राज्य के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल रिम्स में मंगलवार को कुछ ऐसा ही देखने को मिला कि आप काभी सोच भी नहीं सकते है। यह सत्य है कि गरीबों के नाम पर खूब योजनाएं बनती हैं, खूब दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उल्टा होता है। एक महिला मरीज को उसका पति अपने कंधे पर उठा कर रिम्स से बाहर ले जाते हुए बड़बड़ा रहा था। उन्होंने कहा पैरवी वाले लोगों का इलाज होता है, गरीबों का नहीं। दुमका जिले के नोनीहाट की मरीज सुश्मी देवी को कंधे पर ले जाते उसके पति विष्णु केवट का दर्द और बेबसी साफ-साफ दिख रही थी।
जब लोग उससे पूछा कि मरीज को कंधे के सहारे क्यों लेकर जा रहे हैं? इतना सुनते ही विष्णु का दर्द छलक उठा। उसने कहा मैं दिहाड़ी मजदूर हूं और दो महीने पहले अपनी बीमार पत्नी को रिम्स लेकर आया था। उस समय ये अपने पैरों पर चल कर आई थी और आज इसकी हालत देख लीजिए, इसे कंधे पर ले जा रहा हूं। दो महीने तक भर्ती रहने के बावजूद यहां इसका इलाज नहीं हुआ। अब इसे घर ले जा रहा हूं, लेकिन बाहर ले जाने के लिए अस्पताल में ट्रॉली तक नहीं मिली। जितना मेरे बस में था किया। अब इसकी जिंदगी भगवान के हाथों में है।