L19 DESK : भारत सरकार से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड में जंगल-झाड़ी पर भी फॉरेस्ट एक्ट लागू होने से विकास कार्यों में देरी की समस्या रखी है। केंद्र सरकार से नीति आयोग के जरिए यह मांग की है की विकास कार्यों की राह में जंगल झाड़ी आने पर फॉरेस्ट क्लीयरेंस की प्रक्रिया को केंद्रीय उपक्रमों की तरह सरल बनाया जाए। झारखंड में राष्ट्रीय राजमार्गों का चौड़ीकरण, बिजली का संरचना विकास, नए हाइवे के निर्माण आदि कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में देरी हो रही है।
वर्तमान में झारखंड का लगभग 33 फीसदी क्षेत्रफल वन के रूप में अधिसूचित है। हालांकि, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के आलोक में 1930 के दौरान किए सर्वेक्षण के आधार पर जंगल या झाड़ी को वन भूमि के रूप में देखता है। 100 साल पहले के सर्वे के आधार पर आज जहां एक भी पेड़ नहीं बचे हैं। वह भी जंगल या झाड़ी के आधार पर वन भूमि के रूप में अधिसूचित है।
इसके लिए भी फॉरेस्ट क्लीयरेंस की पूरी प्रक्रिया अपनानी होती है। इससे झारखंड में विकास में निवेश को आकर्षित करने में बाधा उत्पन्न होती है। पर्यावरण मंजूरी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी का कारण बन रही है। झारखंड सरकार का मानना है कि 100 साल पुराने सर्वेक्षण पर ध्यान केंद्रित करने से बेहतर होगा कि अधिसूचित वन क्षेत्र के लिए पर्यावरण मंजूरी की व्यवस्था अनिवार्य रखी जाए। झारखंड सरकार ने नीति आयोग के समक्ष इस मुद्दे को प्रमुखता से रखा है।
सूत्रों के मुताबिक इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में आदेश को संशोधित करने के लिए केंद्र सरकार पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकती है। नीति आयोग की ओर से पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव को इस मसले का समाधान जल्द निकालने के लिए कहा गया है।