू करने पर अड़ी हुई है वहीं दूसरी ओर राज्य के अधिकतर आदिवासी समुदाय इस कानून के विरोध में खड़े हैं। ऐसे में बीजेपी आदिवासी समाज को कैसे समझा पाएगी यह पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। क्योंकि जब तक आदिवासी को UCC कानून के बारे में नहीं समझाएंगे तब तक आदिवासी आपका साथ नहीं देंगे और इसका जीता जागता उदाहरण बीते लोकसभा चुनाव में हम देख चुके हैं जहां पर सभी पांच के पांच आदिवासी रिजर्व सीट बीजेपी हार गई है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि कहीं फिर से राजनीति ना हो इसको लेकर अमित शाह दबे जुबान ही सही UCC से आदिवासियों को अलग करने की बात कर रहे हैं। अब जब अमित शाह ने फिर से इस कानून को छेड़ दिया है तो यह झारखंड में राजनीति का विषय बन गया है और आगे देखना दिलचस्प होगा की आगे चलकर इस पर किस तरह की राजनीति होती है?