L19/Ranchi : झारखण्ड के डेमोक्रैटिक सेटअप में जल्द ही बदलाव किया जायेगा। राज्य में सरकारी कामकाज और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में जल्द ही बड़े बदलाव होंगे। उपायुक्त स्तर से लेकर विभागीय सचिवों के अतिरिक्त प्रभार तक को कम किया जायेगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पूर्व विकास आयुक्त देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता में बनी राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू करने की स्वीकृति दे दी है।
मुख्य सचिव सुखदेव सिंह विभागीय प्रधानों के साथ बैठक करेंगे। इसमें आयोग की अहम सिफारिशें लागू करने की रूपरेखा बनायी जायेगी। मार्च 2020 में इस आयोग का गठन किया गया था, जिसे प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार का दायित्व सौंपा गया था। आयोग ने जनवरी 2022 में रिपोर्ट सौंपी थी।
आयोग की क्या है मुख्य सिफारिशें
आयोग ने कहा है कि डीसी के पास अपने मूल दायित्व के अलावा 116 कमेटियों के अध्यक्ष या सदस्य का दायित्व संभालते हैं। ऐसे में यह स्पष्ट ही नहीं रहता कि उसे करना क्या है और क्या नहीं । इसी कारण जिलों में बहुत से काम नहीं हो पाते। उपायुक्त जब केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में जाते हैं तो तेजी से बेहतर काम करते हैं, क्योंकि वहां सब कुछ स्पष्ट रहता है। इसलिए इनका दायित्व घटाने की जरूरत है।
इसके विपरीत अपर समाहर्ता औऱ सदर अनुमंडल अधिकारी के पास काम कम है, इसे बढ़ाने की जरूरत है। रिपोर्ट में डिलीवरी और सर्विस को सरकार से हटाकर स्थानीय निकायों के हवाले करने की सिफारिश की गई है। कहा गया है कि सरकार खुद ऐसे काम न कर स्थानीय निकायों को मजबूत करे। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा काम उससे कराए। केरल का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां 1984 से ही स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था स्थानीय निकाय के जिम्मे है।
रिपोर्ट में अनुशंसा की गयी है कि विभागीय सचिव समेत बड़े अधिकारियों को अधिक विभागों का अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जाये। एक अधिकारी को अधिक प्रभार देने से वे अपने मूल दायित्व को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। दूसरे विभागों का भी काम प्रभावित होता है। आयोग ने हर स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों के काम और दायित्व को नए सिरे से तय करने की सिफारिश की है।
मंत्री कोषांग को जवाबदेह बनाने के लिए कार्यपालिका नियमावली में भी संशोधन की जरूरत बताई गई है। कहा है कि फाइलों को लेकर मंत्री के ओएसडी व निजी सचिव की जवाबदेही तय हो। प्रारूप भी सुझाया है, एक माह में कितनी फाइलें आईं, कितने का निपटारा हुआ और कितने लंबित हैं। इसमें कितने नीतिगत और कितने अन्य मामले हैं। यह रिपोर्ट हर माह राज्यपाल और सीएम के प्रधान सचिव को भेजने की व्यवस्था हो।
आयोग ने सचिवालय को कंप्यूटराइज्ड करते हुए सरकार ई-ऑफिस सिस्टम की व्यवस्था करे। इससे काम में गति आएगी। पॉलिसी बनाने और उसे लागू कराने का दायित्व अलग-अलग हो, निदेशालय को सरकार से अलग रखा जाए। सरकार अपना सचिवालय अनुदेश बनाए। पुराने सर्कुलर को मूल रूप में अपने वेबसाइट पर डाले।