जाओ जाकर पढ़ो लिखो
बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती
काम करो, ज्ञान और धन इकट्ठा करो
ज्ञान के बिना सब खो जाता है
ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते हैं
इसलिए खाली न बैठो
जाओ जाकर शिक्षा लो
दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों को दूर करो
तुम्हारे पास सीखने का मौका है
इसलिए सीखो और जाति के बंधन को तोड़ दो
ब्राह्मणों के ग्रंथो को जल्द से जल्द फेंक दो।
आज उस मोहतरम शख़्सियत की पुण्यतिथि है जिनका मानना था कि शिक्षा ही गरीबी को मिटा सकती है । जिन्होंने पहली बार बालिकाओं और पिछड़ों के शिक्षण हेतु कई विद्यालयों की स्थापना की और जिन्हें भारत की प्रथम महिला शिक्षिका के रूप में याद किया जाता है । इस महान हस्ती का नाम था सावित्रीबाई फुले।
इनका जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के एक पिछड़े वर्ग के परिवार में हुआ था । इन्होंने अपने पति महात्मा ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर महिलाओं को शिक्षा से जोड़ने का तथा उन तक शिक्षा पहुँचाने का ऐतिहासिक कार्य किया । उन्होंने समाज में फैली जात-पात , छूआछूत, ऊँच नीच , आदि जैसी बुराईयों पर भी कड़ा प्रहार किया । इस दौरान उनका समाजिक रूप से बहिष्कार किया गया । कथित उच्च वर्गों के लोगों द्वारा उनपे कीचड़ और गोबर फेंके गये लेकिन इन सबका उन्होंने डटकर सामना किया औlर अपने कर्मयोगी मन के सहारे अपना काम करतीं गईं ।वह अक्सर कहा करती थीं कि स्वाभिमान से जीने के लिए पढो ।
तत्कालीन समय में महिलाओं को बहुत से अधिकारों से वंचित रखा गया था। वे भी जिस समाज और घर में में पैदा हुईं थी उसका मानना था कि लड़कियों का ब्याह जितनी जल्दी हो जाये उतना अच्छा । इन सब कारणों के वजह से उनका विवाह महज़ 9 वर्ष की आयु में ज्योतिराव फुले के साथ कर दिया गया । शादी तक उन्हें कोई शिक्षा हासिल नहीं थी लेकिन शिक्षा के प्रति दृढ़ रूझान देख कर इनके पति ने इन्हें शिक्षा दिलाई । फिर आगे चलकर अमहदनगर से शिक्षक बनने का प्रशिक्षण लिया । आगे चलकर इन्होंने अपने पति के सहयोग से 1848 में महिलाओं के लिए भारत का पहला विद्यालय खोला ।
माता सावित्रीबाई फुले 10 मार्च 1897 को 66 वर्ष की उम्र में दुनिया से विदा हो गईं ।