L19/Hazaribagh : झारखंड राज्य खनिज विकास निगम (जेएसएमडीसी) के अधिकारियों, कांट्रैक्ट कर्मियों, परियोजनाओं के प्रबंधकों पर प्रवर्तन निदेशालय ने नजरें इनायत कर ली है। ईडी को पुख्ता सूचना मिली है कि माइक्रो स्माल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज (एमएसएमइ) के जरिये जेएसएमडीसी का कोल सिंडिकेट कोयले का अवैध कारोबार कर रहा है। इडी के पास जेएसएमडीसी के कर्मियों (निम्न वर्गीय लिपिक से लेकर जीएम माइंस, संबंधित जिलों के जिला खनन पदाधिकारियों का लेखा-जोखा उपलब्ध करा दिया गया है।
जेएसएमडीसी के निलंबित कांट्रैक्ट कर्मी अशोक कुमार और हजारीबाग के इजहार अंसारी के यहां की गयी छापेमारी के बाद खान एवं भूतत्व विभाग ने एक जांच टीम गठित की है। इस जांच टीम में वैसे कर्मी शामिल हैं, जो खुद दोषी हैं। टीम में बास्की प्रसाद, मनीष कुमार को शामिल किया जाना भी सबको खटक रहा है। बास्की प्रसाद कोल ट्रेडिंग का काम पिछले 14 साल से देख रहे हैं, वहीं मनीष कुमार पर रामगढ़ में पदस्थापना के क्रम में कोयले के अवैध कारोबार में शामिल रहने का आरोप भी लग चुका है।
झारखंड राज्य खनिज विकास निगम इसलिए भी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के रैडार पर है, क्योंकि वहां से ही अवैध बालू खनन, कोल ट्रेडिंग का बड़ा खेल राज्य भर में चल रहा है। जांच एजेंसियों को पता चला है कि जेएसएमडीसी की तरफ से रामगढ़, हजारीबाग, बाकारो और धनबाद जिले से कोयला (सॉफ्ट कोक व हार्ड कोक) फैक्टरियों को जेएसएमडीसी के माध्यम से प्रति माह दिया जाता है। झारखंड के धनबाद में जेएसएमडीसी से कोयला लेनेवाले एमएसएमइ की संख्या 40 है।
इसके अलावा बोकारो में सात, रामगढ़ में 37 एमएसएमइ हैं। कुल 142 इकाईयां जेएसएमडीसी से जुड़ी हैं, जिस पर जांच एजेंसियां सवाल खड़ा कर रही हैं। प्रत्येक वर्ष सीसीएल और बीसीसीएल से 5 लाख टन कोयला इन फैक्टरियों को मिलता है। सूत्रों का कहना है कि जेएसएमडीसी की तरफ से जिन फैक्टरियों को कोयले की खेप भेजी जाती है, उसमें से 90 फीसदी बंद हैं। यहां खेल यह है कि जिस कोयले का उपयोग फैक्टरियों में होना चाहिए था, वह बनारस और डिहरी ओन-सोन के कोयला मंडियों में बेच दिया जा रहा है। इडी को मिले दस्तावेजों के हिसाब से जेएसएमडीसी पांच लाख टन कोयला 4000 रुपये प्रति टन की दर से खरीदता है और सिंडिकेट इसे 13 हजार रुपये प्रति टन खुले बाजार में बेच रहे हैं ।
कोयले के अवैध कारोबार के पीछे है एक संगठित गिरोह
कोयले का यह अवैध कारोबार बेरोकटोक चल रहा है, क्योंकि इसके पीछे एक संगठित गिरोह काम कर रहा है, जिसमें दबंग अधिकारी और पुलिस वाले शामिल हैं। जानकारी के अनुसार, खान एवं भूतत्व विभाग तथा जेएसएमडीसी को प्रत्येक टन तीन सौ से पांच सौ रुपये प्रति टन की वसूली की जाती है। 25 करोड़ से अधिक का सलाना कारोबार कोयले के अवैध ट्रेड से हो रहा है।
इसमें संबंधित जिलों के जिला खनन पदाधिकारी, संबंधित उप निदेशक खान, जेएसएमडीसी के माइंस एजेंट, न्यूनतम वर्गीय लिपिक (कोल सेक्शन), कोयला प्रभारी और उनके अधीनस्थ कर्मी प्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। कोयले से प्रत्येक टन के हिसाब से वसूली पिछले कुछ माह से शुरू हुई है। अवैध वसूली के इस कारोबार में शामिल लोगों को कोई दिक्कत नहीं होती। इसकी वजह कोयले पर प्रति टन होने वाली बचत है। फैक्टरियों को कम कीमत पर कोयला दिया जाता है। फिर यही सिंडिकेट फैक्टरियों से कोयले को खुले बाजार में बेच देता है।
फैक्टरियों को 4000 रुपये प्रति टन, जबकि बनारस में मिल रहा है 10 हजार रुपये प्रति टन कोयला
जेएसएमडीसी की तरफ से राज्य सरकार की औद्योगिक नीति के तहत माइक्रो एंड स्माल इंडस्ट्रीज (एमएसएमइ) को रियायती दर पर कोयला देने का प्रावधान किया गया है। इसमें से प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने हजारीबाग, रामगढ़, बोकारो, पलामू, लातेहार, गढ़वा, धनबाद के 142 ऐसी इकाईयों की पहचान की है, जहां जेएसएमडीसी की तरफ से सीसीएल और बीसीसीएल के जरिये कोयला उपलब्ध कराया जा रहा है। इन इकाईयों को 4000 रुपये प्रति टन के हिसाब से कोयला मिल रहा है।
फैक्टरियों को दिया जानेवाला कोयला बनारस मंडी तक पहुंच कर 10 हजार रुपये प्रति टन की दर से बेचा जा रहा है। प्रति दिन झारखंड से 200 से अधिक कोयला लदे ट्रक को बनारस मंडी, डिहरी मंडी तक भेजा जाता है। एक ट्रक कोयले को बनारस की मंडी तक पहुंचाने के लिए 13 से 14 हजार रुपये लगता है। कुल मिला कर देखें तो फैक्टरियों को उपलब्ध कराया जानेवाला कोयले पर प्रति टन में नौ से 10 हजार रुपये की बचत होती है।
इसलिए पूरे सिंडिकेट को कोयला कारोबारी आसानी से फिक्सड दर उपलब्ध करा दिया जाता है। पूर्व में भी रामगढ़ जिले से कोल ट्रेड को लेकर काफी गड़बड़ियां हुई थीं। रामगढ़ में गड़बड़ी करनेवाले न्यूनतम वर्गीय लिपिक मनीष कुमार अब मुख्यालय में हैं। ये इडी की रेड के बाद अब एमएसएमई की जांच करेंगे और यह सर्टिफिकेट देंगे कि प्लांट अस्तित्व में है की नहीं। इडी को मिली शिकायतों में 142 फैक्टरियों में से 90 फीसदी अस्तित्व विहीन हैं और इनके नाम पर जेएसएमडीसी के संविदा कर्मी से लेकर जीएम माइंस तक तक कोयला के अवैध कारोबार को संरक्षण दे रहे हैं।