L19. एक तरफ जलती चिता और मातम मनाते लोग, तो दूसरी तरफ डीजे की धमक और अबीर-गुलाल के साथ चिता की राख से होली खेलते हुए नॉनस्टाप डांस। कोई गले में नरमुंड की माला पहनकर तांडव कर रहा है, तो कोई दांतों तले जिंदा सांप दबाकर नाच रहा है। यह सीन सिर्फ और सिर्फ काशी में ही दिख सकता है, कहीं और नहीं. यहां शनिवार को मणिकर्णिका घाट पर मसाने की होली हुई। इसे देखकर विदेशी पर्यटक भी हैरान रह गए। शनिवार सुबह 10 बजे से लेकर शाम 6 बजे तक बनारसियों के साथ भांग और ठंडई छानकर विदेशी भी मदमस्त दिखाई पड़े। पांच लाख से ज्यादा लोगों ने बाबा विश्वनाथ का गौना कराकर मसाने की होली खेली।
चिताओं के भस्म होली की मान्यता
रंगभरी एकादशी पर भक्तों ने नाचते-गाते, जलती चिताओं, फिजाओं में उड़ते रंग-गुलाल के साथ यह त्योहार मनाया। यहां चारों ओर पसरे मातम के बीच वर्ष में एक दिन ऐसा आता है जब महाश्मशान पर होली खेली जाती है। रंगभरी एकादशी पर महाश्मशान पर खेली गई इस अनूठी होली के पीछे एक प्राचीन मान्यता है कि जब भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। लेकिन वो श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसीलिए रंगभरी एकादशी से शुरू हुए पंचदिवसीय होली पर्व की अगली कड़ी में विश्वनाथ इन्हीं के साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं जिसकी शुरुआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है। इसके बाद पहले शोभायात्रा भी निकाली जाती है।