L19 DESK : झारखण्ड में एक बार फिर से सियासी समीकरण, पूरी तरह गरमा चुकी है, पूरा मामला राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखने से जुड़ा हुआ है। इस चिट्ठी के माध्यम से मुख्यमंत्री ने आदिवासी समुदायों के धर्म कोड को मान्यता देने के लिए प्रधानमंत्री से आग्रह किया है। लेकिन राज्य में पक्ष और विपक्ष इस मसले पर खूब राजनीति कर रहे है। आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो चुका है। और फिलहाल इस वक्त राज्य में विपक्ष की भूमिका मैं मौजूद भाजपा गठबंधन इस भावनात्मक मुद्दे पर बुरी तरह घिरती दिख रही है।
लेकिन सवाल यह है कि भाजपा राज्य के सत्ता से बाहर है फिर भी सरना धर्म कोड के मुद्दे पर चुप्पी साधते क्यों दिख रही है?
इस पूरे ताजा घटनाक्रम को जानने के लिए सबसे पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए चिट्ठी को समझना जरूरी है। मुख्यमंत्री ने लिखा है कि देश ममें 2011 के जनगणना के मुताबिक आदिवासी समुदायों की संख्या लगभग 12 करोड़ है, जिसमें झारखंड राज्य मे लगभग 1 करोड़ आदिवासी आबादी निवास करते हैं, और मैं इस राज्य का नेतृत्व करता हूं, लेकिन मैं खुद एक आदिवासी होने के नाते यह देखता हूं कि आदिवासी समुदायों कि संस्कृति परंपरा और रीति रिवाजों का हनन हो रहा है, क्योंकि आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं, आदिवासी पेड़ जंगल पहाड़ का पूजा करते हैं।
लेकिन कई कारणों से आज आदीवासी समुदाय के पारंपरिक और प्रथागत पूजा पाठ के तरीकों मे बदलाव आ रहे हैं। जिससे आदीवासी संस्कृति कि पुरानी व्यवस्था मे नुकसान हो रहा है, और यही वजह है कि पिछले कई वर्षों से आदीवासी संस्कृति को जीवित रखने और बढ़ावा देने के लिए कई आदीवासी अगुवाओं और नेताओं द्वारा सरना धर्म कोड का मांग किया जा रहा है। ताकि आदीवासी समुदाय के संस्कृति की रक्षा हो सके।
मुख्यमंत्री ने आगे लिखा है कि वर्ष 1951 में आदीवासी समुदाय के लिए अलग धर्म कोड की व्यवस्था की गई थी लेकिन उसे अस्तित्व में नहीं लाया गया, लेकिन अब देश के तमाम आदीवासी समुदाय के लोग चाहते हैं कि उनके लिए अलग धर्म कोड की व्यवस्था की जाए, ताकि अधिवासी समुदायों को अपना खुद का पहचान मिल सके। इस चिट्ठी में मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को सरना धर्म कोड से जुड़े कई मसलों से अवगत कराने के लिए लिखा है। और आग्रह किया है कि जल्द से जल्द देश के आदिवासियों को उनका हक दिया जाए, ताकि उनके संस्कृति का रक्षा हो सके।
इस चिट्ठी में लिखी सरना धर्म कोड पर मुख्यमंत्री ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स मे भी पोस्ट किया है।
ईधर भाजपा के कई नेता इस गंभीर और भावनात्मक मुद्दे पर चुप्पी साधते दिख रहे हैं। भाजपा के नेताओं का आरोप है कि मुख्यमंत्री ने ईडी के दबिश के कारण इस नाजुक मसले पर हाथ डाल दिया है, मुख्यमंत्री पहले भी कई बार अपने बचाव मे ऐसा करते रहे हैं। लेकिन जब सरना धर्म कोड के गंभीर मुद्दे के इतिहास को देखा जाता है तो यह मसला आज का नहीं है बल्कि वर्षों पुराना है, हालांकि हाल के कुछ वर्षो मे सरना धर्म कोड मसले पर अधिवासी समुदायों ने खुलकर सामने आना शुरू किया है।
झारखण्ड आदिवासी बहुल राज्य होने के कारण हिन्दू या ईसाई धर्म कोड से अलग सरना धर्म कोड को लेकर सरकार ने 11 नवंबर 2021 को झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था। जिसमें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अलग सरना धर्म कोड की मांग का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराया था। जिसे राजभवन भेज दिया गया था। लेकीन मामला राजभवन में ही कई खामियों के कारण अटकने की सूचना सामने आई थी।
इसके बाद कई खुले मंचो से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्र सरकार, भाजपा और राजभवन को घेरा था, बाकायदा कुछ दिनों पहले भी इस मुद्दे को हवा देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था की केंद्र सरकार ओर भाजपा नहीं चाहती है की आदिवासी समुदायों के संस्कृति की रक्षा हो। देश के आदिवासी समुदायों से भाजपा सरकार आदिवासियों की पहचान छीनना चाहती है। भाजपा भी इस मसले पर मुख्यमंत्री को घेरते रही है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जान बुझ कर इस तरह के मुद्दे को उठाया करते हैं, ताकि मुख्य मांगों से राज्य के लोगों को भटकाया जा सके।
इधर सरना धर्म कोड को लेकर राजनीति बाजार गर्म है लेकीन इस मांग को लेकर लड़ रहे अधिवासी अगुवाओ का इस मांग को लेकर अपना तर्क है, कई आदिवासी नेता ओर सरना धर्म कोड के पक्षधर बताते हैं कि 2011 की जनगणना में देशभर के 40,75,246 आदिवासी लोगों ने खुद को सरना या आदिवासी धर्मावलंबी बताया था। इसमें सर्वाधिक झारखंड में 34,50,523, ओडिशा में 3,53,520, पश्चिम बंगाल में 2,24,704, बिहार में 43,342, छत्तीसगढ़ में 2450 और मध्य प्रदेश में 50 लोगों ने खुद का धर्म सरना बताया था।
हालांकि कई आदिवासी समुदायों ने सरना धर्म कोड से अलग अपना खुद का पारंपरिक धर्म बताया था। इसके बावजूद इस मांग को नजरंदाज किया गया, वो भी उस वक्त जब आदिवासी समुदायों के अधिकतर लोग अलग सरना धर्म कोड को लेकर जागरूक नहीं थे, अब अगर जनगणना होती है ओर सरना धर्म कोड को अलग मान्यता दिया जाता है तो परिस्थिती कुछ ओर होगी। सरना धर्म के अनुनायियों की संख्या करोड़ों मे जा सकती है।
फिर सवाल उठता है कि सरना धर्म कोड को लेकर केंद्र सरकार तैयार क्यों नहीं है? आदिवासी समुदायों के इस जायज मांग पर सरकार जल्द फैसला क्यों नहीं लेती?
इस मांग को लेकर जब गहराई से अध्ययन करेंगे तो एक बात साफ देखने को मिलेगा कि आदिवासियों के अलग सरना धर्म कोड के मांग को लेकर सब कुछ इतना आसान नहीं है। इस मांग को लेकर भी आदिवासी समुदायों के अंदर ही कई धड़े हैं, देश के अलग अलग राज्यों मे अलग अलग आदिवासी समूहों के पारंपरिक तरीके संस्कृति ओर प्रथा अलग अलग है। आदिवासी समुदाय के अंदर भी बहुत सारे वर्ग और जातियां हैं, जिनकी अलग अलग मान्यता है, कई लोग सरना स्थल पूजा करने जाते हैं तो कई लोग मंदिरों मैं तो कई लोग गिरजाघरों मैं।
झारखण्ड के ही अंदर सरना धर्म कोड को लेकर कई धड़े हैं, लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष और खूंटी लोकसभा क्षेत्र से आठ बार सांसद रहे कड़िया मुंडा सरना धर्म कोड को लेकर झारखंड में चल रही राजनीति को अनुचित मानते हैं। वो कहते हैं कि दुनिया में किसी भी देश में किसी पूजा स्थल के नाम पर धर्म या फिर धर्म कोड नहीं है। लेकीन कुछ लोग भोले-भाले आदिवासियों को बरगलाने के लिए सरना धर्म कोड की वकालत कर रहे हैं।
कड़िया मुंडा तर्क देते हुए कहते हैं कि हिंदू मंदिर में पूजा करते हैं तो क्या मंदिर धर्म है? ईसाई गिरिजाघर में पूजा करते हैं, तो क्या गिरिजाघर धर्म है? इसी तरह मस्जिद, गुरुद्वारा या फिर अन्य उपासना स्थल के नाम पर धर्म नहीं है। ये तो सीधे हमारी आस्था से जुड़े हैं। किसी की आस्था के साथ राजनीति नहीं की जानी चाहिए। इसी तरह सरना झारखंड के आदिवासियों का पूजा स्थल है।
वहीं सरना धर्म कोड को लेकर मांडर के विधायक बंधु तिर्की चर्च और ईसाई मिशनरी से जोड़ने को मूल मुद्दे से भटकाने की साजिश करार देते हैं। उनका तर्क है कि आदिवासियों की अलग पहचान है और यह किसी भी मत को मानने से प्रभावित नहीं होता। चर्च का हवाला देकर और ईसाई मिशनरियों पर दोष मढकर इस मुद्दे को डाइवर्ट नहीं किया जा सकता। इसके अलावा राजस्थान ओडिसा छत्तीसगढ़ और बिहार के कई ऐसे आदिवासी समुदाय सामने आ चुके हैं, जिनका कहना है कि आदिवासी समुदायों को सिर्फ सरना धर्म कोड से जोड़ कर ही नहीं देखा जाए, क्योंकि आदिवासी समुदायों के अंदर ही कई ऐसी जातियां हैं जिनका परंपरा सरना धर्म से भी पुराना है, इसलिए ऐसे मे आदिवासियो के पहचान के लिए या तो सिर्फ आदिवासी धर्म कोड ही लिखा जाए या फिर उनके आदिवासी परंपरा के मुताबिक धर्म कोड लागू किया जाए।
कई ऐसे भी आदिवासी समुदाय हैं जो खुद को हिंदू धर्म कोड से जोड़ कर रखने के पक्षधर दिखते हैं, वहीं कई लोग ईसाई धर्म कोड मे ही खुद को जोड़कर देखते हैं। ओर यही कारण है कि झारखंड के आदिवासियों को जनगणना में अलग से धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र सरकार पहले ही ठुकरा चुकी है। केंद्र के गृह मंत्रालय ने भी इस मांग को ठुकरा दिया है। इस मसले पर रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने कहा था कि अलग धर्म कोड, कॉलम या श्रेणी बनाना व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि अगर जनगणना में पहले से स्थित धर्मों के कॉलम के अतिरिक्त नया कॉलम या धर्म कोड आवंटित किया गया तो बड़ी संख्या में पूरे देश में ऐसी और मांगे उठ जायेगी, जिसे पूरा करना संभव नहीं होगा।
यही वजह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के बाद एक बार फिर से सरना धर्म कोड को लेकर मामला गरम है। कई लोग इस आग मे अलग अलग रंगो के साथ अपने अपने होली खेलने शुरू कर चुके हैं। हालांकि अब देखना होगा की भाजपा गठबंधन की केंद्र सरकार आदिवासी समुदायों के इस मांग पर अपना रूख कब तक स्पष्ट करती है। ओर झारखण्ड भाजपा इस मुददे पर सत्ता पक्ष के द्वारा खुद को घेरने से कैसे बचा पाती है। आप इस सरना धर्म कोड को लेकर क्या सोचते हैं?
पत्रकार – सूरज सुधानंद