सुदेश महतो, वह नाम जिसके बिना झारखंड की राजनीति और प्रदेश में सत्ता की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, आज ये नाम कहीं गुम हो गया है। सालों तक जिस आजसू पार्टी के नेता-विधायक झारखंड में किंगमेकर की भूमिका में रहे, आज उनके सिर पर अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पहली बार चुनाव में आजसू का प्रदर्शन इतना खराब रहा है। तो क्या अब झारखंड की राजनीति से आजसू का नामो- निशान मिट रहा है? क्या कुड़मियों की सबसे बड़ी पार्टी आजसू अब अपना जनाधार खो रही है ? क्या जयराम महतो ने सुदेश महतो के पॉलिटिक्स को ओवरटेक कर लिया है ? और क्या सुदेश महतो इतने बड़े पराजय को पचा नहीं पा रहे हैं ? ये तमाम सवाल इसलिये, क्योंकि विधानसभा चुनाव-2024 के नतीजे आए 2 हफ्ते से ज्यादा हो गये हैं, लेकिन न तो सुदेश महतो और न ही उनकी पार्टी आजसू ही कहीं नज़र आ रही है।
23 नवंबर को चुनावी परिणाम आने के बाद इंडिया गठबंधन ने जश्न मनाया, 5 दिनों के बाद यानी 28 नवंबर को हेमंत सोरेन ने 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 5 दिसंबर को मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया, कल 6 दिसंबर को उनके विभागों का बंटवारा भी हो गया। आगामी, 9 दिसंबर से विधानसभा का सत्र भी शुरु होने वाला है। उधर, दोबारा विपक्ष में बैठने को मजबूर भाजपा अपनी हार की समीक्षा करने में जुटी हुई है। हार का कारण ढूंढने और समझने के लिए प्रत्याशियों, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से उनकी राय ली जा रही है। आलाकमान को रिपोर्ट सौंपी जा रही है। बाबूलाल मरांडी, दिल्ली में हाजिरी लगा रहे हैं.
इधर, कांग्रेस भी अपनी समीक्षा करने में जुटी है। इस बीच साक्षात्कारों का सिलसिला भी जारी है। जीतने और हारने वाले प्रत्याशी मीडिया के समक्ष आकर सवालों का सामना कर रहे हैं। लेकिन इन सब के बीच आजसू का कहीं नामों निशान नहीं है। करारी हार के बावजूद न तो पार्टी ने समीक्षा बैठक की, न ही पार्टी के किसी नेता ने इंटरव्यू का सामना किया, और ना ही कोई आधिकारिक बयान सामने आया है।
आपको बता दें कि इस बार विधानसभा चुनाव में आजसू ने 10 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन जीत मात्र 1 ही सीट पर हुई, वह भी सबसे कम वोटों के अंतर से। ये अंतर मात्र 235 मतों का रहा। सिल्ली मॉडल और सुदेश महतो के कामों पर चुनाव लड़ने वाली आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो खुद अपनी सीटिंग सीट से हाथ धो बैठे। मांडू को छोड़ कर सभी सीटों पर उनके प्रत्याशी मात खा गये। आज तक के राजनीतिक सफर में सुदेश महतो की ये सबसे बड़ी हार साबित हुई है। ऐसा नहीं है कि सुदेश महतो कभी हारे नहीं है। याद कीजिये, साल 2014 का चुनाव, जब सुदेश महतो जैसे बड़े कुड़मी नेता को बेदखल करके जेएमएम प्रत्याशी अमित महतो ने सिल्ली विधानसभा सीट पर कब्जा जमा लिया था। लेकिन इसके बावजूद आजसू को मंत्रिमंडल में जगह मिली।
2014 में बनी रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में चंद्रप्रकाश चौधरी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। उनके सांसद बन जाने के बाद तत्कालीन आजसू विधायक रामचंद्र सहिस को मंत्री पद से नवाज़ा गया। इससे साफ है कि कम सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद आजसू को राज्य की सियासत में विशेष दर्जा हासिल था। लेकिन इस बार के परिणाम के बाद तो लगता है कि पार्टी ने अपनी बनी बनायी राजनीति पर कुल्हाड़ी मार ली है।
इसका एक महत्वपूर्ण कारण आजसू का अपने ही मूल मुद्दों और विचारधारा से लगातार दूरी बनाये रखना माना जा रहा है। स्टूडेंट यूनियन से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाली पार्टी आजसू शुरुआती समय से ही 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, नियोजन नीति, कुड़मी को एसटी का दर्जा देने से संबंधित मुद्दों की पक्षधर रही है। लेकिन कुछ सालों से आजसू इन मुद्दों पर कई दफा चुप्पी साधती नजर आती है, या फिर कुछ भी खुलकर बोलने से बचती रही है। रघुवर दास ने जब अपने कार्यकाल में 1985 खतियान आधारित स्थानीय नीति राज्य भर में लागू कर दिया था, तब एनडीए गठबंधन की सहयोगी दल आजसू ने बेशक इसकी खिलाफत की थी। लेकिन ये विरोध का स्वर इतना ऊंचा नहीं हो पाया कि सरकार दबाव में आकर इस नीति को वापस ले ले। न तो गठबंधन में टूट की ही स्थिति बनी। जनता के बीच यही संदेश गया कि स्टूडेंट्स की बुलंद आवाज़ कहलाने वाली पार्टी आजसू अब चुनावी राजनीति में इतनी मशगूल हो गयी है कि वह अपने कोर एजेंडे से ही भटक चुकी है। इसके अलावा, न तो नियोजन नीति, न ही सरना धर्मकोड, न जातीय जनगणना, और न ही कुड़मी को एसटी सूची में शामिल कराने के लिये आजसू ने जोर शोर से वकालत की। इस बीच जयराम महतो की एंट्री हुई, उन्होंने एक नये सिरे से 1932 खतियान और नियोजन नीति को आवाज़ दी। पहले पहल तो सभी वर्ग के लोग उनसे जुड़े, लेकिन धीरे धीरे वो भी कुड़मी समुदाय तक ही सीमित हो गए। इसका सबसे बड़ा नुकसान सुदेश महतो और उनकी बनायी पार्टी आजसू को ही हुआ। कभी सुदेश महतो कुड़मियों के बड़े नेता माने जाते थे, लेकिन आज उनकी जगह जयराम महतो ने ले ली है। राज्य का कुड़मी समुदाय उनकी तरफ गोलबंद है, इसका प्रमाण इस बार के विधानसभा चुनाव के परिणाम से भी मिल जाता है। जिन कुड़मी बहुल सीटों पर सुदेश महतो ने अपने प्रत्याशियों को उतारा, उन सभी इलाकों में जयराम महतो की पार्टी जेएलकेएम ने अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज करायी, जिससे आजसू का वोट बैंक जेएलकेएम की तरफ शिफ्ट हो गया।